सगुण भक्ति का उद्भव और विकास, sagun bhkti ka udbhaw aur vikas

सगुण भक्ति का उद्भव और विकास, sagun bhkti ka udbhaw aur vikas

सगुण भक्ति का उद्भव और विकास पोस्ट में यह पढेंगे की किस स्तर से सगुन भक्ति का उद्भव हुआ और किस स्तर से इसका विकास हुआ| sagun bhkti ka udbhaw aur vikas

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, ” श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है।”

 भक्ति साहित्य में प्रस्थानत्रयी ‘उपनिषद’, ‘गीता’ तथा ‘ब्रह्मसूत्र’ को कहा गया है।

 ‘नारद भक्ति सूत्र’ में भक्ति के ग्यारह (11) भेद माने गये हैं, 

भागवत पुराण में नवधा भक्ति का उल्लेख है जो निम्नलिखित है- 

(1) श्रवण(2) कीर्तन, (3) स्मरण, (4) पादसेवन, (5) अर्चन, (6) वंदन, (7) दास्य, (8) सख्य और (9) आत्मनिवेदन । 

 वैष्णव धर्म में सर्वप्रथम भागवत धर्म आता है। भागवत धर्म के बाद क्रमशः सात्वत, पंचरात्र तथा नारायणी धर्म का उदय होता है। 

 सात्वत धर्म के प्रवर्तक वासुदेव भाने जाते हैं ।

 पांचरात्र में ‘रात्र’ शब्द का अर्थ ज्ञान है। परमतत्त्व, मुक्ति, भुक्ति, योग तथा विषय (संसार) – इन पंचविध ज्ञान-वचन को पांचरात्र धर्म कहते हैं।

 वैष्णव भक्ति का उदय दक्षिण भारत में हुआ। दक्षिण भारत से ही सगुण भक्ति की उत्पत्ति स्वीकार की जाती है।

 वैष्णव भक्ति का आधार ग्रन्थ ‘भागवत महापुराण’ माना जाता है। 

 वैष्णव भक्ति के आदि आचार्य रामानुजाचार्य माने जाते हैं।

 श्री संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य हैं। रामानुजाचार्य का जन्मस्थान कांचीपुरम दक्षिण भारत में है। रामानुजाचार्य के गुरु यादव प्रकाश हैं। रामानुजाचार्य का दर्शन विशिष्ट अद्वैतवाद है।

 ब्रह्म संप्रदाय के प्रवर्तक माध्वाचार्य माध्वाचार्य का जन्म स्थान बेलिग्राम है। मध्वाचार्य का दर्शन द्वैतवाद है।

 रुद्र संप्रदाय के प्रवर्तक विष्णु स्वामी हैं। विष्णु स्वामी का दर्शन शुद्धा द्वैतवाद है।

 सनकादि संप्रदाय के प्रवर्तक निंबार्काचार्य हैं। निंबार्काचार्य का जन्म निंबापुर बेल्लारी जिला कर्नाटक में हुआ था। निंबार्काचार्य के गुरु नारद मुनि थे। निम्बार्काचार्य का दर्शन द्वैताद्वैतवाद है।

 रुद्र संप्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य है। वल्लभाचार्य का जन्म स्थान चंपारण है। वल्लभाचार्य के गुरु विष्णु स्वामी थे। वल्लभाचार्य का दर्शन शुद्धाद्वैतवाद था।

 ‘रुद्र’ सम्प्रदाय के आदि प्रवर्तक विष्णु स्वामी हैं किन्तु कई विद्वान इसका प्रवर्तक वल्लभाचार्य को मानते हैं। 

 दक्षिण भारत के वैष्णव भक्तों को आलवार कहते हैं। आलवारों ने कृष्ण और राम दोनों की आराधना की है।

 आलवारों का सम्बन्ध दक्षिण भारत के केरल प्रान्त से था। इनकी संख्या 12 है।

 आलवार संतों में सर्वाधिक लोकप्रिय शठकोप थे।

 सातवें आलवार संत केरल के चेरवंशी राजा कुलशेखर ने ‘पेरुमील तिरुभोवि’ नामक ग्रन्थ की रचना की। 

 आलवार सन्तों के लोक प्रचलित चार हजार पदों को ‘नलियार दिव्य प्रबन्धम’ शीर्षक से चार भागों में रंगनाथ मुनि या रघुनाथाचार्य ने संकलित किया। रघुनाथाचार्य या रंगनाथ मुनि को श्री सम्प्रदाय का प्रथम आचार्य माना जाता है।

 रंगनाथ मुनि ने ‘न्यायतत्व’ नामक एक दार्शनिक ग्रन्थ संस्कृत में लिखा श्री सम्प्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य के पूर्ववर्ती आचार्य काल क्रमानुसार निम्नलिखित हैं-

रंगनाथमुनि —पुण्डरीकाक्ष —राम मिश्र —यामुनाचार्य —रामानुजाचार्य 

 ‘श्री सम्प्रदाय’ में राम को आराध्य माना जाता है तथा ‘ब्रह्मः’, ‘रूद्र’ एवं ‘सनकादि’ में  कृष्ण को आराध्य स्वीकार किया जाता है।

 अहिंसावाद और प्रपत्तिवाद वैष्णव सम्प्रदाय का वैशिष्ट्य है। प्रपत्तिवाद को शरणागति भी कहा जाता है। 

 शंकराचार्य का जन्म 8वीं शती के आसपास केरल में हुआ था।

 शंकराचार्य ने ‘अद्वैतवेदान्त’ की स्थापना की तथा प्रस्थानत्रयी का भाष्य किया। शंकराचार्य के गुरु का नाम गोविन्द योगी था। शंकराचार्य ने स्मार्त सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया जो पंचदेवोपासना पर आधारित है ।

 कुछ विद्वान शंकराचार्य को ‘प्रच्छन्न बौद्ध’ भी कहते हैं क्योंकि इनके गुरु गौड़पाद बौद्ध थे।

 दक्षिण के शैव भक्तों को ‘नयनार’ कहा जाता है जिनकी संख्या 63 बताई जाती है। दक्षिण के आलवार संतों की भाषा तमिल थी।

 आलावारों में प्रसिद्ध एकमात्र महिला आन्दाल (गोदा) को दक्षिण की मीरा कहा जाता है।

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