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रस हिंदी व्याकरण, भेद, अंग, उदाहरण, ras hindi vyakaran
रस हिंदी व्याकरण का अंतर्गत आता है जिसका सीधा संबंध साहित्य से होता है| साहित्यिक आनंद को रस कहते हैं। साहित्य अथवा काव्य की आत्मा रस है इसी रस का स्वाद लेने के लिए पाठक श्रोता या दर्शकसाहित्य पढ़ते सुनते या देखते हैं। यदि कविता या साहित्य में रस ही न मिले तो उसका कोई मूल्य नहीं। इसीलिए संस्कृत के आचार्य विश्वनाथ ने कहा है ‘वाक्यम रसात्मक काव्यम’ अर्थात रसात्मक वाक्य ही काव्य कहा जाता है। ras hindi vyakaran
भरत मुनि के अनुसार रस की परिभाषा
‘विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्ति रसः’
अर्थात विभाव अनुभाव व्यभिचारी भाव के सहयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के अंग
रस के चार अंग होते हैं।
1-विभाव 2-अनुभाव 3- संचारी भाव 4-स्थायी भाव
विभाव किसे कहते हैं व उसके प्रकार
विभाव वे निमित्त या कारण जो काव्य आदि में हृदय की अनुभूतियों को तरंगित करते हैं। विभाव कहलाते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं । 1-आलंबन विभाव 2-उद्दीपन विभाव
1- आलंबन विभाव- इसका शाब्दिक अर्थ है आधार या सहारा जिसके ऊपर उस भाव का उत्पन्न होना अवलंबित रहे आलंबन कहते हैं ।जैसे लक्ष्मण मूर्छा के समय राम उन्हें गोद में लिए बैठे हैं। इसमें लक्ष्मण आलंबन है
आश्रय- जिसमें रस जागृत होता है उसे आश्रय कहा जाता है यदि नायिका आश्रय है तो नायक आलम्बन होगा। उपर्युक्त उदाहरण में राम आश्रय हैं।
2 उद्दीपन विभाव- इसका शाब्दिक अर्थ है उद्दीप्त करना या बढ़ाना जो रस को उद्दीप्त करते हैं या बढ़ाते हैं वह उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।जैसे चांदनी रात, सुगंध, माला, सरोवर, वाटिका इत्यादि
अनुभाव किसे कहते हैं व उसके प्रकार / भेद
अनुभाव का शाब्दिक अर्थ है प्रभाव या महिमा दृढ़ संकल्प भाव का प्रत्यक्ष बोध कराने वाली आश्रय की चेष्टा को अथवा स्थायीभाव का अनुभव कराने वाले भावों को अनुभाव कहते हैं ।
अथवा
आंतरिक मनोभाव के कारण जो शारीरिक व्यंजन होते हैं उनको अनुभाव कहते हैं
अथवा
आलंबन, उद्दीपन विभाव के कारण उत्पन्न भावों को प्रकाशित करने वाले कार्य अनुभाव कहलाते हैं।
अनुभाव के प्रकार
अनुभाव चार प्रकार के होते हैं|
1-सात्विक अनुभाव 2-कायिक अनुभाव 3-वाचिक अनुभाव 4- आहार्य अनुभाव
सात्विक अनुभाव- सात्विक अनुभाव वे है जो सत्य से स्वतः उत्पन्न होते हैं। सात्विक अनुभाव आठ प्रकार के होते हैं । 1-स्तंभ 2-स्वेद 3-रोमांच 4-स्वरभंग 5-विपथु (कंपन्न) 6-वैवर्ण्य 7 अश्रु 8-अचेतक (प्रलय)
कायिक अनुभाव – आश्रय द्वारा आलंबन को प्रभावित करने के लिए या उससे प्रभावित होने के परिणाम स्वरूप प्रयत्नपूर्वक की गईचेष्टाओं को कायिक अनुभाव कहते हैं। जैसे खाने-पीने की चेष्टा करना, चिल्लाना, भागना इत्यादि।
संचारी भाव किसे कहते हैं व उसके प्रकार / भेद
