अलंकार के उदाहरण । alankar ke udaharan

अलंकार के उदहारण इस पोस्ट में दिए गए है | अलंकार के इस उदाहरण में शब्दालंकार के उदाहरण  और अर्थालंकार के उदाहरणों को उनके  विभिन्न भेदों या प्रकार को भी सम्मिलित किया गया है | अलंकार के इस उदाहरण में उन्हीं उदाहरणों को सम्मिलित किया गया है जो विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं या फिर आगामी किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में पूछे जा सकते हैं | अलंकार की सम्पूर्ण जानकारी के लिए अलंकार सम्प्रदाय की जानकारी होना आवश्यक है | हिंदी व्याकरण अलंकार, अलंकार कक्षा 9

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शब्दालंकार के उदाहरण 

शब्दालंकार के उदाहरणों को पहचानने के लिए शब्दों पर ध्यान देना चाहिए | शब्दालंकार में शब्दों के माध्यम से चमत्कार उत्त्पन्न होता है | शब्दालंकार में शब्द की प्रधानता होती है | शब्दालंकार में हमलोग इसके अंतर्गत आने वाले सभी अलंकारों के उदाहरणों को देखेंगे 

अलंकार के विस्तृत नियम व पहचान 

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भवरूज परिवारू।। (छेकानुप्रास)
कंकन किंकन, नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय सुनि।। (छेकानुप्रास)
जन रंजन भंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप| (छेकानुप्रास)

देह दुलहिया की ज्यों ज्यों बढ़े ज्योति। (वृत्यानुप्रास)
तरनि तनुजा तट तमाल तरूवर बहु छाए। (वृत्यानुप्रास)
चित चैत की चाँदनी चाव चढ़ी। चर्चा चलिब की चलाइये न। (वृत्यानुप्रास)
कूलन में, केलिन में कछारन में,कुंजन में, क्यारिन में कलित किलकंत हैं। (वृत्यानुप्रास)
बंदौ गुरु पद पदुम परागा। सुरूचि सुबास सरस अनुरागा।। (वृत्यानुप्रास)

मेरे खेल बड़े जोखिम के प्रियतम मेरे मैं प्रियतम के| (लाटानुप्रास)
मन मो रमा नैन तो मन मोर मानै ना। (लाटानुप्रास)
पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग नरकता हेतु। (लाटानुप्रास)
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरकता हेतु।।

कुटिल, कुचाल, कुकर्म छोड़ दे।
विमल वाणी ने वीणा ली
कायर क्रुर कपूत कुचाली यों ही मर जाते हैं।
मधुर-मधुर मुसकान मनोहर, मनुज वेश का उजियाला।

नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे
कूकै लगी कोइलें कदंबन पे बैठि फेरि।
सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं।
सुन सिय सत्य असीम हमारी।
पूजहिं मन कामना तुम्हारी।।

यमक अलंकार के उदाहरण 

विजन डुलाती तो वे विजन डुलाती है
तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है।
नगन जड़ाती तो वे नगन जड़ाती है।
तरणी के ही संग तरल तरंग में ।
तरणी डूबी थी हमारी ताल में।।

श्लेष अलंकार के उदाहरण 

बिन घनश्याम धाम ब्रजमण्डल में
उधौ नित बसति बहार बरसा की है।
अजौ तर्यौना ही रहै श्रुति सेवक इक रंग

मधुवन की छाती देखो सुखी इसकी कितनी कलियाँ
मेरी भवबाधा हरौ राधा नागरी सोई।
जा तन की झाई परै, श्यामु हरित, दुतिहोय।।
रावण सिर सरोज बन चारी, चल रघुवीर सिलीमुख धारी।

अलंकार के विस्तृत नियम व पहचान 

वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण 

प्यारी काहे आज तुम वामा हौ कतरात।
हम तो हैं वामा सदा का अचरज की बात।।
लिखन बैठि जाकी सबी, गहि गहि गबर गरूर।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे क्रुर।।
आयें हूँ मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहिं।
आये हूँ मधुमास के प्रियतम ऐहै नाहिं।

पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार के उदाहरण 

आज कितनी सदियों के बाद ।
देवि, कितनी सदियों के बाद।।
मधुमास में दास जुबिन बसै, मनमोहन अहै, अहै, अहै

पुनरुक्ति वदाभास अलंकार

समय जा रहा है और काल है आ रहा।
स्पष्टीकरण – उक्त पंक्ति में काल और समय एक ही अर्थ के सूचक हैं।

होते विकम्पित भी नहीं क्या, अचल भूधर भी यहाँ
सचमुच उलटा भाव, भुवन में छा रहा।।

अर्थालंकार के उदाहरण 

अर्थालंकार के उदाहरण की पहचान अर्थ के आधार पर करते हैं | पंक्ति या छंद का अर्थ जाने बिना अर्थालंकार की पहचान नहीं कर सकते हैं | इस प्रकार के उदाहरण को सर्वप्रथम ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए तत्पश्चात अर्थ समझने का प्रयास करना चाहिए |

उपमा अलंकार के उदाहरण

जुगनु से उड़ मेरे प्राण।
वह इष्टदेव के मन्दिर की पूजा सी शान्त भाव में लीन।
मुख मयंक सम मंजु मनोहर
जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सी छाई।

नैन चुवहि जस महवट नीरु।
रेगिं चली जस बीर बहूटि।
नीले घनसावक से सुकुमार।
संत हृदय नवनीत समाना।

यह देखिए अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमन करूणा अयन।
नदियाँ जिनकी यशधारा सी बहती हैं, अब भी निशिवासर
सखी बसंत से कहाँ गये वे, मैं उल्का सी यहाँ रही।

कुलिस कठोर सुनत कटु बानी।
विलपत लखन सिय सब रानी।।
तरुण अरुण वारिज नयन।
छिन्न पत्र मकरन्द लुटी सी – ज्यों मुरझाई छुई कलियां
हरिपद कोमल कमल से

रूपक अलंकार के उदाहरण 

सखि नील नभस्सर से उतरा यह हंस अहा तरता-तरता। (सांग रूपक)
अब तारक मुक्तिक शेष नहीं निकला जिनको तरता-तरता।।
उदित उदयगिरी मंच पर रघुवर बाल पतंग। (सांग रूपक)
विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।।

पायोजी मैं तो राम रतन धन पायो। (निरंग रूपक)
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास (निरंग रूपक)
संसार डूबा जा रहा मद मोह पारावर में। (निरंग रूपक)

सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका
मैया मै तो चन्द्र खिलौना लैहों
संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो
वन सारदी चंद्रिका चादर ओढे।

खिले हजारो चांद तुम्हारे नयनो के आकाश में।
राम कथा कलि पनंग भरनी।
पुनि विवेक पावक कह अरनी।।
कमल नैन छांडि महातम और देव को धावै।
पाप पहार प्रगट भई सोई।
भरी क्रोध जल जाइ न जोई।।

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के।
भज मन चरण कमल अविनाशी।
असुंवन जल सीचिं-सीचिं प्रेम बेलि बोई।
दुलहिन गावहुं मंगलचार, हमरे घर आये राजा राम भरतार।

इस हृदय कमल का घिरना, अलि अलकों की उलझन में।
माया दीपक नर पतंग।
बंद नहीं अब भी चलते नियति नटी के कार्य कलाप।
हैं शत्रु भी यों मग्न जिसके शौर्य पारावर में।
नैनन की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय।
पलकों की चिक डारि कै, पिय को लिया रिझाय।।

लखि निसकलंक मयंक मुख, सुख पावत सखि! नैन।
बीती विभावरी जाग री ! अंबर पनघट में डुबो रही। तारा घट उषा नागरी।
संगम सिहासन सुठि सोहा, छत्र अक्षयवट मुनि मन मोहा।
चंवर जमुन अरु गंग तरंगा, देखि होई दारिद दुख भंगा।।

