रीति सम्प्रदाय। वैदर्भी रीति। गौड़ीय रीति। पांचाली रीति

 रीति सम्प्रदाय सम्यक विवेचन 

रीति संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन है वामन ने रीति संप्रदाय के साथ-साथ काव्य गुण की भी स्थापना की है।रीति शब्द रिंड् धातु से निस्पन्न है जिसका अर्थ गमन या क्षरण होता है ‘रीयते क्षरति वाड्मधुरोति इति रीति’ अर्थात जिसके प्रवेश से वाणी मधुधारा की वर्षा करने लगती है उसे रीति कहते हैं । रीति को अनेक नामों से पुकारा जाता है जैसे प्रणाली, मार्ग, पंथ अथवा शैली।

वामन के अनुसार रीति के लक्षण

‘विशिष्ट पद रचना रीति’
अर्थात विशेष प्रकार की पद वाली रचना को रीति कहते हैं।

‘रीतिरात्मा काव्यस्य’ वामन रीति को काव्य की आत्मा मानते हैं।

भरतमुनि के अनुसार रिति के लक्षण

‘अत्राह प्रवृत्ति रीति कस्मादिति’

आनन्दवर्धन के अनुसार रीति का लक्षण

‘गुणानां आश्रित तिष्ठन्ति माधुर्यादीन व्यनक्ति स:’
आनंद वर्धन ने रीति को गुणों से युक्त शैली के धर्म के रूप में निरूपित किया है।

‘पदसंघटना धर्मा: रीति’
अर्थात रीति मूलतः पद संघटना का धर्म है ।

राजशेखर के अनुसार रीति का लक्षण व परिभाषा 

‘वचन विन्यास क्रमो रीति:’
अर्थात रीति वाणी विन्यास का वैशिष्ट्य है।

कुंतक के अनुसार रीति का लक्षण

‘कवि स्वभाव भेदत्वात् रीति:’

सिंधुभूपाल के अनुसार रीति के लक्षण

‘पद विन्यास भंगी रीति:’

 

काव्य रीति के प्रकार 

आचार्य भामह में तीन रीतियों को मान्यता दी वैदर्भी, गौड़ीय व पांचाली। दंडी ने भामह के अनुक्रम पर तीन रीतियों की चर्चा की । आचार्य रूद्रट ने लाटीय नाम से चौथे भेद को मान्यता दी। आचार्य भोज ने दो अन्य रीति अवंतिका और मागधी को महत्व देकर इनकी संख्या 6 मानी।

नोट- मान्यता प्राप्त रीति की कुल संख्या तीन 1- वैदर्भी 2- गौड़ीय 3- पांचाली है।

वैदर्भी रीति की परिभाषा व उदाहरण-

इस रीति का संबंध है विदर्भ प्रांत से है। संस्कृत के आचार्यों ने बाल्मीकि, कालिदास, हर्ष, श्रीहर्ष, अश्वघोष, भारावि, दंडी भास, विशाखदत्त, कल्याण ने वैदर्भी रीति का प्रयोग किया है। इसमें श्रुत मधुर ध्वनि वाले वर्ण आते हैं। इसमें लंबे सामासिक पद, कर्ण कटु वर्ण, कठोर वर्ण, संयुक्त वर्ण, लंबे अनुप्रासिक पदों का निषेध होता है। इसमें करुण, श्रृंगार, शांत, हास्य रसों का प्रयोग होता है । इसमें माधुर्य गुण, उपनागरिका वृत्ति और चित्र की द्रुति अवस्था होती है।

उदाहरण-

1- देखि शिवहि सुरतिय मुसुकाही
वर लायक दुलहिन जग नाहीं
2- तासु वचन अति सियहि सोहाने
दरसि लागि लोचन अकुलाने
3- धोखा न दो भईया मुझे इस भांति आ करके
यहाँ मझदार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ

गौड़ी रीति लक्षण व उदाहरण-

जहां पर लंबे सामासिक पद, लंबे आनुप्रासिक पद, संयुक्त वर्ण, कर्ण कटु वर्ण, कठोर वर्ण, आदि की बहुलता हो और अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन हो वहां गौड़ीय रीति होती है। इसमें वीर, विभत्स, भयानक, रौद्र रस होते हैं। इसमें ओज गुण, चित्त की दीप्ति अवस्था और परूषा वृत्ति होती है। संस्कृत के कवियों में सुबंधु, भट्टनायक, भवभूति, मुरारी इस रीति के अंतर्गत आते हैं।

उदाहरण-

1- है अमानिषा उगलता गगन घन अंधकार
खो रहा निशा का ज्ञान स्तब्ध पवनार
2- धरि कुधरि खण्ड प्रचण्ड मर्कट भालू गढ़ पर धावहि
झपटहिं चरन गहि पटकि महि भजि चलत बहुरि प्रचार
3- हिमाद्रि तुंग श्रृग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती

पांचाली रीति के लक्षण व उदाहरण-

आचार्य भोज के अनुसार ‘शब्दार्थयो समोगुम्भ: पांचाली रीति विशेष्यते’ अर्थात जहां पर शब्द अर्थ का समान रूप से गुंम्भन या जुड़ाव हो वहां पांचाली रीति होती है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य वामन ने किया उनके अनुसार पांचाली रिति में माधुर्य एवं सुकुमारता नामक गुणों का समावेश होता है।
आनंदवर्धन इसे मध्यम समास मध्यम अनुप्रास से युक्त रचना मानते हैं । वस्तुतः पांचाली रीति में स्वच्छ, निर्मल व आत्मीय पद होते हैं। इसमें अद्भुत रस सहित सभी रसों का सार होता है। इसमें प्रसाद गुण, चित्र की व्यापकत्व व्यवस्था और कोमला वृत्ति होती है। संस्कृत के कवियों में वेदव्यास, वाग्भट्ट, बाण इसके अंतर्गत आते हैं।

उदहारण-

1- सीता रूचिर परम मृग देखा अंग-अंग सुमनोहर भेषा
2- घूम रहा है कैसा चक्र वह नवनीत कहा जाता है रह जाता है तक्र।

रीति सम्प्रदाय से बनने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न

🍅भरत मुनि ने रीति को प्रवृत्ति नाम दिया।
🍅रूद्रट ने रीति को समास युक्त पद रचना कहा।
🍅कुंतक व भामह ने रीति को मार्ग के नाम से पुकारा।
🍅आचार्य भरत ने पहली बार रीति को संपूर्ण देश के आचार विचार रहन-सहन खान-पान आदि के आधार पर विभाजित किया।
🍅दंडी ने रीति को बंध या पद्धति का नाम दिया।
🍅देव ने काव्य रसायन में रीति को काव्य का द्वार माना है।
🍅आचार्य भोज ने रीति का अर्थ कवि प्रणाली से ग्रहण किया है।
🍅मम्मट व भिखारीदास ने रीति के स्थान पर वृत्ति शब्द का प्रयोग किया है।

टिप्पणी – आचार्य मम्मट ने वाणी के कोमल, कठोर और मृदु गुणों के अनुसार तीन प्रकार की वृत्तियां मानी है। जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –
1- उपनागरिका वृत्ति
2- परुषा वृत्ति
3- कोमला वृत्ति

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