संचारी भाव मनुष्य के मन में उठने गिरने वाले मनोभाव है। ये मनोभाव स्थायी न होकर क्षणिक होते हैं। इनकी कुल संख्या33 होती है। जैसे- आवेग, श्रम, दैन्य, मद, मोह, गर्व, निद्रा, शंका, विषाद, चिन्ता, ग्लानि, आसूया, व्याधि, उन्माद, अमर्ष इत्यादि
स्थायी भाव किसे कहते हैं और उसके भेद / प्रकार
प्रत्येक मनुष्य के चित्त में नौ स्थायी भाव स्थिर होते हैं। ये भाव सुषुप्त अवस्था में सदैव विद्यमान रहते हैं। मान्यता प्राप्त स्थायिभावों की कुल संख्या नौ है।
आचार्य भरत ने आठ स्थायिभावों को मान्यता दी है। भरत ने निर्वेद(शांत) रस को मान्यता नहीं दी है । आनंदवर्धन ने शांत रस को प्रतिष्ठादिलायी, भट्टतौत ने शांत रस को सर्वश्रेष्ठ माना और अभिनवगुप्त ने शांत रस को नवें रस के रूप में स्थान दिया।
रुद्रट ने शांत और प्रेयान रसों को स्वीकृति प्रदान करते स्थायिभावों की कुल संख्या दस मानी है।आचार्य भोज ने शृगार रस को रसराज कहा है। भवभूति ने करुण रस को रसराज कहा।रूपगोस्वामी ने भक्ति रस को स्वतंत्र प्रतिष्ठा दिलायी
रस के प्रकार / भेद
रस के नौ प्रकार या भेद होते हैं। भरतमुनि ने रस के आठ भेद और स्थायिभावों की कुल संख्या आठ मानी है इसके साथ ही साथ आठ रसों के आठ देवता और आठ वर्ण की संकल्पना इन्हीं की है| सर्वमान्य रसों की कुल संख्या नौं ही मानी जाती है|
रस के प्रकार | |||
रस | स्थायिभाव | देवता | वर्ण |
श्रृंगार | रति | विष्णु | श्याम |
हास्य | हास | प्रमथ | श्वेत |
रौद्र | क्रोध | रूद्र | रक्त |
करुण | शोक | यम | कपोत |
वीभत्स | जुगुप्सा | महाकाल | नील |
भयानक | भय | काल | कृष्ण |
वीर | उत्साह | महेंद्रदेव | गौर |
अदभुत | आश्चर्य | ब्रह्म | पीत |
शांत | निर्वेद | ||
वात्सल्य | वत्सल |
भारतमुनि ने चार मुख्य रस ( श्रृंगार, रौद्र, वीर, वीभत्स) और चार गौण रस (करुण, भयानक, अद्भुत, हास्य) को मान्यता दी।
श्रृंगार रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण
श्रृंगार का संबंध स्त्री-पुरुष की रति से है। नायक-नायिका के प्रेम संबंधी क्रिया-कलाप को श्रृंगार रस कहते हैं| श्रृंगार रस को रसों का राजा अर्थात् रसराज कहा गया है।
श्रृंगार रस के भेद
श्रृंगार रस के दो भेद या प्रकार होते हैं |
1- संयोग श्रृंगार 2-वियोग श्रृंगार
संयोग श्रृंगार
जहाँ पर दम्पत्ति के परस्पर दर्शन, श्रवण, स्पर्श, आलिंगन आदि से रति नामक मनोविकार उत्पन्न हो वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है। इस स्थिति में नायक और नायिका मिलन की अवस्था में होते हैं|
संयोग श्रृंगार के उदाहरण
1- कहत नटत रीझत खीझत मिलत जुलत लजियात।
भरे भवन में करत है नैनन ही सों बात।।
2- बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय
सौंह कहै भौहनि हँसै दैन कहै नटि जाय
3- दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
वियोग श्रृंगार या विप्रलंभ श्रृंगार
एक दूसरे के प्रेम में अनुरक्त नायक-नायिका के मिलन के अभाव को विप्रलंभ श्रृंगार कहा जाता है। वियोग श्रृंगार की दस दशाएँ और चार अवस्थाएँ होती हैं।
विप्रलंभ श्रृंगार या वियोग श्रृंगार की दस दशाएँ निम्नवत हैं-
1- अभिलाषा 2- चिंता 3- स्मृति 4- गुण कथन 5- उद्वेग 6- प्रलाप 7- उन्माद 8- व्याधि 9- जड़ता 10- मरण
