छंद की परिभाषा, भेद, अंग, chhand ki paribhasha, bhed, ang

छंद की परिभाषा, भेद, अंग, chhand ki paribhasha, bhed, ang छंद शब्द ‘छम्‘ और ‘द‘ दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें छम् का अर्थ होता है ‘समुचित आकार‘ और ‘द‘ का अर्थ होता है, देने वाला, इस प्रकार छंद का अर्थ हुआ समुचित आकार देने वाला अर्थात काव्य का वह रूप जो उसे … Read more

अलंकार सिद्धांत, अलंकार की परिभाषा, अलंकार के प्रकार

अलंकार सिद्धांत, अलंकार की परिभाषा, अलंकार के प्रकार

अलंकार सिद्धांत (alankar soddhant) या अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य भामह हैं। भामह का समय छठी सदी है। भामह ने अलंकार सम्प्रदाय की स्थापना की और ‘काव्यालंकार’ ग्रन्थ की रचना की। काव्यालंकार में अलंकार का चित्रण किया गया है। अलंकार सम्प्रदाय काव्यशास्त्र का विषय है। अलंकार सम्प्रदाय की चर्चा बहुत से आचार्यों ने की है … Read more

काव्य प्रयोजन का विवेचन | भारतीय काव्यशास्त्र

काव्य प्रयोजन का विवेचन | भारतीय काव्यशास्त्र

काव्य प्रयोजन का विवेचन, अर्थ या तात्पर्य काव्य का उद्देश्य या लक्ष्य होता है। अर्थात काव्य का एक निश्चित उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन प्रकट करता है । भारतीय काव्यशास्त्र के प्रणेताओं ने काव्य के प्रयोजनों को अपने-अपने ढंग से समझाया है। साहित्य जीवन की अभिव्यक्ति है और जीवन से साहित्य का अभिन्न संबंध है । … Read more

काव्य हेतु । प्रतिभा। व्युत्पत्ति। अभ्यास। परिभाषा। प्रकार

काव्य हेतु । प्रतिभा। व्युत्पत्ति। अभ्यास। परिभाषा। प्रकार

काव्य हेतु में हेतु का शाब्दिक अर्थ है काव्य के सहायक तत्व अर्थात जिन तत्वों के द्वारा काव्य का निर्माण होता है उन्हें काव्य हेतु कहते हैं । कवि की काव्य रचना में सहायक तत्व को काव्य हेतु कहते हैं। काव्य की रचना के कौनसे हेतु कारण या उपादान है इस विषय पर काव्यशास्त्र के … Read more

ध्वनि सिद्धांत | परिभाषा | भेद | काव्यशास्त्र

ध्वनि सिद्धांत | परिभाषा | भेद | काव्यशास्त्र

ध्वनि सिद्धांत काव्यशास्त्र का विषय है इसका स्वरूप अति विस्तृत और व्यापक है ध्वनि संप्रदाय के प्रवर्तक आनंदवर्धन है। ध्वनि सिद्धांत पर आधारित आनंदवर्धन की पुस्तक ध्वन्यालोक है। जिसका दूसरा नाम सहृदयालोक है । आनंदवर्धन का समय 9 वीं सदी है। ये अवंतिवर्मा के सभापंडित थे। अवंतिवर्मा ने इन्हें राजानक की उपाधि दी । ध्वन्यालोक … Read more

औचित्य सिद्धांत। व्युत्पत्ति। अर्थ। अवधारणा

औचित्य सिद्धांत। व्युत्पत्ति। अर्थ। अवधारणा

औचित्य सिद्धांत व्युत्पत्ति और अर्थ औचित्य शब्द का उद्भव उचित शब्द से हुआ है। ‘उचितस्य भावम् औचित्य’ अर्थात जो वस्तु जिसके अनुरूप होती है उसे उचित कहते हैं। औचित्य संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य क्षेमेंद्र हैं । क्षेमेन्द्र काशी के निवासी थे। इन्होंने 11 वीं सदी में औचित्य संप्रदाय की स्थापना की। इनकी पुस्तक ‘औचित्यविचार चर्चा’ … Read more

वक्रोक्ति सम्प्रदाय विवेचन। परिभाषा। प्रकार।

वक्रोक्ति सम्प्रदाय विवेचन। परिभाषा। प्रकार।

वक्रोक्ति सम्प्रदाय शब्द का अभिप्राय वक्रोक्ति संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य कुंतक हैं। काव्यशास्त्र में वक्रोक्ति  वक्र और उक्ति दो पदों के योग से बना है। जिसका अभिप्राय असाधारण कथन, वैशिष्ट्य या भंगिमा है। वक्रोक्ति में किसी भी बात को प्रत्यक्ष रूप से न कहकर अप्रत्यक्ष रूप से कहा जाता है। वक्रोक्ति की सार्थकता तभी सिद्ध होती … Read more

रीति सम्प्रदाय। वैदर्भी रीति। गौड़ीय रीति। पांचाली रीति

रीति सम्प्रदाय। वैदर्भी रीति। गौड़ीय रीति। पांचाली रीति

 रीति सम्प्रदाय सम्यक विवेचन  रीति संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन है वामन ने रीति संप्रदाय के साथ-साथ काव्य गुण की भी स्थापना की है।रीति शब्द रिंड् धातु से निस्पन्न है जिसका अर्थ गमन या क्षरण होता है ‘रीयते क्षरति वाड्मधुरोति इति रीति’ अर्थात जिसके प्रवेश से वाणी मधुधारा की वर्षा करने लगती है उसे रीति … Read more

काव्य गुण सम्प्रदाय। माधुर्य गुण। ओज गुण। प्रसाद गुण

काव्य गुण सम्प्रदाय। माधुर्य गुण। ओज गुण। प्रसाद गुण

काव्य गुण का लक्षण व परिभाषा  काव्य गुण का शाब्दिक अर्थ है विशेषता, शोभाकारी आकर्षक धर्म या दोषों का अभाव । आचार्य वामन के अनुसार काव्य गुण के लक्षण व परिभाषा ‘काव्य शोभायायो कर्तारो धर्मा गुणा’ अर्थात काव्य के शोभा विधायक धर्म का नाम गुण है ‘पूर्वे गुणा: नित्या काव्य: शोभानुपत्ते’ वामन कहते हैं कि … Read more

काव्य दोष की परिभाषा। भेद। उदाहरण

काव्य दोष की परिभाषा। भेद। उदाहरण

काव्य दोष की परिभाषा व लक्षण  जिसके कारण काव्य के रसास्वादन में व्यवधान हो उसे काव्य दोष कहते हैं। जिस प्रकार काव्य गुण के कारण काव्य का उत्कर्ष होता है उसी प्रकार दोष के कारण काव्य का अपकर्ष होता है। दोषों के कारण काव्य का सौंदर्य कम हो जाता है और अर्थ को समझने में … Read more

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