तुलसीदास की रचनाएँ, tulasidas ki rachanayein

तुलसीदास की रचनाएँ, tulasidas ki rachanayein

तुलसीदास की प्रथम रचना वैराग्य संदीपनी तथा अंतिम रचना कवितावली को माना जाता है। कवितावली के परिशिष्ट में हनुमानबाहुक भी संलग्न है। किंतु अधिकांश विद्वान रामलला नहछू को प्रथम कृति मानते हैं। 

 मिश्र बंधु एवं हजारी प्रसाद ने तुलसीदास की 30 रचनाओं को मान्यता दी। जबकि ग्रियर्सन ने तुलसीदास के 21 रचनाओं को मान्यता दी। सेंगर ने तुलसीदास के 18 रचनाओं को प्रामाणिक बताया। 

 हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तुलसीदास की 25 रचनाओं को प्रामाणिक बताया। जो निम्नलिखित हैं 

1- रामचरितमानस 2- कड़खा रामायण 3- कुंडलिया रामायण 4- छप्पय रामायण 5- पदावली रामायण 6- रोला रामायण 7- छंदावली रामायण 8- झूलना रामायण 9- बरवै रामायण 10- रामलला नहछू 11- रामाज्ञा प्रश्नावली 12- पार्वती मंगल 13- जानकी मंगल 14- वैराग्य संदीपनी 15- संकट मोचन 16- कवितावली 17- गीतावली 18- कृष्ण गीतावली 19- हनुमान चालीसा 20- रामशलाका 21- राम सतसई 22- विनय पत्रिका 23- दोहावली 24- तुलसी सतसई 24-हनुमानबाहुक

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसीदास की 12 रचनाओं को प्रामाणिक माना है। इसमें 5 बड़े और 7 छोटे ग्रंथ हैं| 

तुलसीदास के 5 बड़े ग्रंथों के नाम इस प्रकार है –

1- दोहावली 2- कवितावली 3- गीतावली 4- रामचरितमानस 5- विनय पत्रिका 

 तुलसीदास के 7 छोटे ग्रंथों के नाम इस प्रकार है-

1- रामलला नहछू 2- पार्वती मंगल 3- जानकी मंगल 4- बरवै रामायण 5- वैराग्य संदीपनी 6- कृष्ण गीतावली 7- रामाज्ञा प्रश्नावली

 तुलसीदास की चार रचनाएं जिसमें सात कांड है- 

1- गीतावली 2- रामचरितमानस 3- कवितावली 4- बरवै रामायण

रामचरितमानस

तुलसीदास ने पत्नी की उलाहना पर विरक्त होकर गृह त्याग किया और काशी चले गए। 15 वर्ष तक व्याकरण काव्यशास्त्र आदि का अध्ययन किया। यहां इन्हें शेष सनातन से दीक्षा मिली और अध्ययन के पश्चात तुलसी जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारका, बद्रीनाथ होते हुए अयोध्या पहुंचे। जहां उन्होंने 1574 ई. में रामचरितमानस की रचना की।

संवत् सोलह सै एकतीसा करहु कथा हरि पद घर सीसा।
रचि महेश निज मानस राखा, पाइ सुअवसर सिया संग भाखा।।

रामचरितमानस 2 वर्ष 7 माह 26 दिन में पूर्ण हुआ। 

 रामचरितमानस में सात कांड थे। 1- बालकांड 2- अयोध्याकांड 3- अरण्यकांड 4- किष्किंधाकांड 5- सुंदरकांड 6- लंकाकांड 7- उत्तरकांड । 

 किष्किंधाकांड काशी में लिखा गया। 

 ‘अयोध्याकाण्ड’ को ‘रामचरितमानस’ का हृदयस्थल कहा जाता है। इस काण्ड की ‘चित्रकूट सभा’ को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘एक आध्यात्मिक घटना’ की संज्ञा प्रदान की।

 ‘चित्रकूट सभा’ में ‘वेदनीति’, ‘लोकनीति’ एवं ‘राजनीति’ तीनों का समन्वय दिखाई देता है।

 ‘रामचरितमानस’ की रचना गोस्वामीजी ने ‘स्वान्तः सुखाय’ के साथ-साथ ‘लोकहित’ एवं ‘लोकमंगल’ के लिए किया है।

 ‘रामचरितमानस’ के मार्मिक स्थल निम्नलिखित है- 

(1) राम का अयोध्या त्याग और पथिक के रूप में वन गमन 
(2) चित्रकूट में राम और भरत का मिलन
(3) शबरी का आतिथ्य
(4) लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम का विलाप
(5) भरत की प्रतीक्षा आदि।

