हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन

हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन का विस्तृत अध्ययन करेंगे | इस लेख से हिंदी वर्णमाला का नोट्स तैयार किया जा सकता है | प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी वर्णमाला से बनने वाले अति महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को ध्यान में रखा गया है |

वर्ण किसे कहते हैं-

वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसके खंड न हो सकें | स्वर या व्यंजन के संयुक्त रूप को वर्ण कहते हैं | वर्णों की कुल संख्या 52 होती है 

वर्णमाला किसे कहते हैं-

वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं |

वर्ण के भेद– वर्ण के दो भेद हैं 1- स्वर 2- व्यंजन

स्वर वर्ण का संपूर्ण अध्ययन

स्वर उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण बिना अवरोध अथवा बिना विघ्न-बाधा के होता है | स्वर की कुल संख्य 11 (अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ,ऋ)  है |

स्वर के भेद

स्वर के तीन भेद हैं | 1- ह्रस्व 2- दीर्घ 3- प्लुत

ह्रस्व स्वर 

जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय ह्रस्व स्वर कहते हैं | इनकी कुल संख्या चार है जिसे मूल स्वर भी कहते हैं | इन्हें एकमात्रिक स्वर भी कहते हैं |

दीर्घ स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय उसे दीर्घ स्वर कहते हैं | इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं |

अ+अ=(आ) | इ+इ=(ई) | उ+उ=(ऊ) | अ+इ=(ए) | अ+ए=(ऐ) | अ+उ=(ओ) | अ+ओ=(औ)  

प्लुत स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में तीन मात्रा का समय लगे उसे प्लुत स्वर कहते हैं| वैदिक भाषा में इसका प्रयोग होता है | इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं | ओ३म

उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर के भेद

उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर के छह भेद होते हैं|

कंठ्य- अ,आ | तालव्य- इ,ई | मूर्धन्य- ऋ | ओष्ठ्य- उ,ऊ | कंठ्यतालु- ए,ऐ | कंठओष्ठव- ओ,औ

उच्चारण प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद

उच्चारण प्रयत्न के आधार पर स्वर के चार भेद होते हैं | 1- संवृत्त 2- अर्द्ध संवृत्त 3- अर्द्ध विवृत्त 4- विवृत्त

1- संवृत्त- जिसके उच्चारण में मुंह लगभग बंद रहता है उसे संवृत्त कहते हैं | इसके अंतर्गत इ,ई,उ,ऊ आते हैं |

2- अर्द्ध संवृत्त- जिसके उच्चारण में मुंह आधा बंद रहता है उसे अर्द्ध संवृत्त कहते हैं | इसके अंतर्गत ए,ओ आते हैं |

3- अर्द्ध विवृत्त- जिसके उच्चारण में मुंह आधा खुला रहता है उसे अर्द्ध विवृत्त कहते हैं | इसके अंतर्गत ऐ,औ आते हैं |

4- विवृत्त- जिसके उच्चारण में मुंह लगभग पूरा खुला होता है उसे विवृत्त कहते हैं | इसके अंतर्गत अ आते हैं |

जिह्वा स्थान के आधार पर स्वर के भेद

जिह्वा स्थान के आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं | 1- अग्र स्वर 2- मध्य स्वर 3- पश्च स्वर

1- अग्र स्वर-  जिसका उच्चारण जिह्वा के अग्र भाग से होता है उसे अग्र स्वर कहते हैं | इसके अंतर्गत इ,ई,ए,ऐ आते हैं |

2- मध्य स्वर- जिसका उच्चारण जिह्वा के मध्य भाग से होता है उसे मध्य स्वर कहते हैं | इसके अंतर्गत अ आते हैं |

3- पश्च स्वर- जिसका उच्चारण जिह्वा के पिछले भाग से होता है उसे पश्च स्वर कहते हैं | इसके अंतर्गत उ,ऊ,ओ,औ आते हैं |  

