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चिंतामणि का जीवन परिचय, chintamani ka jiwan parichay
चिंतामणि का जन्म 1609 ई. तिकवाँपुर (कानपुर) में हुआ था | रचनाकाल – 1643 ई. के आसपास। रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र चिंतामणि, भूषण, मतिराम और जटाशंकर ये चार भाई थे। चिंतामणि त्रिपाठी ने कई ग्रंथों में अपना नाम ‘मणिमाल‘ भी रखा है।
चिंतामणि सर्वांगनिरूपक प्रथम आचार्य हैं | सर्वांगनिरूपक से तात्पर्य वे आचार्य जिन्होंने काव्य के समस्त अंगों काव्य लक्षण, हेतु, प्रयोजन, भेद, शब्द शक्ति, गुण, दोष, रीति, अलंकार इत्यादि पर लिखा हो।
चिंतामणि त्रिपाठी की रचनाएँ-
1.रसविलास
2. छंदविचार पिंगल
3. श्रृंगार मंजरी
4. कविकुलकल्पतरु
5. कृष्णचरित
6. काव्यविवेक
7. काव्यप्रकाश
8. कवित्त विचार
9. रामायण
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार वर्तमान में चिन्तामणि के मात्र 5 ग्रंथ उपलब्ध हैं- छंद विचार, काव्य विवेक, कविकुलकल्पतरू, काव्यप्रकाश, रामायण
इनकी रचनाओं के वर्ण्य विषय निम्नानुसार हैं-
रसविलास – रसविवेचन संबंधित ग्रंथ आधार – भानुदत्त की रसमंजरी, रसतरंगिणी और धनंजय का दशरूपक तथा विश्वनाथ का साहित्यदर्पण
श्रृंगार मंजरी – नायक-नायिका भेद संबंधित ग्रंथ । आंध्र के संत अकबरशाह के.‘शृंगारमंजरी’ संस्कृत ग्रंथ का यह ब्रजभाषा में अनूदित रचना है।
छंदविचार पिंगल – नागपुर के सूर्यवंशी भोंसला मकरंदशाह के यहाँ रहते हुए उन्हीं के नाम पर यह रचित रचना है। इसमें प्राकृतपैंगलम् तथा भट्ट केदार के वृत्तरत्नाकर के आधार पर कृष्णचरित का वर्णन है ।
कविकुलकल्पतरु यह पुस्तक काव्यप्रकाश के आदर्श पर लिखित है। इसमें काव्यप्रकाश (मम्मट), प्रतापरुद्रयशोभूषण (विद्यानाथ), दशरूपक (धनंजय), शृंगारमंजरी (अकबरशाह), रसतरंगिनी और रसमंजरी (भानुदत्त) के आधार पर काव्य के दशांगों का निरूपण हुआ है।
रीतिकालीन आचार्यों में प्रथम चिंतामणि त्रिपाठी के विषय में रामचन्द्र शुक्ल जी का मत है कि-
“चिंतामणि ने काव्य के सब अंगों पर ग्रंथ लिखे हैं। इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी । अवध के पिछले कवियों की भाषा देखते हुए इनकी ब्रजभाषा विशुद्ध दिखाई पड़ती है। विषय-वर्णन की प्रणाली भी मनोहर है। ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे।”
हिंदी रीति-ग्रंथों की परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली अतः रीतिकाल का आरंभ उन्हीं से मानना चाहिए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल
हिंदी में लक्षण-ग्रंथ की परिपाटी पर रचना करनेवाले जो सैकड़ों कवि हुए हैं, वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते। वे वास्तव में कवि ही थे। उनमें आचार्य के गुण नहीं थे। रामचंद्र शुक्ल
चिंतामणि की प्रमुख पंक्ति या कथन
(1) रीति सुभाषा कवित्त की बरनत बुध अनुसार। (कविकुलकल्पतरु )
(2) येई उधारत हैं तिन्हें जे, परे मोह महोदधि के जल फेरे ।
(3) इक आजु मैं कुंदन बेलि लखी, मनिमंदिर की रुचिवृंद भरें।
अरविंद के पल्लव इंदु तहाँ, अरविन्दन ते मकरंद झरें ।
(4) आँखिन मुंदिबे के मिस आनि, अचानक पीठि उरोज लगावै ।
कैहूँ कहूँ मुसकाय चितै, अगराय अनूपम अंग दिखावै ॥
(5) अवलोकनि में पलकें न लगें, पलकौं अवलोकि बिना ललकै ।
पति के परिपूरन प्रेम पगी मन और सुभाव लगै न लकै ॥
तिय की बिहं सौही विलोकनि में, ‘मनि’ आनंद आँखिन यो झलकै ।
रसवंत कवित्तन को रस ज्यों अखसन के ऊपर है छलकै ॥
(6) सगुन अलंकारन सहित दोष रहित जो होई अर्थ शब्द ताको कवित्त कहत विवुध सब कोई