विप्रलंभ श्रृंगार या वियोग श्रृंगार की चार अवस्थाएँ निम्नवत हैं-
1- पूर्वराग 2- मान 3- प्रवास 4- करुण
1- पूर्वराग- यह मिलन के पूर्व की अवस्था है । इसमें नायक-नायिका के रूप सौंदर्य, श्रवण, दर्शन से उत्पन्न स्थिति होती है।
2- मान- इस अवस्था में दम्पत्ति में से कोई एक मान अथवा हठ वस दूसरे से रूठ जाता बैठता है।
3- प्रवास- जब किसी कार्यवश या भ्रमवश नायक परदेश चला जाता है तब प्रवास की स्थिति होती है।
४-करुण- इसमें नायक या नायिका जब दैविय विपत्ति के कारण वियोगावस्था में आ जाते हैं तब करुण अवस्था की स्थिति होती है।
वियोग श्रृंगार के उदाहरण
1- निसि दिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहति पावस ऋतु हमपे, जबते श्याम सिधारे।।
2- आँखों में प्रियमूर्ति थी भूले थे सब भोग।
हुआ योग से भी अधिक उसका विषम वियोग।।
3- मानस मंदिर में सति पति की प्रतिमा ठाप।
जलती सी उस विरह में बनी आरती आप।।
हास्य रस
जहां विलक्षण स्थितियों द्वारा हंसी का पोषण हो वहां हास्य रस होता है।
हास्य रस के उदाहरण
1-आधा पात बबूल का तामें तनिक पिसान।
लालाजी करने लगे छठे छमासे दान ।।
2- देखि शिवहिं सुरतिय मुसकाहीं ।
वर लायक दुलहिन जग नाही ।।
3- पिल्ला लिन्ही गोंद में मोटर भई सवार।
गली गली घूमन चली किए समाज सुधार।।
4- आगे चले बहुरि रघुराई।
पाछे लरिकन धूलि उड़ाई।।
5- डट्टा ऐसी नाक है, कुप्पा ऐसे गाल।
विमति बताओ बेगि यह, को सुंदर भूपाल।।
रौद्र रस
जहाँ क्रोध और प्रतिशोध का भाव उत्पन्न हो वहाँ रौद्र रस होता है।
रौद्र रस के उदाहरण
1- श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर कर तल युगल मलने लगे।।
2- जौ तुम्हार अनुशासन पाव कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठावहुँ
3- रे नृपबालक कालवस बोलत तोंहि न संभार|
धनुहीं सम त्रिपुरारि धनु विदित सकल संसार।।
4- उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानों हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।।
5- फिर दुष्ट दु:शासन समर में शीघ्र सम्मुख आ गया।
अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगे।।
करुण रस
प्रिय व्यक्ति या वस्तु की हानि से उत्पन्न शोक को करुण रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव शोक होता है।
करुण रस के उदाहरण
1- मुख सुखहिं लोचन स्रवहि शोक न ह्रदय समाय ।
मनहु करुण रस कटक लै उतरा अवध बजाय ।।
2- अभी ही मुकुट बंधा था माथ
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले न भी थे लाज के बोल
हाय उठ गया यहीं संसार
बना सिंदूर आज अंगार
3- धिक् जीवन जो पाता ही आया है विरोध।
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध।।
4- शोक विकल सब रोवहुँ रानी, रूप शील बल तेज बखानी।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा, परहि भूमि तल बारहि बारा।।
5- यहीं कहीं पर बिखर गई, वह भग्न विजय माला सी।
उसके फूल यहाँ संचित है, है वह स्मृति शाला सी ।।
वीभत्स रस
