अलंकार सिद्धांत, अलंकार की परिभाषा, अलंकार के प्रकार

अलंकार सिद्धांत (alankar soddhant) या अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य भामह हैं। भामह का समय छठी सदी है। भामह ने अलंकार सम्प्रदाय की स्थापना की और ‘काव्यालंकार’ ग्रन्थ की रचना की। काव्यालंकार में अलंकार का चित्रण किया गया है। अलंकार सम्प्रदाय काव्यशास्त्र का विषय है। अलंकार सम्प्रदाय की चर्चा बहुत से आचार्यों ने की है और सभी ने काव्य में अलंकार का होना अत्यावश्यक माना है। वामन ने रीति सम्प्रदाय और काव्य गुण की स्थापना की है |

अलंकार का अर्थ

अलंकार दो शब्दों के योग से बना है अलम् और कार जिसका शाब्दिक अर्थ है सौंदर्य दिलाना अर्थात जो सौंदर्य दिलाए वह अलंकार है। अलंकार के प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य बढता है जिससे काव्य को पढने में पाठक की रूचि बढ़ती है।


काव्य में अलंकार शब्द का प्रयोग दो अर्थों में हुआ है।
1- भूषण या शोभा के भाव में – इस अर्थ में अलंकार सौन्दर्य से अभिन्न है। इस अवस्था में कवि की समस्त उक्तियों का सौन्दर्य ही अलंकार कहलाता है।


2- सौन्दर्य के उपकरण के रूप में- इस अर्थ में अलंकार वह तत्व है जो काव्य को अलंकृत अर्थात् सुन्दर बनाने का साधन है।


अलंकार की परिभाषा व लक्षण 

“काव्य-भाषा के शब्दों और अर्थों को अनेक प्रकार से सजाया जा सकता है। शब्दों और अर्थों के सजे-सजाए चमत्कारपूर्ण प्रयोग को अलंकार कहते हैं।”
अथवा
“काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार कहते हैं।”
अथवा
“वह साधन जिसके द्वारा शोभा उत्पन्न की जाए अथवा बढ़ाई जाए, वह अलंकार होता है।”

भामह के अनुसार अलंकार के लक्षण व परिभाषा

‘नकान्तमपि निर्भूषं विभाति वनिता मुखं’
अर्थात बिना आभूषण के स्त्री के मुख में सौंदर्य नहीं आ सकता उसी प्रकार बिना अलंकार के काव्य में चमत्कार नहीं आ सकता।

वामन के अनुसार 

‘अलंकृति अलंकारः’ अर्थात जो सौंदर्य दिलाए वह अलंकार है । ‘अलंक्रियते अनेन इति अलंकार:’ अर्थात् जो सौंदर्य का विषय बने वह अलंकार है।

दण्डी के अनुसार अलंकार की परिभाषा

‘काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंककरान् प्रचक्षते’ अर्थात् काव्य का शोभा कराने वाले धर्म अलंकार हैं।

वामन के अनुसार अलंकार की परिभाषा

‘काव्यंग्राह्यंलंकारात् सौन्दर्यमलंकारः’ अर्थात काव्य का ग्राह्य विषय अलंकार है जो सौन्दर्य की सृष्टि करता है। आचार्य रूद्रट के अनुसार कवि प्रतिभा से प्रादुर्भाव कथन विशेष ही अलंकार है।

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार अलंकार की परिभाषा

‘शब्दार्थयोरस्थिराये धर्माः शोभित शायिनः’ अर्थात शब्द और अर्थ की विभूति बढाने वाले अस्थिर धर्म ही अलंकार है।

हिंदी के आचार्य केशवदास ने अलंकार की परिभाषा स्त्री के सौंदर्य से दी है|

जदपि सुजाति सुलक्षणी सुबरन सरस सुवृत।
भूषण बिनु न विराजयी कविता बनिता मित्त।।
अर्थात बिना आभूषण के काव्य और स्त्री दोनों में सौन्दर्य की प्राप्त नहीं होती। कवि देव के अनुसार अलंकार ‘पहिरे अधिक अद्भुत रूप लखति’

महाकवि दूलह के अनुसार अलंकार की परिभाषा

‘बिनु भूषण नहि भूषइ कविता’

भिखारीदास के अनुसार अलंकार की परिभाषा

‘भूषण है दूषण सकल’

पद्माकर के अनुसार अलंकार की परिभाषा

शब्दहुं ते कछु अर्थ दे कहु दुहु ते उर आनि।
अभिप्राय जिहि भाति जंह अलंकार हो मानि।।

