राधावल्लभ सम्प्रदाय | radhavallabh sampraday
⇒ राधावल्लभ सम्प्रदाय का प्रवर्तन सन् 1534 ई० में आचार्य हितहरिवंश ने वृन्दावन में किया।
⇒ राधावल्लभ सम्प्रदाय में ‘राधा‘ का स्थान सर्वोपरि है तथा इसमें ‘तत्सुखीभाव‘ को महत्व प्रदान किया गया है।
⇒ हितहरिवंश के गुरु का नाम गोपालवल्लभ था ।
⇒ हितहरिवंश के पिता का नाम केशवदास मिश्र और माता का नाम तारावती देवी था ।
⇒ हितहरिवंश की पत्नी का नाम रुक्मिणी देवी था।
⇒ हितहरिवंश की रचना ‘हित चौरासी’ ब्रजभाषा में तथा ‘राधासुधानिधि’ ‘यमुनाष्टक’ संस्कृत भाषा में है ।
⇒ हितहरिवंश की मृत्यु पर हरिराम व्यास ने कहा है कि ‘बड़ो अभाग्य अनन्य सभा को उठि गयो ठाठ सिंगार’
⇒ राधावल्लभ संप्रदाय में राधा को कृष्ण से भी बड़ा माना जाता है।
⇒ हित हरिवंश अपनी रचना की मधुरता के कारण श्रीकृष्ण की वंशी के अवतार कहे जाते हैं।
राधावल्लभ संप्रदाय के प्रमुख कवि
⇒ हरिराम व्यास ओरछा नरेश मधुकर शाह के राजगुरु थे।
⇒ हरिराम व्यास को वैष्णव भक्तों में ‘विशाख सखी‘ का अवतार
⇒ हरिराम व्यास की प्रमुख रचनाएँ निम्नांकित मान जाती है।
(1) व्यासवाणी – 758 पद और 148 दोहे
(2) रागमाला – 604 दोहे (संगीतशास्त्र)
(3) नवरत्न और स्वधर्म पद्धति (संस्कृत ग्रन्थ)
⇒ चतुर्भुजदास अष्टछापी कवि चतुर्भुजदास से भिन्न हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं– (1) द्वादश यश, (2) मंगलसार यश तथा (3) हितजू को मंगल ।
⇒ ध्रुवदास ने स्वप्न में हित हरिवंश से शिष्यत्व ग्रहण किया ।