मीराबाई का जीवन परिचय, mirabai ka jiwan parichay
मीराबाई का जन्म 1504 ईसवी में राजस्थान के चेकड़ी नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम राव रतन सिंह था। मीराबाई का विवाह 12 वर्ष की आयु में 1516 ईस्वी में चित्तौड़ के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज से हुआ। 7 वर्ष पश्चात भोजराज की मृत्यु हो गई। भोजराज के चाचा विक्रम ने इन्हें बहुत यातनाएं दी।
“सांप पिटारा राणा भेज्यो, मीरा हाथ दियो जाय।
विष का प्याला राणा भेज्या, अमृत दीन्ह बनाय।।”
यातनाओं से परेशान होकर मीराबाई घर छोड़कर वृंदावन चली गई। जहां पर इनकी भेंट जीव गोस्वामी से हुई वहां से मीरा द्वारका चली गई। जहां रणछोड़ मंदिर में कृष्ण लीला और आत्म विरह वेदना का निवेदन करने लगी। मीरा ने कृष्ण को बाल सनेही कहा है मीरा के गुरु रैदास थे।
“गुरु मिल्या रैदास, जो दीन्ही ग्यान की गुटकी।”
मीरा तुलसीदास के समकालीन थी। मीरा ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का वर्णन तुलसी से किया है।
“स्वस्ति श्री तुलसी कुल भूषन दूषन हरन गोसाई।
बारही बार प्रणाम करहुँ, अब हरहुं शोक समुदाई।।”
इसके प्रत्युत्तर में तुलसी ने विनय पत्रिका की एक पंक्ति मीरा को भेजी
“जाके प्रिय न राम वैदेही, सो नर तजिय कोटि वैरी सम जदपि परम सनेही।”
मीरा प्रसिद्ध अलवार कवि अंडाल की भांति कृष्ण को अपना पति मानकर अपनी भावनाएं नटवरनागर कृष्ण के चरणों में अर्पित की है
“जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।”
मीराबाई की रचनाएं
1-गीत गोविंद की टीका
2-नरसीजी का मायरा
3-गीत गोविंद की टीका
4-राग गोविंद
5-सोरठा के पद
6-मल्हार राग
7-मीरा की गरबी
मीराबाई के कथन
(1) बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।
(2) मन रे परसि हरि के चरन ।
सुभग सीतल कमल कोमल त्रिविध ज्वाला हरन ॥
(3) घायल की गति घायल जानै और न जाने कोई।
(4) जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोइ।
(5) जोगी, मत जा, मत जाइ पाइ परूँ चेरी तेरी हौ
प्रेम-भगति को पड़ा ही न्यारो हमको गैल बता जा ।
(6) पग बाध घुँघुर्या नाचा री।