निम्बार्क संप्रदाय, nimbark sampraday

⇒ निम्बार्क संप्रदाय सभी संप्रदायों में सबसे प्राचीन है । ⇒ भक्ति के निमित्त विष्णु के स्थान पर कृष्ण के सगुण रूप का सर्वप्रथम प्रतिपादन निम्बार्काचार्य ने किया था। ⇒ निम्बार्काचार्य का मूलनाम नियमानन्द था । निम्बार्क का अर्थ है ‘नीम पर सूर्य के दर्शन कराने वाला’ । ⇒ निम्बार्क को भगवान कृष्ण के सुदर्शन … Read more

गौड़ीय संप्रदाय, gaudiy sampraday

गौड़ीय संप्रदाय, gaudiy sampraday ⇒ चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवद्वीप स्थान पर 1486 ई. में हुआ था । ⇒ चैतन्य महाप्रभु 24 वर्ष की आयु में केशव भारती से सन्यास की दीक्षा ली जहाँ इनका नाम कृष्ण चैतन्य रखा गया। ⇒ गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु है ⇒ चैतन्य महाप्रभु का बचपन जा नाम विश्वम्भरनाथ … Read more

सखी संप्रदाय या हरिदासी संप्रदाय | sakhi sampraday ya haridasi sampraday

सखी संप्रदाय या हरिदासी संप्रदाय | sakhi sampraday ya haridasi sampraday   ⇒ हरिदासी संप्रदाय के लोग आगरा में यमुना नदी के किनारे बांस की टट्टी बनाकर रहते थे जिस कारण इसे टट्टी संप्रदाय भी कहा जाता है । ⇒ सखी संप्रदाय के भक्त कृष्ण को सखी मानकर उनकी उपासना  करते हैं। ⇒ सखी संप्रदाय निम्बार्क संप्रदाय की … Read more

राधावल्लभ संप्रदाय, radhavallabh sampraday

राधावल्लभ सम्प्रदाय | radhavallabh sampraday ⇒ राधावल्लभ सम्प्रदाय का प्रवर्तन सन् 1534 ई० में आचार्य हितहरिवंश ने वृन्दावन में किया। ⇒ राधावल्लभ सम्प्रदाय में ‘राधा‘ का स्थान सर्वोपरि है तथा इसमें ‘तत्सुखीभाव‘ को महत्व प्रदान किया गया है। ⇒ हितहरिवंश के गुरु का नाम गोपालवल्लभ था । ⇒ हितहरिवंश के पिता का नाम केशवदास मिश्र और माता का … Read more

अष्टछाप स्मरणीय तथ्य

हिंदी साहित्य में अष्टछाप के स्मरणीय तथ्य प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं | अष्टछाप का संक्षिप्त परिचय, अष्टछाप पर टिप्पणी, अष्टछापी कवि, अष्टछाप की महत्त्वपूर्ण बातें    ⇒ अष्टछाप के संस्थापक वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ थे। ⇒ अष्टछाप की स्थापना 1565 ई. । ⇒ अष्टछाप में 8 कवि (वल्लभाचार्य के 4 शिष्य … Read more

तुलसीदास और रामचरितमानस के संबंध में प्रमुख कथन

तुलसी के विषय में मुख्य विचार या कथन, तुलसीदास और रामचरितमानस के संबंध में प्रमुख कथन, रामचरितमानस के विषय में प्रमुख कथन ramacharitmanas ke vishay mein mukhy kathan, tulasi ke vishay mein pramukh kathan   ⇒ बुद्धदेव के बाद भारत के सर्वाधिक बड़े लोकनायक तुलसीदास हैं। -जॉर्ज ग्रियर्सन ⇒ रामचरितमानस को उत्तर भारत की बाइबिल किसने कहा … Read more

सूफी काव्य संबंधी प्रमुख तथ्य

सूफी काव्य संबंधी प्रमुख तथ्य या प्रेमाश्रयी काव्यधारा के महत्त्वपूर्ण तथ्य का अध्ययन इस पोस्ट में करेंगे | इसमें प्रेम काव्य के प्रमुख तथ्यों को दिया गया है |    सूफी काव्य की पहली रचना  → हंसावली (1370 ई.)-असाइत : गणपतिचंद्र गुप्त→ चंदायन (1379 ई.) –मुल्ला दाऊद : रामकुमार वर्मा→ सत्यवती कथा (1501 ई.) –ईश्वरदास : … Read more

सूफी काव्य / प्रेमाश्रयी काव्य धारा

हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण धारा की एक दूसरी उपधारा ‘प्रेमाश्रयी काव्य धारा‘ है, जिसे ‘सूफी काव्य‘ कहते हैं। निर्गुणोपासकों की वह शाखा, जिनकी भक्ति का मुख्य विषय ‘प्रेम’ है और जो ईश्वर से मिलानेवाला है तथा जिसका आभास लौकिक प्रेम के रूप में मिलता है, ‘सूफीशाखा’ अथवा ‘प्रेमाश्रयी शाखा है। sufi kavy, premashreyi … Read more

भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा के महत्त्वपूर्ण कथन

भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा के कथन में संत कवियों की अति महत्त्वपूर्ण पंक्तिया या उक्तियां दी गई हैं | इस पोस्ट में भक्तिकालीन जो पंक्तियाँ दी गई हैं वह आगामी परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं | कबीरदास के कथन (1) “झिलमिल झगरा झूलत बाकी रही न काहु । गोरख अटके कालपुर कौन कहावै साहु … Read more

भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा

भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा निर्गुण धारा के अंतर्गत आती है | शुक्लजी ने भक्तिकाल को संत, सूफी, निर्गुण और सगुण आदि में विभाजित किया है। इन्होंने प्रकरण तीन में ज्ञानाश्रयी साखा के आठ संतों को महत्त्व दिया है। योग साधना से प्रभावित संत कबीरदास, सुंदरदास, हरिदास निरंजनी योग साधना से अप्रभावित संत  रैदास, दादू दयाल, गुरु … Read more

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