अलंकार का महत्व

1- अलंकारों के प्रयोग से कवि अपने भावों को बड़ी सरलता से प्रकट कर सकता है।
2- काव्य-सौंदर्य बढ़ जाने से कविता अधिक प्रभावी हो जाती है।
3- अलंकारों से कविता का सौन्दर्य बढ़ जाता है।

अलंकारों के प्रयोग से सदैव कथन के सौंदर्य में वृद्धि नहीं होती। कभी-कभी अलंकार के न होने पर भी कथन प्रभावी होता है। कविता में अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से होना चाहिए। प्रयास करके अनावश्यक रूप से अलंकारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा कविता प्रभावी बनने के स्थान पर प्रभावहीन एवं दोषपूर्ण बन जाएगी।

भाषा और साहित्य का समस्त कार्य व्यापार शब्द और अर्थ पर ही निर्भर रहता है। इसीलिए भाषा के दो प्रमुख अंग शब्द और अर्थ माने गए हैं। काव्य में चमत्कार शब्दगत अथवा अर्थगत हो सकता है। क्योंकि कविता में सुंदरता या तो किसी शब्द के कारण होगी अथवा शब्दों से प्राप्त अर्थ में सुंदरता होगी।


अलंकार के प्रकार 


भरत मुनि ने चार प्रकार के अलंकारों की चर्चा की है। उपमा, रूपक, दीपक, यमक
⇒भामह ने 38 अलंकारों की चर्चा की जिसमें दो शब्दालंकार 36 अर्थालंकार है।
⇒दंडी ने अलंकारों का भेद  39 माना है।
⇒उदभट्ट ने अलंकारों की कुल संख्या 41 मानी है।
⇒वामन ने अलंकारों की कुल संख्या 32 मानी है।
⇒कुंतक के अनुसार अलंकार की संख्या 20 है।
 भोज ने 72 अलंकार माने हैं। जिसमें 24 शब्दालंकार 24 अर्थालंकार और 24 उभयालंकार है।
⇒रूद्रट ने अलंकारो का वैज्ञानिक विवेचन करते हुए इन्हे दो भागो में विभाजित किया है। शब्दालंकार और अर्थालंकार

1- शब्दालंकार के प्रकार 

1- अनुप्रास अलंकार -छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, श्रुत्यानुप्रास, लाटानुप्रास, अन्त्यानुप्रास 2- यमक अलंकार
3- श्लेष अलंकार
सभंग श्लेष , अभंग श्लेष
4- वक्रोक्ति अलंकार
काकु वक्रोक्ति, श्लेष वक्रोक्ति
5- पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार 6- पुनरुक्तिवदाभास अलंकार
7- विप्सा अलंकार 8- चित्र अलंकार

2-अर्थालंकार के प्रकार 

1- उपमा अलंकार -पूर्णोपमा, लुप्तोपमा, मालोपमा 2- रूपक अलंकार -सांग रूपक, निरंग रूपक, परम्परित रूपक
3- उत्प्रेक्षा अलंकार – वस्तुत्प्रेक्षा, हेतुत्प्रक्षा, फलोत्प्रेक्षा 4- संदेह अलंकार
5- भ्रान्तिमान अलंकार 6- अतिशयोक्ति अलंकार
7- अन्योक्ति अलंकार 8- विरोधाभास अलंकार
9- असंगति अलंकार 10- विभावना अलंकार
11- विशेषोक्ति अलंकार 12- प्रतीप अलंकार
13- समासोक्ति अलंकार  
   

 

अलंकार पर आधारित रचनाएं 

रचना  रचनाकार 
भामह  काव्यालंकार
वामन काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
रूय्यक अलंकार सर्वस्व
दण्डी कला परिच्छेद
उद्भट्ट काव्यालंकार सार संग्रह
शोभाकर मित्र  अलंकार सर्वस्व
विद्याधर एकावली
विद्यानाथ प्रतापरूद्र यशोभूषण
अप्पयदीक्षित कुवलयानन्द, चित्रमीमांसा, वृत्तिवार्तिक
पड्डितराज जगन्नाथ  चित्र मीमांसा खंडन
वैद्यनाथ अलंकार चंद्रिका
विश्वेश्वर पंडित  अलंकार कौस्तुभ, अलंकार प्रदीप, अलंकार मुक्तावली, कवीन्द्र कंठाभरण
लाला भगवानदीन  अलंकार मंजूषा
कन्हैलाल पोद्दार  काव्यकल्पद्रुम, अलंकार मंजरी
रमाशंकर शुक्ल रसाल  अलंकार पीयूष
रामदहीन मिश्र  काव्यालोक, काव्य दर्पण, काव्य विमर्श, काव्य में अप्रस्तुत योजना

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