गौड़ीय संप्रदाय, gaudiy sampraday

गौड़ीय संप्रदाय, gaudiy sampraday

चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवद्वीप स्थान पर 1486 ई. में हुआ था ।

 चैतन्य महाप्रभु 24 वर्ष की आयु में केशव भारती से सन्यास की दीक्षा ली जहाँ इनका नाम कृष्ण चैतन्य रखा गया।

 गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु है

 चैतन्य महाप्रभु का बचपन जा नाम विश्वम्भरनाथ मिश्र था।

 चैतन्य महाप्रभु को निमायी स्वामी भी कहा जाता है ।

 चैतन्य महाप्रभु गौर वर्ण के थे जिस कारण इन्हें गौरांग भी कहा जाता है

 चैतन्य मत का दार्शनिक सिद्धान्त ‘अचिन्त्य भेदाभेद’ कहलाता है।

 चैतन्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम कीर्तन प्रथा को जन्म दिया ।

गौड़ीय संप्रदाय के प्रमुख कवि

 गौड़ीय संप्रदाय के प्रमुख कवि रामराय, सूरदास, मदन गोपाल, गदाधर भट्ट, चंद्रगोपाल, भगवानदास, माधवदास माधुरी, भगवत मुदित हैं ।

  रामराय प्रारम्भ में वल्लभ मतानुयायी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। किन्तु बाद में जगन्नाथपुरी में श्री नित्यानन्द से दीक्षा ग्रहण की।

 रामराय संस्कृत तथा ब्रजभाषा दोनों के ही पण्डित थे।

  रामराय ने संस्कृत में ब्रह्मसूत्र के कुछ अंश पर ‘गौर-विनोदिनी’ नामक वृत्ति की रचना की तथा गीता पर ‘गौर भाष्य’, ‘स्तवपंचकम्’ और ‘गोविन्दतत्व दीपिका’ का प्रणयन किया

  ब्रजभाषा में इनकी ‘आदिवाणी’ तथा ‘गीत गोविन्द भाषा’ दो रचनाएँ प्राप्य हैं। मदनमोहन सूरदास अकबर के दीवान थे और संडीला में नियुक्त थे

  बाबा कृष्णदास ने इनके 105 पदों का ‘सुहृदबानी’ शीर्षक से संग्रह किया है। गदाधर भट्ट ब्रजभाषा के सुप्रसिद्ध कवि तथा भागवत के अद्वितीयवक्ता थे। गदाधर भट्ट रघुनाथ भट्ट गोस्वामी के शिष्य थे

  चन्द्रगोपाल रामराय के अनुज थे। इन्होंने संस्कृत तथा ब्रज दोनों भाषाओं में ग्रन्थ लिखा, जो निम्न है

 ‘चन्द्र चौरासी’ हितहरिवंशजी की ‘हित चौरासी’ की प्रेरणा से लिखी गयी है।

‘गौरांग अष्टयाम’ में चैतन्य महाप्रभु की अष्टयाम सेवा का वर्णन है।

  माधवदास ‘माधुरी’ वृन्दावनवासी खत्री थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं (1) केलि माधुरी (1630 ई०), (2) वंशीवट माधुरी (1642 ई०) और (3) वृंदावन माधुरी (1642 ई०)।

  माधवदास की तीनों रचनाओं का एक साथ संकलन ‘श्री माधुरी वाणी’ नाम से किया गया है।

 भगवत मुदित माधव मुदित के पुत्र तथा आगरा के सूबेदार शुजा के दीवान थे। इनकी एकमात्र रचना ‘वृन्दावन शत’ (1650 ई०) है ।

  ‘वृन्दावन शत’ श्री प्रबोधनंद सरस्वती द्वारा रचित संस्कृत ग्रन्थ ‘वृन्दावन महिमामृत’ का ब्रजभाषानुवाद है।

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