 उत्तरकांड रामचरितमानस का सार है। इसमें ज्ञानदीप प्रसंग है। रामराज की कथा है। कलयुग का वर्णन है। इसमें तुलसी के तत्कालीन समाज की विडंबनाओ विसंगतियों एवं धर्म विरुद्ध आचरण को कलिकाल की देन बताया गया है।

 तुलसी ने ‘रामचरितमानस’ की कल्पना ‘मानसरोवर’ के रूपक के रूप में की है। जिसमें 7 काण्ड के रूप में सात सोपान तथा चार वक्ता के रूप में चार घाट हैं।

 रामचरितमानस पर सर्वाधिक प्रभाव अध्यात्म रामायण का पड़ा है। 

तुलसीदास ने सर्वप्रथम मानस को रसखान को सुनाया था |

रामचरितमानस की प्रथम टीका अयोध्या के बाबा राम चरण दास ने लिखी थी।

वैराग्य संदीपनी 

वैराग्य संदीपनी का काव्य रूप मुक्तक है। वैराग्य संदीपनी की भाषा ब्रजभाषा है।  वैराग्य संदीपनी में दोहा सोरठा छंद का प्रयोग किया गया है।

रामाज्ञा प्रश्न  

रामाज्ञा प्रश्न काव्य रुप मुक्तक है। रामाज्ञा प्रश्न की भाषा अवधी है। रामाज्ञा प्रश्न में दोहा छंद का प्रयोग किया गया है। तुलसीदास के एक मित्र पंडित गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लाद घाट पर रहते थे। रामाज्ञा प्रश्न उन्हीं के अनुरोध से बना माना जाता है।

रामलला नहछू

रामलला नहछू का काव्य रूप प्रबंध है। रामलला नहछू की भाषा ठेठ अवधी है। रामलला नहछू में सोहर छंद का प्रयोग किया गया है। 

जानकी मंगल

जानकी मंगल का काव्य रूप प्रबंध है। जानकी मंगल की भाषा अवधी है। जानकी मंगल का छंद सोहर है। जानकी मंगल में छंदों की संख्या 216 है।

पार्वती मंगल

पार्वती मंगल का काव्य रूप प्रबंध है। पार्वती मंगल की भाषा अवधी है। पार्वती मंगल में हरिगीतिका छंद का प्रयोग किया गया है। पार्वती मंगल में छंदों की कुल संख्या 164 है। 

कृष्ण गीतावली

कृष्ण गीतावली का काव्य रूप गीतिकाव्य है। कृष्ण गीतावली की भाषा ब्रजभाषा है। कृष्ण गीतावली में कुल छंदों की संख्या 61 है। कृष्ण गीतावली वृंदावन की यात्रा के अवसर पर बनी कही जाती है।

गीतावली

गीतावली का काव्य रूप गीतिकाव्य है। गीतावली की भाषा ब्रजभाषा है। गीतावली में वात्सल्य और भक्ति रस का प्रयोग किया गया है। गीतावली में कुल 7 कांड हैं। 

विनय पत्रिका

विनय पत्रिका का काव्य रूप गीतिकाव्य है। विनय पत्रिका की भाषा ब्रजभाषा है। विनय पत्रिका में छंदों की कुल संख्या 279 है। विनय पत्रिका में भक्ति रस है। 

दोहावली

दोहावली का काव्य रूप मुक्तक है। दोहावली की भाषा ब्रजभाषा है। दोहावली में दोहा सोरठा छंद का प्रयोग किया गया है। दोहावली में कुल छंदों की संख्या 573 है।

बरवै रामायण 

बरवै रामायण का काव्य रूप मुक्तक है। बरवै रामायण की भाषा अवधी है। बरवै रामायण में बरवै छंद का प्रयोग किया गया है। बरवै रामायण में छंदों की कुल संख्या 69 है। बरवै रामायण में सात कांड है। तुलसीदास ने अपने स्नेही मित्र अब्दुल रहीम खान खाना के कहने पर उनके बरवै नायिकाभेद को देखकर बनाया था।

कवितावली

कवितावली का काव्य रूप मुक्तक है। कवितावली की भाषा ब्रजभाषा है। कवितावली में कवित्त और छप्पय छंद का प्रयोग किया गया है। कवितावली में कुल 7 कांड हैं।

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