साक्षात्कार का शाब्दिक अर्थ ‘अपने आप को किसी के सामने रख देना’ होता है।हिंदी गद्य की नवीन साहित्यिक विधाओं में साक्षात्कार प्रमुख साहित्यिक विधा है जो तीव्र गति से विस्तार पा रही है। साक्षात्कार में प्रायः साक्षात्कार लेने वाला छोटा या अलपज्ञानी होता है। इसके बावजूद साक्षात्कार देने वाला श्रेष्ठ और अनुभवी व्यक्ति होता है। साक्षात्कार में व्यक्ति के निजी जीवन या सार्वजनिक जीवन किसी पर प्रश्न किया जा सकता है। इस बात की साक्षात्कार लेने वाले को पूरी आज़ादी होती है। साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन से जुड़े प्रश्नों का उत्तर दे या चाहे तो न दे इस विषय की उसे आज़ादी होती है।
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साक्षात्कार की परिभाषा
“साक्षात्कार की विधि आत्मनिष्ठ या व्यक्तिनिष्ठ होती है। जिसके आधार पर व्यक्ति की समस्याओं, उसके अनुभवों, उसकी योग्यताओं आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर खुलकर प्रश्न किए जाते हैं।”
बी.एम. पामर के अनुसार साक्षात्कार की परिभाषा-
“साक्षात्कार दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक स्थिति की रचना करता है। इसमें प्रयुक्त मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के अंतर्गत, दोनों व्यक्तियों को परस्पर, प्रति उत्तर देने होते हैं।”
हिंदी साहित्य में इण्टरव्यू या साक्षात्कार की परंपरा
हिन्दी में इण्टरव्यू विधा के प्रवर्तक पं० बनारसीदास चतुर्वेदी माने जाते हैं। बनारसीदास चतुर्वेदी के साक्षात्कार ‘रत्नाकर जी से बातचीत’ और ‘प्रेमचंद जी के साथ दो दिन’ विशाल भारत पत्रिका में प्रकाशित हुए थे।
इण्टरव्यू विधा की प्रथम स्वतंत्र पुस्तक बेनीमाधव कृत ‘कवि दर्शन’ है।
प्रमुख साक्षात्कार व उसके संपादक
बनारसीदास चतुर्वेदी
(1) रत्नाकरजी से बातचीत (1931), (2) प्रेमचन्द के साथ दो दिन (1932)।
प्रभाकर माचवे
(1) जैनेन्द्र के विचार (1939)
श्री नरोत्तम नागर
अपने ही घर में सरस्वती का अपमान (1947)
बेनी माधव शर्मा
कवि दर्शन
पद्मसिंह शर्मा
मैं इनसे मिला (1955)
देवेंद्र सत्यार्थी
कला के साक्षात्कार
रणवीर रांग्रा
(1) सृजन की मनोभूमि (1968), (2) साहित्यिक साक्षात्कार (1978)।
विरेंद्र कुमार गुप्त
समय और हम
रामावतार
समय, समस्या और सिद्धान्त
सुरेश सिन्हा
हिन्दी कहानी और फैशन
शरद देवड़ा
(1) हिन्दी की चार नवोदित लेखिकाओं से एक रंगमंचीय काल्पनिक इंटरव्यू, (2) एक आलोचक की नोटबुक ।
लक्ष्मीचंद जैन
भगवान महावीर एक इण्टरव्यू
माजदा असद
मेरी मुलाकातें (1977)
अज्ञेय
अपरोक्ष (1979)-
अमृता प्रीतम
शौक़ सुराही (1979)
मनोहर श्याम जोशी
बातों बातों में (1983)
कमल किशोर गोयनका
(1) अभिमन्यु अनत: एक बातचीत (1985), (2) जिज्ञासाएँ मेरी : समाधान बच्चन के (1985)।
रामधारी सिंह दिनकर
वट पीपल (1961)
ओमप्रकाश सिंहल
गद्य के नये आयाम (1981)
उपेन्द्रनाथ अश्क।
