नंददास का जीवन परिचय, nandadas ka jiwan parichay

नंददास का जन्म 1533 ई. में  और मृत्यु 1583 ई. में हुआ था।

 नंददास के गुरु का नाम विठ्ठलनाथ था | 

 नंददास की भाषा ब्रजभाषा है।

 नंददास के पिता का नाम जीवाराम था।

 नंददास का जन्म उत्तर प्रदेश के रामपुर सोरो नामक गाँव में हुआ था।

 नंददास सूर के समकालीन थे। नाभादास के भक्तमाल में इनके जीवन के संबंध में यह छप्पय है- “चंद्रहास अग्रज सुहृद परम प्रेम पथ में पगे।” अर्थात् नंददास के भाई का नाम चंद्रहास था ।

 ध्रुवदास ने अपनी ‘भक्तनामावली‘ में इनके भक्ति की प्रशंसा की है ।

 गोस्वामी गोकुलनाथ ने अपनी रचना ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्त्ता’ में इन्हें गोस्वामी तुलसीदास का भाई बताया है गोस्वामी जी के अनुकरण पर ही इन्होंने श्रीमद्भागवत की कथा पद्य में लिखी थी । 

 ‘गोसाईंचरित‘ में इन्हें तुलसीदास का गुरुभाई बताया गया है- शिक्षा गुरु बंधु भये तिहिते।

 बाबू गुलाबराय ने लिखा है कि सोरों की सामग्री के अनुसार नंददास जी तुलसी के चचेरे भाई और गुरुभाई दोनों ठहरते हैं। सोरो में एक परिवार है, जो अपने को नंददास का वंशज मानता है।

 अष्टछाप के सभी कवियों में सूरदास के बाद नंददास की प्रसिद्धि सबसे ज्यादा है। रचनाओं की प्रचुरता और विषय – विविधता की दृष्टि से अप्टछाप के कवियों में नंददास सर्वोपरि हैं। 

 शुक्ल जी ने लिखा है कि- “अष्टछाप में सूर के पीछे इन्हीं का नाम लेना पड़ता है। इनकी रचना भी बड़ी सरस और मधुर है।” 

नंददास की रचनाएँ 

1. भ्रमरगीत, 2. अनेकार्थ मंजरी, 3. मान मंजरी नामचिंतामणि माला, 4. रसमंजरी, 5. श्याम – सगाई, 6. रुक्मिणी, मंगल, 7. भाषा दशम स्कंध 8. सुदामा चरित, 9. सिद्धांत पंचाध्यायी, 10. रूप मंजरी, 11. अनेकार्थमाला (कोश) 12. दानलीला 13. मानलीला 14. ज्ञानमंजरी

 नंददास की रचनाओं में भँवरगीत (भ्रमरगीत) सबसे अधिक चर्चित रचना है। इसमें भावुकता के स्थान पर दार्शनिकता एवं तार्किकता की प्रधानता है। 

 गुलाबराय के अनुसार– “गोपियों में बुद्धिवाद का बाहुल्य है। उन्होंने उद्धव को दर्शन की ही तर्क भूमि में पछाड़ने का प्रयत्न किया है।” सूर के पश्चात् भ्रमरगीत काव्य-परंपरा में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त कवि नंददास हैं।

 ‘विरह मंजरी´ इनका भावात्मक काव्य है इसमें कृष्ण-वियोग में एक ब्रजवासी की विरह दशा को भावात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है।

 ‘रूपमंजरी‘ लघु आख्यानक काव्य है।

 सुदामाचरित सख्य भाव की रचना है।

 श्यामसगाई में राधा-कृष्ण की सगाई का वर्णन है। 

 रुक्मिणी मंगल तुलसी की पार्वतीमंगल और जानकी मंगल की तरह विवाह काव्य है

 हिंदी में भक्तिकाव्य और लौकिक काव्य की कड़ी जोड़ने वाले नंददास हैं।

 रास-पंचाध्यायी इनकी अन्य प्रसिद्ध रचना है, जिसमें भगवान् की रासलीला का वर्णन प्रभावशाली ढंग से हुआ है।

 ब्रजभाषा का पद-लालित्य ‘रासपंचाध्यायी’ में उत्कृष्ट रूप में दिखाई देता है। रासपंचाध्यायी रोला छंद में आबद्ध रचना है, जिसमें श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन कोमल संगीतात्मक पदावली में किया गया है ।

 वियोगी हरि ने नंददास की ‘रासपंचाध्यायी’ को ‘हिन्दी का गीत गोविन्द‘ कहा है। कोमलकांत पदावली के कारण नंददास की तुलना जयदेव से की जाती है।

 नंददास के यश का आधार भँवरगीत और ‘रासपंचाध्यायी’ रचना है।

 नंददास कृत ‘सिद्धान्त पंचाध्यायी’ भक्ति – सिद्धान्त का ग्रंथ है। अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक काव्यशास्त्रीय कवि नंददास हैं। 

 रसमंजरी इनकी नायिका-भेद से संबंधित महत्त्वपूर्ण रचना है ह. प्र. द्विवेदी के शब्दों में हिन्दी के भक्त कवियों में नंददास प्रथम कवि हैं, जिन्होंने स्पष्ट रूप से नायिका भेद पर पुस्तक लिखी

 नंददास को ‘रासपंचाध्यायी’ ग्रंथ पर ‘जड़िया’ की उपाधि से विभूषित किया गया था । शब्दों के प्रयोग में सतर्कता एवं सावधानी के कारण यह कहा जाता है- ‘और कवि जड़िया नंददास गढ़िया’ । शब्दों के चयन और संगठन तथा उनमें ध्वन्यात्मक अर्थ- गांभीर्य भरने में ये सिद्धहस्त हैं ये शब्द-शिल्पी कहे जाते हैं।

 नंददास ने प्रधान रूप से भानुदत्त की रसमंजरी के लक्षणों और उदाहरणों का ही अनुवाद किया है । – ह. प्र. द्विवेदी

 नंददास कृत ‘रूपमंजरी‘ दोहा – चौपाई में रचित एक प्रेमाख्यानक काव्य है। इसकी नायिका निर्भयपुर के राजा धर्मवीर की पुत्री रूपमंजरी है। 

 ‘रूपमंजरी‘ प्रबन्धकाव्य है, जिसमें परकीया भाव की प्रधानता है।

 नंददास की पाँचों मंजरियों में से रसमंजरी नायक-नायिका भेद पर भानुदत्त की रसमंजरी पर आधारित है। 

 अनेकार्थ मंजरी पर्याय शब्दकोश ग्रन्थ है।

 नंददास छंद-प्रयोग की दृष्टि से अनूठे हैं। रोला- दोहा छंद का संयुक्त प्रयोग सूर के अनुकरण पर इन्होंने किया है।

 हितोपदेश और नसिकेतपुराण (गद्य) नंददास की अन्य रचनाएँ हैं। 

 शुक्ल जी के अनुसार इनकी 4 पुस्तकें ही अब तक प्रकाशित हैं-

1. रासपंचाध्यायी 2. भ्रमरगीत 3. अनेकार्थ मंजरी और 4. अनेकार्थ नाममाला

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