तुलसी के विषय में मुख्य विचार या कथन, तुलसीदास और रामचरितमानस के संबंध में प्रमुख कथन, रामचरितमानस के विषय में प्रमुख कथन ramacharitmanas ke vishay mein mukhy kathan, tulasi ke vishay mein pramukh kathan
⇒ बुद्धदेव के बाद भारत के सर्वाधिक बड़े लोकनायक तुलसीदास हैं। -जॉर्ज ग्रियर्सन
⇒ रामचरितमानस को उत्तर भारत की बाइबिल किसने कहा है। -जार्ज ग्रियर्सन
⇒ तुलसी को रूपकों का बादशाह किसने कहा । -बच्चन सिंह और लाला भगवानदीन
⇒ तुलसी को अनुप्रास का बादशाह किसने कहा है । -रामचंद्र शुक्ल
⇒ तुलसी को उत्प्रेक्षा का बादशाह किसने कहा है । -उदयभानु सिंह
⇒ तुलसी हिंदी कविता कानन का सबसे बड़ा वृक्ष है उस वृक्ष की शाखा प्रशाखाओं के काव्य कौशल की चारूता और रमणीयता चारो ओर बिखरीपड़ी है। -विजयेंद्र स्नातक
⇒ भारतीय जनता का प्रतिनिधि कवि यदि किसी कवि को कहा जा सकता है तो इसी महानुभाव को । इसमें व्यक्तिगत साधना के साथ लोकधर्म कीअत्यंत उज्ज्वल छटा विद्यमान है । -रामचंद्र शुक्ल
⇒ तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है । -हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है, जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो। -हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ तुलसी की रचना रामचरितमानस ‘लोगों का हृदयहार है।….प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामनेपढ़ा जा सके, गोस्वामी जी का ही है -रामचंद्र शुक्ल
⇒ हिन्दी काव्य की सब प्रकार की रचना शैली के ऊपर गोस्वामी तुलसीदास ने अपना ऊँचा स्थान प्रतिष्ठित किया है वह उच्चता और किसी को प्राप्तनहीं। -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
⇒ तुलसी का ‘रामचरितमानस’ लोक से शास्त्र का, संस्कृत से भाषा का, सगुण से निर्गुण का, ज्ञान से भक्ति का, शैव से वैष्णव का, ब्राह्मण से शूद्रका, पंडित से मूर्ख का, गार्हस्थ से वैराग्य का समन्वय है।” -हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ तुलसीदास उत्तरी भारत के समग्र जनता के हृदय मंदिर में पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं। -रामचंद्र शुक्ल
⇒ तुलसी को हिंदी काव्य गगन का सूर्य किसने कहा है । -रामचंद्र शुक्ल
⇒ यह एक कवि ही हिंदी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है । इनकी वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों व्यवहारों तक है ।-रामचंद्र शुक्ल
⇒ तुलसी स्मार्त वैष्णव थे। … हिन्दी काव्य में प्रौढ़ता युग का आरंभ तुलसी से हुआ। रामचंद्र शुक्ल
⇒ “कलि कुटिल जीव विस्तार हित बाल्मीकि तुलसी भयो त्रेता काव्य निबंध करी शत कोटि रमायन। इक अच्छर उच्चरै ब्रह्म इत्यादि परायन । अबभक्तन सुखदेन बहुरि लीला विस्तारी। राम चरन रस मत्त रहत अहनिशि व्रतधारी।।” -नाभादास कृत भक्तमाल (तुलसीदास के विषय में)
⇒ भक्तिकाल का सुमेरू -नाभादास (भक्तमाल में )
⇒ कलिकाल का वाल्मीकि -नाभादास
⇒ तुलसी को मानस का हंस किसने कहा है । -अमृतलाल नागर
⇒ किसने कहा है कि तुलसी की भाषा पुरानी बैसवाड़ी है । -बिम्स
⇒ तुलसी आनंद वन का वृक्ष है । डॉ. मधुसूदन सरस्वती
⇒ अकबर से भी महान एवं अपने युग का महान् पुरुष -स्मिथ
⇒ उस युग में किसी को तुलसी के समान सूक्ष्मदर्शिनी और सारग्राहिणी दृष्टि नहीं मिली थी -हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ कविता करके तुलसी न लसे, कविता ही लसी पा तुलसी की कला । -हरिऔध
⇒ तुलसी धर्मध्वज हैं। -चतुरसेन शास्त्री
⇒ जायसी के बाद तुलसी ने तो अवधी को मानस के कोमल कलेवर में अमर कर दिया। -डॉ. रामकुमार वर्मा
⇒ ‘रामचरितमानस’ के सन्दर्भ में रहीमदास ने लिखा है
‘रामचरित मानस विमल, सन्तन जीवन प्रान ।
हिन्दुवान को वेद सम, यवनहि प्रकट कुरान ॥’
⇒ भिखारीदास ने तुलसी के सम्बन्ध में लिखा है कि
‘तुलसी गंग व भए सुकविन के सरदार।
इनके काव्यन में मिली भाषा विविध प्रकार ॥’
⇒ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तुलसी के संबंध में लिखा है-
⇒ ” भाषा पद्य के स्वरूप को लेते हैं तो गोस्वामीजी के सामने कई शैलियाँ प्रचलित थीं जिनमें से मुख्य हैं –
(क) वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति,
(ख) विद्यापति और सूरदास की गीत पद्धति,
(ग) गंग आदि भाटों की कवित्त सवैया पद्धति,
(घ) कबीरदास की नीति सम्बन्धी बानी की दोहा पद्धतिजो अपभ्रंश से चली आती थी और
(ङ) ईश्वरदास की दोहे चौपाई वाली प्रबन्ध पद्धति इस प्रकार भाषा के दो रूप (अवधी और ब्रज) और रचनाकी पाँच प्रमुख शैलियाँ साहित्य क्षेत्र में गोस्वामीजी को मिली।”
⇒ ब्रजभाषा तब भी इस बारे में कुछ समझ से काम लेती है लेकिन तुलसी बाबा को तो हम अपनी अवधी में लुटिया ही डुबोने के लिए तैयार दीखतेहैं। शायद बाबा को मानस पर विश्वनाथ की मुहर लगवानी थी। -राहुल सांकृत्यायन, (हिंदी काव्यधारा)
⇒ रामनाम के प्रताप से जूठन बीनकर खानेवाला तुलसीदास -रांगेय राघव
⇒ तुलसी का भक्तिमार्ग केवल सवर्ण हिंदू जनता की सांस्कृतिक एकता का प्रतिपादन करता है -यशपाल
⇒ तुलसीदास जैसे महान् कवि को आँखें मूँदकर भला-बुरा कहना, आलोचना के नाम पर साहित्य के बदले व्यक्ति पर कीचड़ उछालना, मार्क्सवादीदृढ़ता का परिचायक नहीं यह अंधी उग्रवादिता है या संकीर्णता । -डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी