मतिराम का जीवन परिचय, matiram ka jiwan parichay

मतिराम का जीवन परिचय, matiram ka jiwan parichay

मतिराम आचार्य और कवि चिंतामणि त्रिपाठी एवं भूषण के बड़े भाई थे, इनका जन्म तिकवापुर (कानपुर) में लगभग 1617 ई. में हुआ था | ये बहुत दिनों तक जीवित रहे |

मतिराम की रचनाएँ 

1. फूलमंजरी
2. रसराज
3. ललितललाम
4. मतिराम सतसई
5. साहित्यसार
6. छंदसार
7. अलंकार पंचाशिका
8. लक्षण श्रृंगार

मतिराम की ये 4 प्रामाणिक रचनाएँ हैं अन्य ग्रंथ – साहित्यसार,  छंदसार, अलंकार पंचाशिका, लक्षणश्रृंगार हैं।

फूलमंजरी में प्रत्येक दोहे में एक फूल का नाम है, जिसके श्लेषार्थ से नायिका का नाम मिलता है। इसकी रचना कवि ने जहांगीर के आश्रय में किया है।

रसराज‘ मतिराम की प्रसिद्धि का मूलाधार है। श्रृंगार रस एवं नायिका – भेद संबंधित यह रचना है यह रसिकजनों का कंठहार है।

मतिराम सतसई की रचना मतिराम ने बिहारी सतसई के अनुकरण पर सेठ भोगनाथ के आश्रय में की है।

ललितललाभ‘ (1663 ई.) बूँदी नरेश दीवान भावसिंह के आश्रय में रचित एक अलंकार-ग्रंथ है। शुक्ल जी के अनुसार मतिराम का ‘छंदसार‘ नामक पिंगल ग्रंथ महाराज शंभुनाथ सोलंकी को समर्पित है। इनका परम मनोहर ग्रंथ ‘रसराज किसी को समर्पित नहीं है

हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में- “रसराज और ललितललाम में लक्षण और उदाहरणों के बहाने ही कविता लिखी गई है, पर भावों का ऐसा सरस चित्रण दुर्लभ है …. ब्रजभाषा काव्य में ऐसी अकृत्रिम सरसता बहुत कम कवि ला सके हैं। रीति ग्रंथ लिखने के बहाने मतिराम वस्तुतः सरस काव्य रच रहे थे।”

‘मतिराम-सतसई‘ के दोहे सरसता में बिहारी के दोहों के समान हैं| 1683 ई. के आसपास बिहारी-सतसई की प्रेरणा पर ‘ मतिराम-सतसई’ का संकलन किन्हीं भूप भोगनाथ के लिए की गई थी।

(i) रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़कर और किसी कवि में मतिराम की-सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती। -रामचंद्र शुक्ल

(ii) नायिका के विरह ताप को लेकर बिहारी के समान इन्होंने मजाक नहीं किया है। इनके भाव व्यंजक व्यापारों की श्रृंखला सीधी और सरल है, बिहारी के समान चक्कारदार नहीं| -रामचंद्र शुक्ल

(iii) इनका सच्चा कवि हृदय था| -रामचंद्र शुक्ल

रीतिग्रंथ वाले कवियों में इस प्रकार की स्वच्छ, चलती और स्वाभाविक भाषा कम कवियों में मिलती है।…मतिराम की सी रसस्निग्ध और प्रसादपूर्ण भाषा रीति का अनुसरण करने वालों में बहुत ही कम मिलती है। – रामचंद्र शुक्ल

भाषा के समान ही मतिराम के न तो भाव कृत्रिम हैं और न उनके व्यंजक व्यापार और चेष्टाएँ। भावों को आसमान पर चढ़ाने और दूर की कौड़ी लाने के फेर में ये नहीं पड़े हैं।…इनका सच्चा कवि हृदय था। – रामचंद्र शुक्ल

दोनों भाइयों (मतिराम और भूषण ) की भाषा, भाव प्रकृति सबमें अद्भुत अंतर है। मतिराम भाषा की नाड़ी पहचानते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने मतिराम को गृहस्थी का कवि कहा है।

मतिराम के प्रमुख पंक्ति या कथन

(1) नृपति नैन कमलनि वृथा, चितवत बासर जाहि ।
हृदय कमल में हरि लै, कमलमुखी कमलाहि ॥ (सतसई)

(2) छोड़ि आपनो भौन तुम, भौन कौन के जात

(3) ते धनि ले ब्रजराज लखें गृहकाज करें अरु लाज संभारें ।

(4) कोऊ कितेक उपाय करो, कहुँ होत हैं आपुने पीव पराये

(5) कुंदन को रंग फीकौ लगै झलकै सब अंगन चारु गुराई ।
आँखनि में अलसानि चितौनि में, मंजु बिलासन की सरसाई ॥
को बिनु मोल बिकात नहीं मतिराम लहै मुसकानि मिठाई
ज्यों ज्यों निहारिए नेरे हैं नैननि त्यों त्यों खरी निकरैं सी निकाई ॥

(6) क्यों इन आंखिन सो निहसंक, है मोहन को तन पानिप पीजै ?
नेकु निहारे कलंक लगै यहि गाँव बसे कहु कैसे क़ै जीजै ॥

(7) केलि कै राति अघाने नहीं दिन ही में लला पुनि घात लगाई।

(8) दोऊ अनंद सो आँगन माझ विराजै असाढ़ की साँझ सुहाई ।
आँखिन तें गिरे आँसुन की बूँद, सुहास गयो उड़ि हंस की नाई ॥

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