निम्बार्क संप्रदाय, nimbark sampraday

निम्बार्क संप्रदाय सभी संप्रदायों में सबसे प्राचीन है ।

भक्ति के निमित्त विष्णु के स्थान पर कृष्ण के सगुण रूप का सर्वप्रथम प्रतिपादन निम्बार्काचार्य ने किया था।

निम्बार्काचार्य का मूलनाम नियमानन्द था । निम्बार्क का अर्थ है ‘नीम पर सूर्य के दर्शन कराने वाला’ ।

निम्बार्क को भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है। इनका एक नाम ‘सुदर्शन’ भी था।

निम्बार्क सम्प्रदाय में कृष्ण के वामांग में सुशोभित राधा के स्वकीय रूप का विधान है।

निम्बार्काचार्य के चार शिष्य थे –

(1) श्री निवासाचार्य,
(2) औदुम्बाचार्य,
(3) गौर मुखाचार्य और
(4) श्री लक्ष्मण भट्ट ।

श्री निवासाचार्य ने ‘वेदान्त कौस्तुभ’ ग्रन्थ की रचना की।

निम्बार्काचार्य ने पाँच ग्रन्थों की रचना की है जो निम्न है

(1) वेदान्त पारिजात सौरभ,
(2) दशश्लोकी,
(3) श्रीकृष्णस्तवराज,
(4) मंतरहस्य षोडशी,
(5) प्रपन्नकल्पपल्लवी 

निम्बार्क सम्प्रदाय की सबसे बड़ी गद्दी राजस्थान के सलेमाबाद स्थान पर है।

निम्बार्क संप्रदाय के प्रमुख कवि

निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षित प्रमुख भक्त कवि श्री भट्ट, हरिव्यास देव, परशुराम देव, रसिक जी हैं ।

श्रीभट्ट का जन्म मथुरा में ध्रुवटीला में सन् 1538 में हुआ। इनके गुरु का नाम केशव कश्मीरी था।

श्री भट्ट को निम्बार्क सम्प्रदाय में ‘हितू सखी’ का अवतार माना जाता है।

श्रीभट्ट के दो ग्रन्थ है

(1) युगल शतक – इसमें 100 पद हैं। प्रत्येक पद के पूर्व उक्त पद के मूल भाव को व्यक्त करने वाला एक दोहा दिया है।
(2) आदि बानी।

हरिव्यास देव के गुरु का नाम श्रीभट्ट था। इन्होंने ब्रजभाषा में ‘महावाणी’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

परशुराम देव के गुरु का नाम ‘हरिव्यासदेव’ था।

परशुराम देव ने निम्बार्क सम्प्रदाय की गद्दी को राजस्थान के सलेमाबाद में स्थापित किया।

परशुरामदेव ने ‘परशुराम सागर’ नामक एक बड़े ग्रन्थ की रचना की। इसकी भाषा राजस्थानी प्रधान सधुक्कड़ी है।

परशुराम देव के गुरु  हरिव्यास देव के गुरु  श्रीभट्ट थे ।

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!