व्यंजन वर्ण का सम्पूर्ण अध्ययन

जिसका उच्चारण स्वर की सहायता से होता है उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं | व्यंजन की कुल संख्या 33 होती है | व्यंजन को उच्चारण की दृष्टि से चार भागों में विभाजित किया गया है | 1- स्पर्श व्यंजन 2- अन्तस्थ व्यंजन 3- ऊष्म व्यंजन 4- संयुक्त व्यंजन

1- स्पर्श व्यंजन

जिन व्यंजन के उच्चारण कंठ, तालु, मूर्धन्य, दन्त्य, ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं उसे स्पर्श व्यंजन कहते हैं | स्पर्श व्यंजनों की कुल संख्या 25 होती है | इसे कु,चु,टु,तु,पु भी कहते हैं |

क वर्ग- क,ख,ग,घ,ङ (कंठ्य)

च वर्ग- च,छ,ज,झ,ञ (तालव्य)

ट वर्ग- ट,ठ,ड,ढ,ण (मूर्धन्य)

त वर्ग- त,थ,द,ध,न (दन्त्य)

प वर्ग- प,फ,ब,भ,म (ओष्ठ्य)

2- अन्तस्थ व्यंजन

य, र,ल,व इनका उच्चारण जीभ, तालु, दांत, और ओठों के परस्पर सटाने से होता है किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता | अत: ये चारो अन्तस्थ व्यंजन ‘अर्धस्वर’ कहलाते हैं |       

3- ऊष्म व्यंजन

ऊष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है| इसके अंतर्गत चार वर्ण आते हैं | श(तालु), ष(मूर्धा), स(दंत), ह(कंठ)  

4- संयुक्त व्यंजन

दो व्यंजनों से मिलकर बने व्यंजन को संयुक्त व्यंजन कहते हैं | (क्+ष=क्ष), (त्+र=त्र ), (ज्+ञ=ज्ञ)

वायुप्रक्षेप के आधार पर व्यंजन के भेद

के आधार पर व्यंजन को दो भागों में विभाजित किया गया है| 1- अल्पप्राण 2- महाप्राण

1- अल्पप्राण

जिस वर्ण के उच्चारण श्वास अल्प मात्रा में निकले उसे अल्पप्राण कहते हैं | स्पर्श व्यंजन के प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पांचवां वर्ण और य, र, ल, व अल्पप्राण के अंतर्गत आते हैं |

2- महाप्राण

जिस वर्ण के उच्चारण में श्वास ज्यादा निकले उसे महाप्राण कहते हैं | स्पर्श व्यंजन के प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण और श, ष, स, ह  महाप्राण के अंतर्गत आते हैं |

नाद की दृष्टि से व्यंजन के भेद

नाद की दृष्टि से व्यंजन के दो भेद होते हैं | 1- सघोष 2- अघोष

1- सघोष

जिस वर्ण के उच्चारण में स्वरतंत्रियाँ झंकृत होती हैं उसे सघोष कहते हैं | स्पर्श व्यंजन के प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाचवां वर्ण और य,र,ल,व,ह  सघोष के अंतर्गत आते हैं | सभी स्वर घोष होते हैं |

2- अघोष

जिस वर्ण के उच्चारण में स्वरतंत्रियाँ झंकृत नहीं होती उसे अघोष कहते हैं | स्पर्श व्यंजन के प्रत्येक वर्ग का पहला, दुसरा वर्ण और श,ष,स अघोष के अंतर्गत आते हैं |

व्यंजन वर्णों के विविधता की दृष्टि से वर्ण के अन्य नाम भी दिए गए हैं |

वतर्स वर्ण किसे कहते हैं  – न,ज,स,र,ल     

उक्षिप्त वर्ण (द्विगुण) किसे कहते हैं – ड़,ढ

लुंठित वर्ण किसे कहते हैं – र

पार्श्विक वर्ण किसे कहते हैं – ल

अर्धस्वर किसे कहते हैं – य,व

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