जहाँ किसी वस्तु अथवा दृश्य के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न हो वहाँ वीभत्स रस होता है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है|
वीभत्स रस के उदाहरण
1-ऑखे निकाल उड जाते थे, क्षण भर उड कर आ जाते थे।
शव जीभ खींचकर कौवे चुभला-चुभलाकर खाते थे।।
2- गिरी गिरी परै रकत कै ऑसू।
विरह सरागन्हि भूजै मांसू ।।
3- गिद्ध चील सब मंडप छावहिं।
काम कलोल करहिं और गवाहिं।।
4- आँखों के कटोरे से दोनों साबित गोले,
कच्चे आमों की गुठली जैसे उछल गए।
5- सिर पर बैठयो काग आँख दोउ खात निकारत।
खिंचत जिभहि स्यार अतिहिं आनंद उर धारत।
भयानक रस
जहाँ भय स्थायी भाव पुष्ट और विकसित हो वहाँ भयानक रस होता है। भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है।
भयानक रस के उदाहरण
1-एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृगराज
विकल बटोही बीच ही परयो मूर्च्छा खाय
2- उधर गरजती सिन्धु लहरियां कुटिल काल के जालो सी
चली आ रही फेन उगलती फन फैलाए व्यालों सी
3- लंका की सेना तो कपि के गर्जन रव से काँप गई।
हनुमान के भीषण दर्शन के बिना ही भाँप गई।
4- पुनि किलकिला समुद्र महं आए। गा धीरज देखत डर खाए।
था किलकिल अस उठै हिलोरा। जनु अकास टूटे चहुँ ओरा।।
5- हरहरात इक दिसि पीपर कौ पेड़ पुरातन,
लटकत जामै घट घने माटी के बासन ।
वीर रस
उत्साह स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव, संचारी भावों से पुष्ट होता है तब वहाँ वीर रस होता है । वीर रस का स्थायी भावउत्साह है ।
भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में वीर रस के तीन प्रकार या भेद बताए हैं
1-युद्धवीर 2- दानवीर 3- धर्मवीर
मान्यता प्राप्त वीर रस के कुल चार प्रकार बताए गये हैं
1-युद्धवीर 2- दानवीर 3- धर्मवीर 4- दयावीर
वीर रस के उदाहरण
1- फहरी ध्वजा भड़की भुजा बलिदान की ज्वालामुखी
निज मातृभूमि के मान में चढ़ मुण्ड की माला उठी
2- मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत मानो मुझे
यमराज से भी युद्ध मे प्रस्तुत सदा जानो मुझे
3- मानस भवन में आर्यजन जिनकी उतारें आरती।
भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती।।
4- तनकर भाला यूँ बोल उठा, राणा मुझको विश्राम न दे।
मुझको वैरी से हृदय-क्षोभ तू तनिक मुझे आराम न दे।।
5- हे सारथे! हैं द्रोण क्या ? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वो भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझ से कभी।।
6- जो साहस कर बढ़ता उसको केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ बीच फेंक, बरछे पर उसको रोक दिया।
7- रानी गई सिधार चिता, अब उसकी दिव्य सवारी थी।
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी।।(त्रिधारा)
अद्भुत रस
आश्चर्यजनक विचित्र वस्तु के देखने व सुनने से जब आश्चर्य का भाव प्रकट हो तब अद्भुत रस होता है।
अदभुत रस के उदाहरण
1 मुठ्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरुप विकराल देख
सब जन्म मुझी में पाते हैं फिर लौट मुझी में आते हैं
2- इहाँ उहां दुई बालक देखा
मति भ्रम मोर की आन विशेखा
