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हिंदी साहित्य का रीतिकाल, hindi sahity ka ritikal
रीतिकाल शब्द का पहला प्रयोग आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किया। संस्कृत काव्यशास्त्र में रीति शब्द का प्रयोग आचार्य वामन ने किया। आचार्य वामन के अनुसार ‘विशिष्ट पद रचना रीति’ अर्थात विशेष ढंग की पद रचना को रीति कहते हैं।
रीतिकाल का समय 1643 से 1843 ई. हैं।
हिंदी में रीति शब्द से आशय काव्य रचना पद्धति से है। लक्षणों के साथ अथवा अकेले उनके आधार पर लिखा गया काव्य रीति है।
हिंदी में रीति धारा का पहला ग्रंथ है कृपाराम की हिततरंगिणी है। जिसमें रीति काव्य धारा के अनुकूल लक्षण ग्रंथ के दर्शन होते हैं।
कृपाराम सूरदास के समकालीन थे। इनके ही समकालीन गोप कवि ने रामभूषण और मोहन लाल कवि ने अलंकार चंद्रिका लिखा। कवि रहीम दास ने बरवै नायिका भेद छंद में लिखा।
नंददास ने रसमंजरी लिखा करनेश कवि ने करणाभरण, श्रुतिभूषण, भूपभूषण तीन अलंकार ग्रंथ लिखा। जिसमें रीति ग्रंथों का विशुद्ध रूप विद्यमान है। पुहकर कवि ने रसरतन और सुंदर कवि ने सुंदर श्रृंगार चिंतामणि ने कवि कुलकल्पतरू लिखा।
रितिकाल के प्रवर्तक
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का पहला आचार्य चिंतामणि त्रिपाठी को माना है। इनके अनुसार हिंदी रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरंभ इन्हीं के नाम से मानना चाहिए।
नगेन्द्र, बाबू श्यामसुंदर दास, श्याम बिहारी मिश्र, गुलाब राय, ने केशवदास को रीतिकाल का प्रवर्तक कहा है।
गुलाब राय के अनुसार रीतिकाल की मूल प्रवृत्ति लक्षण ग्रंथों को लिखने और लक्षणों के अनुकूल उदाहरण प्रस्तुत करने में थी इस प्रवृत्ति का पूर्ण परिपाक केशवदास में मिलता है। वस्तुतः के केशवदास को ही रीतिकाल का प्रवर्तक मानना चाहिए।
कालक्रम की दृष्टि से कृपाराम (1541) रीतिकाल के प्रवर्तक हैं। रचनाकार व्यक्तित्व के समृद्ध की दृष्टि से केशवदास रीतिकाल के प्रवर्तक हैं। अखंड परंपरा चलाने की दृष्टि से चिंतामणि रीतिकाल के प्रवर्तक हैं।
रीतिकाल के प्रवर्तक विभिन्न विद्वानों के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं-
प्रस्तोता | प्रवर्तक | दृष्टि |
—– | कृपाराम | कालक्रम की दृष्टि से |
नागेन्द्र | केशवदास | रचनाकार व व्यक्तित्व की दृष्टि से |
रामचंद्र सुक्ल | चिंतामणि | अखंड परंपरा की दृष्टि से |
रितिकाल का नामकरण
जॉर्ज ग्रियर्सन- रीतिकाव्य
मिश्रबंधु- अलंकृतकाल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल- रीतिकाल
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र- श्रृंगारकाल
रमाशंकर शुक्ल रसाल- कलाकाल
त्रिलोचन- अंधकारकाल
हजारी प्रसाद द्विवेदी- उत्तर मध्यकाल
शंभूनाथ सिंह- ह्रासकाल
सत्य काम वर्मा- काव्य कला विलास
गणपति चंद्रगुप्त- अपकर्ष काल
रामखेलावन पांडे- संवर्धन काल
रीतिकाल का विभाजन
रीतिकाल को तीन भागों में विभाजित किया गया है। 1- रीतिबद्ध 2- रीतिमुक्त 3- रीतिसिद्ध
रीतिबद्ध परंपरा में आने वाले कवि
चिंतामणि, केशवदास, भिखारीदास, कुलपति, देव, ग्वाल, रसिक गोविंद, रसलीन, पद्माकर, सुखदेव मिश्र, याकूब खां, भूषण, मतिराम
रीतिमुक्त परंपरा में आने वाले कवि
रीतिमुक्त काव्यधारा को चार भागों में विभाजित किया गया है। प्रेम, भक्ति, नीति और वीर
प्रेम के अंतर्गत घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर, द्विजदेव आते हैं। भक्ति के अंतर्गत भक्तवर नागरी दास, चाचा हित वृंदावन दास आते हैं। नीति के अंतर्गत गिरिधर कविराय, कवि वृंद आते हैं। वीर के अंतर्गत सूदन और पद्माकर आते हैं।
रीतिसिद्ध परंपरा में आने वाले कवि
रीतिसिद्ध परंपरा के कवि बिहारी हैं।
रीतिकालीन कवियों का काव्य नाम वास्तविक नाम और जन्मस्थान
⇒ भूषण का वास्तविक नाम घनश्याम जन्म स्थान तिकवांपुर कानपुर।
⇒ बेनी का वास्तविक नाम बंदीजन जन्मस्थान कानपुर।
⇒ बिहारीलाल का वास्तविक नाम माथुर चौबे जन्मस्थान ग्वालियर।
⇒ कविंद्र का वास्तविक नाम उदयनाथ जन्मस्थान अमेठी थे।
⇒ भूपति का वास्तविक नाम राजा गुरुदत्त सिंह जन्म स्थान अमेठी।
⇒ रसलीन का वास्तविक नाम सैयद गुलाम नवी जन्म स्थान बिलग्राम (हरदोई)।
⇒ नाथ का वास्तविक नाम हरिनाथ जन्मस्थान काशी।
⇒ बोधा का वास्तविक नाम बुद्धिसेन जन्मस्थान बांदा।
⇒ पद्माकर का वास्तविक नाम पद्माकर भट्ट जन्मस्थान सागर (मध्य प्रदेश)।
⇒ रसनिधि का वास्तविक नाम पृथ्वी सिंह जन्म स्थान दतिया (मध्य प्रदेश)।
⇒ रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम पठान जन्मस्थान दिल्ली।
⇒ द्विजदेव का वास्तविक नाम राजा मानसिंह जन्मस्थान अयोध्या।
⇒ कवि वृंद का वास्तविक नाम वृंदावन जन्मस्थान मेड़ता (राजस्थान)।
⇒ आलम का वास्तविक नाम से शेख आलम जन्मस्थान दिल्ली।
⇒ शशिनाथ का वास्तविक नाम सोमनाथ जन्मस्थान मथुरा
⇒ लाल कवि का वास्तविक नाम गोरेलाल पुरोहित जन्मस्थान बुंदेलखंड।
⇒ दास का वास्तविक नाम भिखारीदास जन्मस्थान ट्योगा प्रतापगढ़।
⇒ गिरिधरदास का वास्तविक नाम गोपालचंद जन्म स्थान काशी।