सखी संप्रदाय या हरिदासी संप्रदाय | sakhi sampraday ya haridasi sampraday

सखी संप्रदाय या हरिदासी संप्रदाय | sakhi sampraday ya haridasi sampraday  

हरिदासी संप्रदाय के लोग आगरा में यमुना नदी के किनारे बांस की टट्टी बनाकर रहते थे जिस कारण इसे टट्टी संप्रदाय भी कहा जाता है ।

 सखी संप्रदाय के भक्त कृष्ण को सखी मानकर उनकी उपासना  करते हैं।

 सखी संप्रदाय निम्बार्क संप्रदाय की ही शाखा है ।

 स्वामी हरिदास अकबर के समकालीन थे ।

 स्वामी हरिदास ने वृन्दावन में निम्बार्क मतांतर्गत सखी सम्प्रदाय या टट्टी सम्प्रदाय की स्थापना की।

 स्वामी हरिदास का ऐतिहासिक परिचय किशोरदास की रचना ‘निजमत सिद्धान्त’ से प्राप्त होता है ।

 किशोरदास ने निजमत सिद्धांत में सखी संप्रदाय की आधारभूत विकृतियों का वर्णन किया है ।

 अकबर के दरबारी गायक तानसेन स्वामी हरिदास के शिष्य थे।

 सखी सम्प्रदाय में निकुंज बिहारी श्रीकृष्ण सर्वोपरि हैं।

 हरिदास के दो ग्रन्थ प्राप्य हैं

(1) सिद्धान्त के पद-इसमें रूप और प्रेम का सिद्धान्त है।
(2) केलिमाला- इसमें 110 पदों में श्री श्यामाकुंज बिहारी की लीलाओं का वर्णन है।

सखी संप्रदाय या हरिदासी संप्रदाय के प्रमुख कवि

 सखी संप्रदाय के प्रमुख कवि जगन्नाथ गोस्वामी, विठल विपुल, विहारिन दास, नागरीदास, सरसदास हैं ।

 जगन्नाथ गोस्वामी स्वामी हरिदास के भाई थे। इनकी रचना ‘अनन्य सेवानिधि’ ही प्राप्य है।

 विहारिनदास सखी सम्प्रदाय के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इनका मूल नाम हरिनाम था

 बिहारिनदास को सखी सम्प्रदाय में ‘गुरुदेव’ नाम से पुकारा जाता है। ये जगन्नाथ के पौत्र और बीठल बिपुल के शिष्य थे।

 इनकी रचना ‘बिहारिनदास जी की वाणी’ के नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें इन्होंने ‘नित्यविहार’ को सर्वोपरि स्थान दिया है।

 बीठल विपुल को नाभादास ने ‘रस सागर’ की उपाधि दी है।

 बीठल विपुल को केवल 40 पद ही मिले हैं।

 नागरीदास बिहारिनदास के शिष्य थे।

 सरसदास नागरीदास के छोटे भाई थे।

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