रसखान का जीवन परिचय

रसखान का जन्म 1533 ई. में और मृत्यु 1618 ई. में हुआ था |

 रसखान दिल्ली के निवासी थे और पठान बादशाही वंश के थे |

 रसखान की अंतिम कृति प्रेमावाटिका है | इसमें दिल्ली छोड़कर गोवर्धन जाने का वर्णन किया गया है |

 रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था । रसखान कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवियों में थे| 

 हिन्दी के मुसलमान कवियों में रसखान बहुत प्रसिद्ध है भारतेंदु ने ठीक ही लिखा था- “इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिक हिन्दू वारिए।”

 रसखान जाति के पठान थे और इनका शाही खानदान से संबंध था- “छिनही बादिसा-वंश की ठसक छाँड़ि रसखान ।”

 हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार रसखान नाम से दो मुसलमान भक्त हुए –

  • एक सैयद इब्राहिम पिहानीवाले और दूसरे गोसाईं विठ्ठलनाथ के कृपापात्र शिष्य सुजान रसखान।”

 सूर की भाँति रसखान वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित थे और इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली थी। इन्होंने कृष्ण की सखा-भाव से उपासना की है। इनकी रचनाएँ हैं- प्रेमवाटिका (1614 ई.), सुजान रसखान, अष्टयाम, दानलीला |

 प्रेम का सुंदर स्वरूप, चलती हुई ब्रजभाषा का रूप, ब्रजभूमि से प्रेम, उपालंभ इत्यादि की दृष्टि से रसखान का काव्य बेजोड़ है। इनके काव्य का मुख्य वर्ण्य–विषय प्रेमाभक्ति है। इन्होंने गेय पद न लिखकर कवित्त और सवैये लिखे हैं रसखान की भाषा ब्रजभाषा थी ।

 सरल, हृदयग्राही और रसपूर्ण भाषा के प्रयोग के कारण रसखान को ‘पीयूषवर्षी‘ अथवा ‘अमृत की वर्षा करने वाला कवि कहा गया है। इतना कम लिखकर इतना अधिक प्रसिद्ध होने वाला मध्यकाल में दूसरा कवि नहीं हुआ।

 252 वैष्णव वार्त्ता में इनके यौवनकाल में कुत्सित प्रेम-भावना का उल्लेख हुआ है। तुलसी ने रामचरितमानस सर्वप्रथम रसखान को सुनाया था।

रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि- “प्रेम के ऐसे सुंदर उद्गार रसखान के सवैये से निकले कि जनसाधारण प्रेम या शृंगार संबंधी इनके कवित्त – सवैयों को ही रसखान कहने लगे 

 ‘सुजान रसखान’ रचना कवित्त (17), सवैया (181), दोहा (12) और सोरठा (4) छंद में रचित है।

 डॉ. हजारी प्र. द्विवेदी के अनुसार, सुजान रसखान में 129 पद्य हैं, जिनमें अधिकांश सवैया और कवित्त हैं किन्तु प्रेमवाटिका केवल दोहों में लिखी गई है। दोहों की संख्या 53  है। इनकी अन्य रचना ‘दानलीला‘ ग्यारह छंदों की छोटी-सी रचना है।

 रसखान कृत ‘अष्टयाम‘ में संकलित कई दोहों में श्रीकृष्ण के प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयनपर्यन्त उनकी दिनचर्या का सुंदर वर्णन हुआ है । रसखान ने प्रेमवाटिका (53 दोहों की लघु रचना) में राधा-कृष्ण को प्रेमोद्यान का मालिन माली माना है और प्रेम संबंधी गूढ़ विचार प्रकट किये हैं।

सवैया छंद में कृष्णलीला का गान करने वाले सर्वप्रथम कवि रसखान के विषय में रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि “और कृष्णभक्तों के समान इन्होंने गीतिकाव्य का आश्रय न लेकर कवित्त सवैयों में अपने सच्चे प्रेम की व्यंजना की है।” ये बड़े भारी कृष्णभक्त और विठ्ठलनाथजी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि- “सहज आत्मसमर्पण, अखंड विश्वास और अनन्य निष्ठा की दृष्टि से रसखान की रचनाओं की तुलना बहुत थोड़े भक्त कवियों में की जा सकती है।”

 कवि रसखान अपने सवैयों के कारण बेहद चर्चित हैं। इनके सवैये रस की खान हैं ।

रसखान के महत्त्वपूर्ण कथन 

(1) मानुष हो तो वही रसखान बसौं सँग गोकुल गाँव के ग्वारन । (imp)

(2) या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिनू पुर को तजि डारौं (imp)

(3) ब्रह्म मैं ढूढ्यो पुरानन गानन, वेदरिया सुनी चौगुने चायना ॥ (imp)

(4) मोर पखा सिर ऊपर राखिहौ, गुंज की माल गले पहिरौंगी। (imp)
 ओढ़ि पितांबर लै लकुटी बन गोधन ग्वालन संग फिरौंगी ॥

(5) सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहिं निरंतर गावैं (imp)
ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भर छाछ पै नाच नचावै ॥

(6) धूरि भरे अति सोभित स्याम जू वैसी बनी सिर सुन्दर चोटी। (imp)
खेलत खात फिरै अंगना पग पैंजनि बाजति पीरी कछोटी ॥

(7) होती जू पै कूबरी हयाँ सखि भरि लातन मूका बकोटती केती
लेती निकाल हिये की सबै नक छेदि कै कौड़ी पिराई कै देती ॥

(8) कारय उपाय बास डोरिया कटाय । 
नाहिं उपजैगो बाँस डोरिया कटाय ॥

(१) रसखानि कबौं इन आँखिन सो ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।(imp)
 कोटिक हौंकल धौत के धाम करील के कुंजन ऊपर बारौं ॥ 

(10) जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं जान्यों जात बिसेस ।
सोइ प्रेम जेहि जान के रहिन जात कछु सेस ॥

(11) काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सु लै गयो माखन रोटी (imp)

(12) मिली आवो सबै सखीं भागि चलीं (imp)
अब तो ब्रज में बस बांसुरी रहिये

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