केशवदास का जीवन परिचय, keshawadas ka jiwan parichay

केशवदास का जीवन परिचय, keshawadas ka jiwan parichay

 केशवदास का जन्म बुन्देलखण्ड के ओरछा नामक नगर में सन् 1555 ई० में और मृत्यु सन् 1917 ई० में हुआ। केशवदास के पिता का नाम काशीनाथ था। केशवदास के बड़े भाई बलभद्र मिश्र भाषा के अच्छे कवि थे। केशवदास का उपनाम वेदान्ती मिश्र था और ये निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित थे। केशवदास को संक्रमणकालीन कवि कहा जाता है|

केशवदास ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के गुरु और राज्याश्रित कवि थे।

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास को भक्तिकाल में स्थान दिया है।

 आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ० नगेन्द्र और गणपतिचन्द्र गुप्त प्रभृति विद्वानों ने केशवदास को हिन्दी में रीतिकाव्य का प्रवर्तक माना है।

 केशवदास भामह, दंडी और उद्भट् के अनुयायी थे।

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल केशव को अलंकारवादी मानते हैं। केशवदास ने स्वयं लिखा है-

जदापि सुजति सुलच्छनी, सुवरन सरस सुवृत्त।
भूषन बिनु न विराजई, कविता वनिता मित्त॥

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने केशवदास की कटु आलोचना करते हुए लिखा है-

  “केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता न थी जो एक कवि में होना चाहिए। वे संस्कृत साहित्य से सामग्री लेकर अपने पाण्डित्य और रचना कौशल की धाक जमाना चाहते थे।”

 डॉ० विजयपाल सिंह ने केशवदास को ‘कोर्ट का कवि’ कहा है।

 केशवदास को नाभादास ने उडगन केशवदास कहा है।

 केशवदास को रामचंद्र शुक्ल ने कठिन काव्य का प्रेत कहा है।

केशवदास की रचनाएं

 केशवदास की रचनाओं का काल क्रमानुसार संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-

रसिकप्रिया(1591)
रामचंद्रिका(1601)
कविप्रिया((1601)
रतन बावनी(1607)
वीर सिंह देव चरित(1607)
विज्ञान गीता(1610)
जहांगीर जस चंद्रिका(1612)
नखशिख
छंदमाल

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास के केवल दो प्रबंध काव्य माने हैं 1- वीरसिंह देव चरित 2- रामचंद्रिका

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल प्रबंध काव्य के लिए तीन बातें अनिवार्य मानते हैं। 1- संबंध निर्वाह 2- कथा के गंभीर और मार्मिक स्थलों की पहचान 3- दृश्यों की स्थानगत विशेषता।

 रसिकप्रिया रीतिग्रंथ है। रसिकप्रिया में कुल 16 प्रभाव हैं। रसिकप्रिया में श्रृंगार रस का विशद वर्णन कवि ने किया है।

 रामचंद्रिका में 39 प्रकाश हैं। यह प्रबंध काव्य है रामचंद्रिका में राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। रामचंद्रिका में केशव को सबसे अधिक सफलता संवादों में प्राप्त हुई है।

 रामचंद्रिका में प्रसन्नराघव, हनुमान्नाटक, अनर्घराघव, कादंबरी, नैषध की बहुत सी उप तीनों का अनुवाद करके रख दिया गया है।

 ऐसा माना जाता है कि केशवदास ने ‘रामचन्द्रिका’ की रचना तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ को प्रतिस्पर्धा में एक रात में की।

 गुमान कवि ने ‘रामचन्द्रिका’ की प्रतिस्पर्धा मे ‘कृष्णचन्द्रिका‘ लिखी।

 रामस्वरूप चतुर्वेदी ने रामचंद्रिका को छन्दों का एक अजायबघर है।

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि रामचंद्रिका अलग-अलग लिखे हुए वर्णनों का संग्रह सी जान पड़ती है।

 ‘कविप्रिया‘ रोति ग्रन्थ की रचना इन्द्रजीत सिंह की एकनिष्ठ प्रेमिका गणिका (वेश्या) ‘प्रवीण राय’ को शिक्षा देने के लिए की गयी थी। कविप्रिया में 16 प्रकाश हैं। कविप्रिया में अलंकारों का वर्णन किया गया है।

 रतन बावनी में इंद्रजीत के बड़े भाई रतन सिंह की वीरता का छप्पयों में अच्छे वर्णन हैं। यह वीर रस का अच्छा काव्य है। यह डिंगल शैली का एक राजनीतिक ग्रंथ है। रतन बावनी में 53 छंद है।

 वीरसिंह देव चरित में कुल 33 प्रकाश हैं। वीर सिंह देव पर आधारित यह ऐतिहासिक काव्य है।

 विज्ञान गीता संस्कृत के प्रबोध चंद्रोदय नाटक के ढंग की पुस्तक है। विज्ञान गीता में 21 प्रभाव हैं।

केशवदास के महत्वपूर्ण कथन

(1)भाषा बोलि न जानहिं जिनके कुल के दास । 
भाषा कवि भो मंदमति तेहि कुलकेसवदास ॥

 (2) केसव केसनि अस करी बैरिहु जस न कराहिं 
चन्द्रबदनि मृगलोचनी ‘बाबा’ कहि कहि जाहिं

(3) जदपि सुजाति सुलक्षनी, सुबरन सरस सुवृत्त । 
भूषन बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त ।

(4) देखे भुख भावै, अनदेखेई कमल चंद 
ताते मुख मुखै, सखी कमलौ न चंद री ॥

(5) केशव केशवराय मनौ कमलासन के सिर ऊपरे सोहै

(6) बासर की सम्पति उलूक ज्यों न चितवत ।

(7) मातु ! कहाँ नृपतात ? गए सुरलोकहि, क्यों ? सुतसोक किए।

(8) राम को काम कहाँ रिपु जीतहि कौन कबै रिपु जीत्यों कहा ॥

(9) अरुण गात अति प्रात पद्मिनी प्राननाथ भय ।
मानहु केशवदास कोकनद कोक प्रेम मय ।।

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