तुलसीदास का जीवन परिचय

तुलसीदास का जीवन परिचय, tulasidas ka jiwan parichay

तुलसीदास के संदर्भ में निम्नलिखित रचनाओं से जानकारी प्राप्त होती है 

1- गोकुलनाथ-  दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता 
2- नाभादास- भक्तमाल 
3- वेणी माधव- भक्तमाल 
4- तुलसीदास- कवितावली, विनय पत्रिका 

 तुलसी का जन्म 1532 ई. राजापुर गांव बांदा में हुआ था। यद्यपि कुछ लोग सूकर क्षेत्र को इनका जन्म स्थान मानते हैं। जिसका आधार निम्न पंक्ति है-

“मैं पुनि निज गुरु सन सुनि कथा सो सूकर खेत”

 तुलसी के जन्म स्थान को लेकर विद्वानों में परस्पर मतभेद है। तुलसी का जन्म स्थान सूकर खेत सोरो जिला एटा मानने वाले विद्वान निम्नलिखित हैं-

1- लाला सीताराम 
2- गौरी शंकर द्विवेदी 
3- हजारी प्रसाद द्विवेदी 
4- गणपति चंद्रगुप्त 
5- रामनरेश त्रिपाठी 
6- रामदत्त भारद्वाज 

 तुलसीदास के जन्म स्थान को राजापुर जिला बांदा मानने वाले विद्वान निम्नलिखित हैं-

1- बेनी माधव दास 
2-आचार्य रामचंद्र शुक्ल 
3- शिव सिंह सिंगर 
4- रामगुलाम द्विवेदी 
5- महात्मा रघुवर दास

 तुलसी परासर गोत्र के दुबे थे। इनके पिता आत्माराम दुबे माता हुलसी थी। तुलसी के बचपन का नाम तुलाराम था जबकि इनका नामकरण रामबोला किया गया था। तुलसी की पत्नी का नाम रत्नावली था। तुलसी के दीक्षा गुरु नरहर्यानंद और शिक्षा गुरु शेष सनातन थे।

 तुलसी अभुक्त नक्षत्र में पैदा हुए जिसके कारण इनके माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया।

‘मात पिता जग जाहि तज्यो, विधि हूँ न लिखी कछु भाल भलाई।’

 तुलसीदास को 5 वर्ष तक मुनिया नामक दासी ने आश्रय दिया तुलसी ने कवितावली में जीवन के प्रारंभिक चरण के बारे में लिखा 

द्वार ते ललात विललात द्वार-द्वार दीन।
जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को।।

 तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ तुलसीदास को तारक नामक पुत्र पैदा हुआ जो की अल्पायु में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तुलसी पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे। इस आसक्ति के खिलाफ इनकी पत्नी ने इनको फटकार लगाते हुए कहा था-

लाज न आवत आपको दौरे आयहु साथ।
धिक-धिक एसे प्रेम को कहां कहौं मै नाथ।।
अस्थि चर्म मय देह मम तांबे ऐसी प्रीती।
ऐसी जो श्रीराम मय होत न तौ भवभीती।।

 गोस्वामी तुलसीदास के स्नेही मित्रों में नवाब अब्दुर्रहीम खानखाना, महाराज मानसिंह, नाभादास, मधुसूदन सरस्वती और टोडरमल का नाम प्रसिद्ध है।

 टोडर की मृत्यु पर तुलसीदास ने कई दोहे लिखे थे जो निम्न है-

“चार गाँव को ठाकुरो मन को महामहीप । 
तुलसी या कलिकाल में अथए टोडर दीप ॥ 
रामधाम टोडर गए, तुलसी भए असोच ।
जियबो गीत पुनीत बिनु, यहै जानि संकोच ॥”

 रहीमदास ने तुलसी के सन्दर्भ में निम्न दोहा लिखा है-

सुरतिय, नरतिय नागतिय, सब चाहति अस होय।-  तुलसीदास 

गोद लिए हुलसी फिरें, तुलसी सो सुत होय॥ – रहीमदास

 “ब्रज भाषा का जो माधुर्य हम सूरसागर में पाते है वही माधुर्य और भी संस्कृत रूप में हम गीतावली और कृष्णगीतावली में पाते है। ठेठ अवधी की जो मिठास हमें जायसी की पद्मावत में मिलती है वही जानकीमंगल, पार्वतीमंगल, बरवै रामायण और रामलला नहछू में हम पाते है। यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर।”  आचार्य रामचंद्र शुक्ल 

 तुलसीदास काशी, चित्रकूट, ब्रजमंडल, में निरंतर भ्रमण करते रहे। वृद्धावस्था में इनका शरीर रोग से ग्रसित हो गया जिससे बचने के लिए हनुमानबाहुक (अंतिम ग्रंथ) लिखा। तुलसी जीवन के अंतिम समय में काशी गए वहां महामारी का प्रकोप था। इसी महामारी में इनका प्राणान्त हो गया।

 गोस्वामीजी की मृत्यु के संबंध में लोग यह दोहा कहा करते है- 

संवत सोरह से असी, असी गंग के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ।

 पर बाबा बेनीमाधवदास की पुस्तक में दूसरी पंक्ति इस प्रकार है या कर दी गई है-

श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी राज्यो शरीर

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