कहानी के इर्द गिर्द (1971)
केशवचंद्र वर्मा
शार्टकट की संस्कृति (1973)
कर्ण सिंह चौहान
साक्षात्कार : रामविलास शर्मा से बातचीत (1986)
रत्ना लाहिड़ी
मूल्य : संस्कृति साहित्य और समय (1987)
भारत यायावर
रेणु से भेंट
कैलाश कल्पित
साहित्यकारों के संग (1887)
शरद नागर और आनंद प्रकाश त्रिपाठी
अमृत मंथन (1991)
रामविलास शर्मा
मेरे साक्षात्कार (1994)
समीक्षा ठाकुर
(1) कहना न होगा (1994), (2) बात बात में बात (2006) I
कृपाशंकर चौबे
संवाद चलता रहे (1995)
प्रकाश मनु
(1) मुलाकात (1998), (2) रामविलास शर्मा :अंतरंग स्मृतियाँ व मुलाकातें।
पुष्पा भारती
धर्मवीर भारती से साक्षात्कार (1998)
कमला प्रसाद
वार्तालाप (1998)
स्मिता मिश्रा
अंतरंग (1999)
कुमुद शर्मा
गाँव के मन से रू-ब-रू : विद्यानिवास मिश्र (2000)
अजय तिवारी
आज के सवाल और मार्क्सवाद (2000)
बलराम
वैष्णवों से वार्ता (2002)
राजेंद्र यादव
(1) जवाब दो विक्रमादित्य (2003), (2) एंटन चेखव; एक इंटरव्यू
दूधनाथ सिंह
कहा सुनी (2005)
पुष्पिता
सांस्कृतिक के आलोक से संवाद (2006)
प्रेम कुमार
साधना से संवाद (2006)
केदारनाथ सिंह
मेरे साक्षात्कार (2003)
हिमांशु जोशी
मेरे साक्षात्कार (2003)
प्रभाकर श्रोत्रिय
मेरे साक्षात्कार (2003)
लिलाधर जगुड़ी
मेरे साक्षात्कार (2003)
अरुण कमल
कथोपकथन (2010)
कुंवर नारायण
तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं(200)
कृष्णदत्त पालिवाल
अज्ञेय से साक्षात्कार
राजेंद्र यादव
यातना संघर्ष और स्वप्न
काशीनाथ सिंह
गपोड़ी से गपसप (2013)
मैनेजर पांडेय
संवाद और परिसंवाद (2013)
साक्षात्कार संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य
‘कहना न होगा’ में नामवर सिंह के कुल 14 साक्षात्कार संग्रहित हैं। संकलन, संपादन समीक्षा ठाकुर ने किया है। साक्षात्कार के लिए डॉ. नामवर सिंह संवाद शब्द का प्रयोग उपयुक्त मानते हैं।
‘संवाद चलता रहे’ पत्रकार कृपाशंकर चौबे द्वारा लिए गये 12 कवियों 5 निबंधकारो 12 कथाकारों और 4 आलोचकों के साक्षात्कारों का संग्रह है।
‘धर्मवीर भारती से साक्षात्कार’ का संकलन, संपादन पुष्पा भारती ने किया है। इसमें कुल 19 साक्षात्कार संग्रहित है।
‘मुलाक़ात’ में श्री प्रकाश मनु ने 11 रचनाकारों से बातचीत की है।
‘अंतरंग’ प्रसिद्ध कवि कथाकार रामदरश मिश्र के 25 साक्षात्कारों का संग्रह है।जिसका संपादन स्मिता मिश्र ने किया है।
‘गाँव के मन से रूबरू विद्यानिवास मिश्र’ का संपादन कुमुद शर्मा ने किया है। इसमें पंडितजी के 13 साक्षात्कार संकलित हैं।
‘कहासुनी’ इस पुस्तक में श्री दूधनाथ सिंह के चार साक्षात्कार और चार आलोचनात्मक निबंध संग्रह हैं।
‘सांस्कृतिक आलोक से संवाद’ साक्षात्कार के इस संग्रह ग्रंथों में पुष्पिता द्वारा प्रस्तुत पंडित विद्यानिवास मिश्र के कुल चार संवाद संग्रहित हैं।
‘बात बात में बात’ डॉ. नामवर सिंह कि इस पुस्तक में अनेक साहित्यकारों से उनके संवाद संकलित हैं।