ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियां online shiksha ki chunautiyan

       ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियां (online shiksha ki chunautiyan) हमारे सामने कई रूपों में आती हैं, वे रूप सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी | ऑनलाइन शिक्षा के लिए नेटवर्क बिजली और डिवाइस की उपलब्धता अनिवार्य होती है, भारत की आबादी का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है. जिसकी सीमित आय है और उसके लिए ऑनलाइन शिक्षण के लिए डिवाइस की व्यवस्था करना आसान नहीं है | ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क एवं बिजली की पर्याप्त एवं उचित उपलब्धता न होना अभी भी ऑनलाइन शिक्षा की राह में बड़ी समस्या है |

       इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (आईएमएआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019 के अन्त तक 45.1 करोड़ मासिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में चीन के बाद दूसरा स्थान रखता है, लेकिन इसके बावजूद भी अभी तक भारत में केवल 30% लोगों तक ही इंटरनेट की उपलब्धता हो पाई है. शिक्षा पर नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि 2017 18 तक, 5 से 24 वर्ष की उम्र के सदस्यों वाले सभी घरों में से केवल 8% के पास ही कम्प्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन हैं. नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट कहती है कि भारत के 55,000 गाँवों में मोबाइल नेटवर्क कवरेज नहीं था।

ऑनलाइन शिक्षा की बिन्दुवार चुनौतियां 

पारम्परिक शिक्षा न सिर्फ विद्यार्थियों का ज्ञानार्जन एवं जानकारी प्रदान करती है. बल्कि पारम्परिक कक्षीय पद्धति में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का भी अवसर उपलब्ध होता है, जोकि ऑनलाइन शिक्षा में सम्भव नहीं होता है।

घरेलू माहौल में ऑनलाइन शिक्षण/ अध्ययन के दौरान विद्यार्थियों और शिक्षकों की एकाग्रता प्रभावित होती है. सीमित आय के घरों में अक्सर विद्यार्थियों के लिए बाधा मुक्त एवं शान्त वातावरण उपलब्ध होना मुश्किल होता है।

⇒  स्क्रीन पर अधिक समय बिताने के कारण आँखों और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न होने की आशंकाएं सदैव बनी रहती हैं. परम्परागत शिक्षण की भाँति शिक्षक छात्रों की मनोदशा, उनके भावों, उनकी एकाग्रता और अध्ययन में उनकी रुचि का अवलोकन और आकलन नहीं कर पाते।

इंटरनेटयुक्त डिवाइस उपलब्ध होने के कारण युवावस्था में तकनीकी के दुरुप्रयोग से उनके भटकने की आशंकाएं बनी रहती हैं।

ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए जिस आधारभूत संरचना एवं सुविधाओं की आवश्यकता होती है. वे अभी शिक्षण संस्थाओं में उपलब्ध नहीं हैं।

परम्परागत शिक्षण के अभ्यस्त शिक्षकों को ऑनलाइन शिक्षण करने के लिए अकस्मात् तैयार होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण का तन्त्र विकसित नहीं है।

       यह सही है कि हथेली में कम्प्यूटर का माउस आते ही सूचनाओं का सारा संसार विद्यार्थियों की मुट्ठी में होता है, लेकिन इसमें से कौनसी सूचनाएं, विषयवस्तु, जानकारी एवं पाठ्य-सामग्री उनके कोर्स से जुड़े होने के साथ-साथ उनके लिए उपयोगी, विश्वसनीय और आधिकारिक है और उसका किस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है ? यह उस विषय का विशेषज्ञ, शिक्षक होने के साथ-साथ कम्प्यूटर एवं सूचना तकनीकी में निपुण व्यक्ति ही बेहतर बता सकता है।

       बदले हुए वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों की भूमिका अपने ज्ञान को सिर्फ विषय तक ही सीमित रखने की नहीं रह गई है, बल्कि कम्प्यूटर एवं आधुनिक सूचना तकनीक के प्रयोग में पारंगत होने की भी है, तभी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के साथ कदम मिलाकर चल सकते हैं और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अपनी प्रासंगिकता सिद्ध कर सकते हैं. इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि पारम्परिक शिक्षण को प्रभावी बनाने के साथ-साथ तकनीक के प्रयोग, ई-लर्निंग, ऑनलाइन लर्निंग, शैक्षिक पोर्टल जैसे उपायों को तेजी से बढ़ावा देने के लिए भी गम्भीरता से प्रयास करने होंगे और इस हेतु पारम्परिक शिक्षण और आधुनिक शिक्षण के लिए आधारभूत सुविधाएं, संरचना और प्रशिक्षण आदि पर ध्यान केन्द्रित करना होगा तथा शिक्षा पर बजट बढ़ाना होगा, क्योंकि शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय निवेश की तरह होता है, जिसका प्रतिफल भविष्य में अवश्य प्राप्त होता है, जिससे सम्पूर्ण समाज लाभान्वित होता है और राष्ट्र उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर होता है।

ऑनलाइन शिक्षा का निष्कर्ष 

      अतः इसमें सन्देह नहीं है कि नवीन सूचना तकनीक एवं ऑनलाइन तथा ई लर्निंग शिक्षा व्यवस्था हेतु एक वरदान की तरह है, वहीं दूसरी तरफ परम्परागत ऑनलाइन शिक्षा का अपना महत्व है. इसलिए शिक्षा व्यवस्था को न तो पूरी तरह ऑनलाइन शिक्षा पर केन्द्रित किया जा सकता है और न ही केवल पारम्परिक शिक्षा के सहारे रहा जा सकता है, बल्कि बेहतर परिणाम ऑनलाइन शिक्षा तथा पारम्परिक शिक्षा, दोनों के सम्मिश्रण से ही प्राप्त किए जा सकते हैं।

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