3- तन पुलकित मुख वचन न आवा, नयन मूँदि चरनन सिर नावा।
4- देखि यशोदा कृष्ण के मुख में सकल विश्व की माया।
क्षणभर को गिर पड़ी अचेतन हिल न सकी कोमल काया।।
5- भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अदभुत रूप विचारी।।
शान्त रस
जहां संसार के प्रति वैराग्य का भाव रस अवयवों से परिपुष्ट होकर अभिव्यक्त होता है वहां शांत रस होता है।शांत रस कास्थायी भाव निर्वेद होता है।
शांत रस के उदाहरण
1- मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै
जैसे उड़ि जहाज के पंछी पुनि जहाज पर आवै
2- मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी या बिनु ज्ञान चरित्रा
सम्यकता न लहै सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा।
3- अब लौ नसानी अब ना नसैहौं।
रामकृपा भवनिसा सिरानी, जागे फिर न डसैहो।।
4- मन पछितैहैं अवसर बीते।
दुर्लभ देह पइ हरि पद प्रभु, करम वचन अरु ही ते।।
5- समरस थे जड़ या चेतन सुंदर साकार बना था।
चेतनता एक विलसती आनंद अखंड घना था।
6- ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है इच्छा क्यों पूरी हो मन की
एक-दूसरे से न मिल सकें यह विडम्बना है जीवन की ।
7- बैठे मारुति देखते राम चरणबिंद
युग अस्ति-नास्ति के एक रूप गुण-गुण अनिंद्य ।
वात्सल्य रस
जहां बाल रति भाव रस अवयवों से परिपुष्ट होकर रस रुप में व्यक्त होता है वहां वात्सल्य रस होता है।
वात्सल्य रस के उदाहरण
1- बाल दसा मुख निरखि जसोदा पुनि-पुनि नंद बुलावति
अचरा तर लै ढ़ॉकि सूर के प्रभु को दूध पियावति
2- जसोदा हरि पालने झुलावैं ।
हलरावैं दुलरावैं मल्हावैं, जोइ सोइ कछु गावैं ।
3- दादा ने चंदा दिखलाया, नेत्र नीरयुत दमक उठे।
धुली हुई मुसकान देखकर सबके चेहरे चमक उठे।
4- किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन बिंब पकरिबे धावत।
5- मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायौ।
भक्ति रस
जहां ईश्वर प्रेम का भाव रस अवयवों के माध्यम से व्यक्त हो वहां भक्ति रस होता है ।
भक्ति रस के उदाहरण
1- हमारे हरि हारिल की लकरी
मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी
2- राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो ?
राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो ?
3- जब-जब होइ धरम की हानी ।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि मनुज सरीरा ।
हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।।
4- दुलहिन गावहुँ मंगलाचार ।
मोरे घर आए हो राजा राम भरतार ।।
तन रत करि मैं मन रत करिहौं पंच तत्व बाराती ।
5- जमकरि मुँह तरहरि पर्यौ इहि धरहरि चित लाऊ।
विषय तृषा परिहरि अजौं नरहरि के गुन गाउ ।।
6- क्या पूजा क्या अर्चन रे ।
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे ।
7- उधारौ दीन बन्धु महाराज ।
जैसे हैं तैसे तुमरे ही नहीं और सौं काज ।
रस हिंदी व्याकरण कक्षा 9, रस की यह सामाग्री सभी प्रतियोगी छात्र के लिए बहुत ही माहात्त्व्पूर्ण है| ras hindi vyakaran class 9, ras hindi vyakaran class 9 bhed ang paribhasha