विपति बीच वर्षा ॠतु चेरी, भुई भई कुमति कैकेयी केरी।
पाइ कपट जल अंकुर जामा, वर दोउ दल दुख फल परिनामा।।
तुलसी भव व्याल ग्रसित, नव सरग उरग रिपु गामी।
पवन तनय कौ जानिये, पंख रहित खग राय।
कांति किरन मग, पवन गति इनसौ रहित लजाय।।
अपलक नभ नील नयन विशाल।
दुख है जीवन तरु के मंल।

अलंकार के विस्तृत नियम व पहचान 

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा 

धाये धाम काम सब त्यागी, मनहुॅ रंक निधी लुटन लागी। (वस्तुत्प्रेक्षा)
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। (वस्तुत्प्रेक्षा)
मनहुॅ नीलमणि शैल पर आतप परयौ प्रभात।।
सहमि परेउ लखि सिंह नहि मनहुॅ वृद्ध गजराज। (फलोत्प्रेक्षा)
उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ।।

सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात ।।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के। मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नौकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झौंकों से ।।
चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन
मानहु सुरसरिता विमल जल बिछुरत जुग मीन ।।

मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा।
सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा। ले चला साथ में तुझे कनक ज्यों भिक्षु लेकर स्वर्ण-झनक ।
मिटा मोदु मन भए मलीने
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे ।
मनहुँ मकर सुधारस, कीड़त आतु अनुरागत।

धूम समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की।
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये ।।
नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ बन बीच गुलाबी रंग।।
हरषहि निरखि राम पद अंका। मानहुँ पारसु पायउ रंका।

जान पड़ता नेत्र देख बड़े-बड़े हीरकों में गोल नीलम जड़े।
पद्म रागों से अधर मानो बने। मोतियों से दाँत निर्मित है घने।। (वस्तुत्प्रेक्षा)
फूले कास सकल महि छाई। जनु बरसा रितु प्रगट बुढ़ाई ।।
मानो कठिन आंगन आंगन चली, ताते राते पाय । (हेतुत्प्रेक्षा)
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू।
चहत उड़ावन फकिपहारू ।।
भानु सुता जल पै परति, बाल भानु- छबि सोह।
मनहुँ स्याम तनु पै पर्यो, पीत बसन मन मोह।।

संदेह अलंकार का उदाहरण

सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
कि सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है।।
परिपूरण सिंदूर पूर कैधों मंगलघट।
किधौ शक्र को छत्र मढ्यो, किधौ मणिक मयूख पट।।

तारे आसमान के हैं आये मेहमान बनि।
कैंधो केशो में निशा ने मुक्तावली सजायी है।।
को तुम्ह श्यामल गौर सरीरा, छत्री रुप फिरहु बन बीरा।
की तुम्ह तीनि देव महं कोऊ, नर नारायण की तुम्ह दोऊ।।

भ्रान्तिमान अलंकार के उदाहरण

मुन्ना ने मम्मी के सिर पर देख-देख दो चोटी।
भाग उठा भय मानकर सिर पर सांपिन लोटी।।
कपि करि हृदय विचारि, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अंगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ।।

अधरो पर अलि मंडराते, केशो पर मुग्ध पपीहा।
वृन्दावन विहरत भिरै, राधा नन्द किशोर ।
नीरद यामिनी जानि संग डोलै बोलै मोर।।

कुहू निशा में परछाई को प्रेत समझकर हुआ अचेत।
भ्रमर परत शुक तुण्ड पर, जानत फूल पलास।
शुक ताको पकरन चहत, जम्बु फल की आस।।
ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उसको जान

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण

इति आवत चलि जात उत चली छ सातक हाथ।
पत्राहि तिथि पाइये वा घर के चहुँ पास।
नित्य प्रति पुन्यौई रहै आनन ओप उजास।

बांधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरो से।
मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ है हीरों से।।
अनियारे दीरघ नयनि, किती न तरुनि समान।
वह चितवनि औरें कछू, जिहि बस होत सुजान ।।

