कफन कहानी का सारांश, पात्र, कथानक

कफन कहानी का सारांश, पात्र, कथानक

कफन कहानी प्रेमचंद की अंतिम कहानी है। यह एक यथार्थवादी कहानी है। यह कहानी मूल रूप से उर्दू भाषा में ‘जामिया’ पत्रिका में 1935 में प्रकाशित हुई।इस कहानी का हिंदी संस्करण 1936 में चाँद पत्रिका में प्रकाशित हुआ। परमानंद श्रीवास्तव ने कफन को नई कहानी आंदोदल का प्रथम कहानी माना है।

कफन कहानी के पात्र 

⇒ घिसू (माधव का पिता)
⇒ माधव (घिसू का पुत्र)
⇒ बुधिया (माधव की पत्नी)
⇒ जमींदार

कफन कहानी का सारांश 

घीसू माधव का पिता है और माधव की पत्नी बुधिया है। बुधिया घर में प्रसव पीड़ा से कराह रही है। ये दोनो घर के सामने अलाव में आलू भूनकर खा रहें है। घीसू कहता है जा माधव अपनी पत्नी को देख आ क्योंकि वह कष्ट से कराह रही है। माधव नहीं जाता है क्योंकि उसे डर है कि अगर मैं अपनी पत्नी को देखने जाऊँगा तो इधर मेरा बाप धीसू सारे आलू खा जाएगा।

घीसू और माधव  दोनो कामचोर आलसी और निकम्मे प्रवृत्ति के हैं। पत्नी प्रसव वेदना से चिल्लाती रहती है ये दोनो अलाव के पास ही आलू खाकर धोती से शरीर को ढककर सो जाते हैं। सुबह जब माधव जागता है और पत्नी के कमरे में जाता है तो अपनी पत्नी को मृत्तक पाता है क्योंकि उसकी पत्नी का बच्चा उसके पेट में ही मर जाता है। ये दोनो मृतक शरीर के पास बैठकर जोर-जोर से रोने लगते है उनके रोने की आवाज सुनकर गाँव के लोग एकत्र हो जाते हैं।

घीसू और माधव मृतक शरीर का अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने के लिए गाँव के जमीदार के पास जाते है और जमीदार से कहते हैं कि मालिक हम दोनो सारी रात उसके पास बैठे रहे और जितना पैसा था सब दवा में खर्च हो गया। मालिक आपके सहयोग के बिना मिट्टी नहीं उठ पाएगी जमींदार इन दोनो घृणा करते थे वह सोचे हैं यह वक्त क्रोध का नहीं बल्कि संवेदना का है। यह सोचकर जमींदार उसकी तरफ दो रुपए फेंक देते हैं। गाँव के लोगों ने भी थोड़ा-थोड़ा पैसा दिए। इस प्रकार घीसू और माधव के पास कुल मिलाकर पाँच रुपए हो गए।

इन पाँच रुपए को लेकर वे लोग कफन खरीदने बाजार चले गए। वे बाजार से इन पैसों का कफन न खरीदकर दारू की बोतल और चिखना खरीदते हैं। खूब छककर पीते हैं और कहते है कि बुधिया जो सुख हम लोगों को जीतेजी न दे सकी वह सुख मरने के बाद दे गयी। उसको आशीष देते हुए माधव कहता है कि है कि हे भगवान उसको बैकुण्ठ में स्थान देना।

कफन कहानी की समीक्षा

‘कफन’ प्रथम दृष्ट्या घीसू-माधव – पिता-पुत्र की संवेदनहीनता और भावनात्मक क्रूरता की कहानी कही जा सकती है। जाड़ों की रात की घनघोर निस्तब्धता में अकेले अपने झोंपड़े में प्रसव वेदना से छटपटाती बुधिया के समानांतर उसके घर के दोनों पुरुष सदस्य – पति एवं ससुर – उसके कष्ट से बेपरवाह आग में आलू भून कर खा रहे हैं।

ऊपरी तौर पर कहानी अति संक्षिप्त है – बुधिया की दर्दनाक मौत के बाद घीसू-माधव द्वारा कफन के लिए अनुनय-विनय से जमा किए गए पांच रुपयों को शराब और पूड़ी-कचौड़ी में उड़ा देने की लेकिन भीतरी तहों में संश्लिष्ट से संश्लिष्टतर होती चलती यह कहानी पात्रों के मनोविज्ञान अध्ययन से आगे समाज-व्यवस्था के विश्लेषण का आधार बन जाती है। पात्र के भीतर तक उतरते हुए उसमें प्राण-प्रतिष्ठा भी कर जाते हैं दो उदाहरण दृष्टव्य हैं एक, बुधिया की कराहों के बीच आलू खाते हुए हठात् माधव थम गया है इस सवाल ने उसे बेचैन कर दिया है कि यदि कोई बाल-बच्चा हुआ तो क्या होगा? सोंठ, गुड़, तेल, कुछ भी तो नहीं है घर में। लेखक ने दोनों को कामचोर बताया है, लेकिन कफन चोर की संज्ञा देते उन्हें संकोच होता है इसलिए वे घीसू-माधव के साथ मिल कर जर्जर धार्मिक रूढ़ियों को कोसते हैं कि “जिसे जीते-जी तन ढांकने को चीथड़ा भी न मिले, उसे मरने पर नया कफन” क्यों चाहिए।

“यही पांच रुपए पहले मिलते तो कुछ दवा-दारु करा लेते “प्रेमचंद की ताकत यह है कि कथा में कहीं उपस्थित न होते हुए भी वे पाठक के हृदय में इन दोनों अभागों के प्रति सहानुभूति पैदा करते हैं, प्रेमचंद घीसू—माधव को अभयदान दे रहे हैं कि “हां बेटा, बैकुंठ में जाएगी। किसी को सताया नहीं, किसी को दबाया नहीं ।” मरते-मरते हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी लालसा पूरी कर गई। वह बैकुंठ में न जाएगी तो क्या ये मोटे-मोटे लोग जाएंगे जो गरीबों को दोनों हाथों से लूटते हैं, और अपने पाप को धोने के लिए गंगा में नहाते हैं और मंदिरों में जल चढ़ते हैं।

कफन कहानी के संबंध में विद्वानों के मत

डॉ. बच्चन सिंह ने कहा है कि-

यह उनके जीवन का ही कफन नहीं सिद्ध हुई बल्कि उनके संचित आदर्शों, मूल्यों, आस्थाओं और विश्वासों का भी कफन सिद्ध हुई।

डॉ. परमानंद श्रीवास्तव का कहना है कि-

कफन हिंदी की सर्वप्रथम नयी कहानी है, वह पूर्णतः आधुनिक है क्योंकि उसमें न तो प्रेमचंद का जाना-पहचाना आदर्शोन्मुख यथार्थवाद है, न कथानक संबंधी पूर्ववर्ती धारणा है, न गढ़े गढ़ाये इंस्ट्रुमेंटल जैसे पात्र हैं, न कोई परिणति, न चरमसीमा, न छिछली भावुकता और अतिरंजना और न कोई सीधा संप्रेष्य वस्तु।

डॉ. इंद्रनाथ मदान का कहना है कि-

कहानी जिस सत्य को उजागर करती है वह जीवन के तथ्य से मेल नहीं खाता । कफन प्रेमचंद की जिन्दगी के उस बिंदु से जुड़ी हुई कहानी है जिसके आगे कोई बिन्दु नहीं होता।

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