वह सजीव रचना थी युग की, पल में आकर झलकी।
नहीं समायी जड़ जंगम, छबि उनकी जो छलकी
छाले परिबे केँ उरनि, सकै न हाथ छुवाई।
झिझकति हिया गुलाब कै, झँझावत पाय ।।
वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ,
धड़ से जयद्रश का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।(मैथिली शरण गुप्त – जयद्रथ वध)

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण

करी फुलैल को आचमन मिठो कहत सराहि।
रे गंधी मतिमंद तू, इतर दिखावत काहि।। (imp)
नही पराग नही मधौर मधु नही विकास इहि काल।
अली कली ही सो बंध्यो, आगे कौन हवाल।। (imp)
माली आवत देखकर कलियन करी पुकारी।
फूले-फूले चुन लिए कली हमारी बारि।। (imp)

मानस सलिल सुधा प्रति पाली जिअइ कि लवण पयोधि मराली ।।
नव रसाल वन बिहरन सीला। सोह कि कोकिल विपिन करीला।।
स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा, देखु विहंग विचार।
बाज पराये पानि पर, तू पच्छीनु न मार।
को छूट्यो यहि जाल, परि कत कुरंग अकुलाय।
ज्यों-ज्यों सुरभि भज्यो चहै, त्यों-त्यों अरुझत जाय।।

धन्य सेस सिर जगत हित, धारत भुव को भारि।
बुरो बाघ अपराध बिन, मृग को डारत मारि।।
मातु पितहिं जनि सोच बस, करसि महीप किसोर ।
बड़े प्रबल सों बैर करि, करत न सोच विचार।
ते सोवत बारूद पर, कटि मैं बाँधि अंगारा ।।

विरोधाभास अलंकार के उदाहरण

जाकि कृपा पंगु गिरि लांघै। (imp)
शीतल ज्वाला जलती है, ईंधन होता दृग जल का।
यह व्यर्थ सांस चल-चलकर करती है काम अनिल का।। (imp)

विकसते मुरझाने को फूल, दीप जलता होने को मंद।
बरसते भर जाने को मेघ, उदय होता छिपने को चांद।। (imp)
लहरों में प्यास भरी थी, भँवर पात्र था खाली ।
मानस का सबरस पीकर, तुमने लुड़का दी प्याली।।

सुलगती अनुराग की आग जहाँ, जल से भरपूर तड़ाग वहाँ ।
जाकी सहज स्वासि स्रुति चारी।
सो हरि पढ़ कौतुक भारी ।।

बैन सुन्या जब ते मधुर, तब ते सुनत न बैन
तरी को ले जाओ मझधार डूबकर हो जाओ पार ।।
मूक होइ वाचाल, पंगु चड़इ गिरिबर गहन ।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवउ सकल कलि मल दहन ।।(imp)

असंगति अलंकार के उदाहरण

हृदय घाउ मेरे पीर रघुबीरै।
पाइ सजीवन जागि कहत यों, प्रेम पुलकि बिसराइ सरीरै ।
लागत जो कंटक तिहारे पाँइ प्यारे हाइ ।
आइ पहिले-ही हिय बोधत हमारे है।।

गोकुल दधि बेचन चली, पहुँ बन हरि पास गई रही हरि भजन को, ओटल लगी कपास ।। (imp)
पलकि पीक अंजन अधर धरे महावर भाल।
आजु मिलै सो भलि करी भले बने हो हाल (imp)

विभावना अलंकार के उदाहरण

आनन रहित सकल रस भोगी, बिनु वानी वक्ता बड़ भोगी।
जीन नहीं पै जिये गोसाईं, कर नहीं पै करै सवाई।
शून्य भीति पर चित्र रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेर।

बदन हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहि ।
लाज भरी आँखियाँ बिहँसी, बलि बोल कहे बिनु उत्तर दीन्हीं ।
मरत बिना ही मीच रिपु, सुनि सिवराज प्रताप । जाचक बिन जाँचे लहै, सब चित चाही आप ।।

विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण

नेह न नैननु कौ कछू, उपजी बड़ी बलाइ ।
नीर भरे नितप्रति रहँ, तऊ न प्यास बुझाइ ।।
त्यों त्यों प्यासेई रहत, ज्यों-ज्यों पियत अघाइ।
सगुण सलोने रूप की, जु न चख तृषा बुझाइ ।।

बरसत रहत अछेह वै, नैन वारि की धार ।
नेकहु मिटति न हैं, तऊ तो वियोग की झार ।।
नैकु बुझति नहीं बिरहानल, नैननि नीर-नदी बहने पर।

लाग न उर उपदेश, जदपि कह्यौ सिव बार बहु
कहा कहै हरि के गये, बिरह बसी अनुरागि।
बहत नयन सौं नीर नद, तदपि दहति बिरहागि ।।

प्रतीप अलंकार के उदाहरण

तरनि-तनूजा नीर सोहत स्याम शरीर सम।
तन मन की सब पीर, दरसन-परसन।।
विद्युत की द्युति फीकी लगे, रघुवीर प्रिया मुख के आगे।
चाँदनी चंद की मन्द परै, विद्यु पाई मनौ निज कोमुद माँगे ।।
नाघहिं खग अनेक बारीसा।
सूर न होहिते सुनु सब कीसा।।

भूपति भवन सुभायँ सुहावा ।
सुरपति सरनु न पटतर आवा।।
संध्या फूली परम प्रिया की कांति सी है दिखाती।
इन दशनों अधरो के आगे क्या मुक्ता हैविद्रुम क्या ?

उसी तपस्वी से लम्बे थे। देवदार दो चार खड़े ।
देत मुकुति सुन्दर हरषि, सुनि परताप उदार।
है तेरी तरवार सी, कालिन्दी की धार।।
सकल सुख की नींव, कोटि मनोज शोभा हरनि।
तीरक्ष नैन कटाच्छन मन्द काम के बान

समासोक्ति अलंकार के उदाहरण

नहीं पराग नहीं मधुर मधु, नहीं विकास इह काल।
अली कली हौं सो विधौ आगे कौन हवाल।।
अस्ताचल को रवि करता है, संध्या समय गमन।
विरह व्यथा से हो जाती है, वसुधा सजल नयन।।

व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण

सम सुबरन सुखमाकर सुजस न थोर।
सिय अंग सखि कोमल कनक कठोर।।
गुण मयंक सो है, सखि मधुर वचन सविशेष।
साधू ऊंचे शैल सम, किन्तु प्रकृति सुकुमार।

अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण

जो बड़िन को लघु कहै नाहि रहिम घटि जाय।
गिरिधर मुरलीधर कहै कछु दुख मानत नाहिं।।
बड़े न हुजै गुनन बिनु विरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सो कनक गहनो गढ़ो न जाय।।

कछु कहि नीच न छेड़िये, भलो न वाको संग।
पाथर डारे कीच में, उछरि बिगारत अंग ।।
टेढ़ जानि बदौ सब काहू । वक्र चंद्रमहि ग्रसै न राहू ।।

सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय ।
पवन जगावत आग को, दीपहि देत बुझाय।।
कारन ते कारज कठिन, होय दोष नहिं मोर।
कुलिष अस्थि ते उपल तें, लोह कराल कठोर

दृष्टांत अलंकार के उदाहरण

पगी प्रेम नंदलाल कै हमै न भावत भोग।
मधुप राज पाय के भीख न मांगत लोग।।
एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियां पति का क्या सह सकती हैं। ।

उदाहरण अलंकार के उदाहरण

सबै सहायक सबल को, कोई न निबल सहाय।
पवन जगावत आग ज्यों दीपहिं देहि बुझाय।।
निकी पै फिकी लगै बिनु अवसर की बात।
जैसे बरनत युद्ध में, रस सिंगार न सुहात।।

बसै बुराई जासु तन ताही को सन्मान।
भलौ-भलौ को छाडियौ खोटे ग्रह जप दान।।

अलंकार के विस्तृत नियम व पहचान 

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