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अलंकार, alankar
अलंकार alankar का शाब्दिक अर्थ होता है ‘काव्य का सौन्दर्य ‘| जिस प्रकार सौन्दर्ययुक्त वस्तु या व्यक्ति लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं उसी प्रकार सौन्दर्ययुक्त काव्य पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करतें हैं | इस पोस्ट में हमलोग शब्दालंकार के प्रकारों की परिभाषा व उदाहरण के साथ-साथ अर्थालंकार के प्रकारों की परिभाषा व उदाहरण को पढेंगे | अलंकार से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी के लिए अलंकार सिद्धांत पढ़ सकते हैं | अभ्यास प्रश्न के रूप में अलंकार के उदाहरण को देखिए जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये हैं या फिर पूछे जा सकते हैं | अलंकार मुख्यतः हिंदी व्याकरण का विषय है |
शब्दालंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
जहाँ पर काव्य में उसके शब्दों से सौन्दर्य की सृष्टि हो उसे शब्दालंकार कहते है। इस प्रकार के अलंकार में शब्द की प्रमुखता होती है | शब्दालंकार के अंतर्गत आने वाले मुख्य अलंकार अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश पुनरुक्तिवदाभास, विप्सा, चित्र आदि आते हैं |
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
जहाँ किसी पंक्ति में वर्णों की आवृत्ति हो या एक वर्ण एक से अधिक बार आए तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
अनुप्रास अलंकार के भेद
1- छेकानुप्रास 2- वृत्यानुप्रास 3- श्रुत्यानुप्रास 4- लाटानुप्रास 5- अन्त्यानुप्रास
1- छेकानुप्रास की परिभाषा
जहाँ पर अनेक वर्णों की आवृत्ति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास होता है।
छेकानुप्रास का उदाहरण
⇒चरचित चंदन नील कलेवर, बरसत बूंदन पानी।
छकि रसाल सौरभ सनेह मधुर माधवी गंध।।
स्पष्टीकरण- उपर्युक्त उदाहरण में अनेक वर्ण (च,ब,न,स,म,ध) की आवृत्ति एक बार हुई है अतः यहाँ छेकानुप्रास होगा।
⇒मुदित महीपति मंदिर आए सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
⇒संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
2- वृत्यानुप्रास की परिभाषा
जहाँ पर एक वर्ण की आवृत्ति एक या एक से अधिक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास होता है।
वृत्यानुप्रास के उदाहरण
⇒रघुपति राघव राजा राम ।
⇒सेस महेस गनेस सुरेसहु।
3- श्रुत्यानुप्रास की परिभाषा
जो सुनने में मधुर लगे अर्थात जहां पर कर्ण कटु वर्ण, कठोर वर्ण, संयुक्त वर्ण को छोड़कर शेष वर्णों की वर्गीय आवृत्ति हो वहां श्रुत्यानुप्रास होगा।
श्रुत्यानुप्रास के उदाहरण
⇒तुलसीदास सीदत निसी दिन देखत तुम्हार निठुराई
⇒धनि राधिका धन्य सुन्दरता धनि मोहन की जोरी
⇒नीसि वासर सात रसातल लौ
4- लाटानुप्रास की परिभाषा
जहां पर शब्द खंड या वाक्य खंड की आवृत्ति हो और अनुनय बदलने पर दूसरा अर्थ निकले वहाँ लाटानुप्रास होगा।
लाटानुप्रास के उदाहरण
⇒राम हृदय जाके नहीं, विपति सुमंगल ताहि
राम हृदय जाके, नही विपति सुमंगल ताहि
⇒पूत सपूत तो का धन संचय
पूत कपूत तो का धन संचय
5- अन्त्यानुप्रास की परिभाषा
जिस रचना की पंक्ति के दोनों चरणों या पदों के अंत में स्वर या व्यंजन की समानता हो वहां अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
अन्त्यानुप्रास के उदाहरण
⇒ मेरे मन के मीत मनोहर
तुम हो प्रियवर मेरे सहचर
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
⇒कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल बिराजति है।
⇒नभ पर चम-चम चपला चमकी
⇒निपट निरंकुस निठुर निसंकू।
जेहि ससि कीन्ह सरूज सकलंकू।।
यमक अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित
जहां पर एक शब्द दो या दो से अधिक बार आए और प्रत्येक बार अलग-अलग अर्थ दे वहां यमक अलंकार होता है।
वहै शब्द पुनि-पुनि परै अर्थ भिन्न ही भिन्न
यमक अलंकार के उदाहरण
⇒काली घटा का घमंड घटा
⇒कहे कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराइ लीनी
⇒ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है
श्लेष अलंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
श्लेष शब्द श्लिष्ट से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है चिपकना। जहाँ पर एक शब्द दो या दो से अधिक अर्थ दे वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
श्लेष अलंकार के भेद
1- अभंग पदश्लेष 2- सभंग पद श्लेष
1- अभंग पद श्लेष
जहाँ बिना विभाजित किए एक शब्द में दो या दो से अधिक अर्थ निकले उसे अभंग पदश्लेष कहते है।
अभंग पद श्लेष के उदाहरण
⇒पानी गए न उबरे मोती मानस चून
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में पानी के तीन अर्थ हो रहे हैं। मोती के साथ पानी का अर्थ चमक, मानस के साथ मोती का अर्थ इज्जत, चून के साथ पानी का अर्थ जल होता है।
⇒सुबरन को ढूढत फिरत कवि व्यभिचारी चोर
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति मे सुबरन का तीन अर्थ निकल रहा है। कवि के साथ सुबरन का अर्थ सुन्दर अक्षर, व्यभिचारी के साथ सुबरन का अर्थ सुन्दर स्त्री, चोर के साथ सुबरन का अर्थ सोना होता है।
⇒माया महाठगीन हम जानी,
तिरगुन फांस लिये, कर डोलै बोलै मधुरी बानी।
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में तिरगुन शब्द के दो अर्थ है। तिरगुन का पहला अर्थ तीन गुण (सत, रज, तम) है। तिरगुन का दुसरा अर्थ तीन धागे वाली रस्सी से है।
सभंग पद श्लेष किसे कहते हैं
जहाँ पर शब्द को विभाजित कर एक से अधिक अर्थ निकले वहाँ सभंग पद श्लेष होता है।
सभंग पद श्लेष के उदाहरण
⇒चिर जिवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के वीर
स्पष्टीकरण- उक्त उदाहरण में वृषभानुजा के दो अर्थ हैं। एक अर्थ (वृषभानु+जा)= राधा होगा दुसरा अर्थ (वृषभ+अनुजा)= गाय होगा।
⇒बहुरि सक्र सम बिनवहुं तोही । संतन सुरानीक हित जेही।
वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
वक्रोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है वक्र और उक्ति इस प्रकार वक्रोक्ति का शाब्दिक अर्थ टेढा मेढा या किसी बात को घुमाकर कहना होगा।
“जहाँ बात किसी एक आशय से कही जाय और सुनने वाला उससे भिन्न समझ ले, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है”
कुलपति मिश्र के अनुसार वक्रोक्ति
कहै बात औरे, कछु अर्थ करै कछु और।
वक्र उक्ति तासो कहै, श्लेष काकु दो ठौर।।
जहाँ पर वक्ता द्वारा कही गयी बात को श्रोता दुसरे रूप में ग्रहण करे अथवा भिन्न अर्थ लगाए उसे वक्रोक्ति कहते हैं।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद
वक्रोक्ति के दो भेद होते है। 1- श्लेष वक्रोक्ति 2- काकु वक्रोक्ति
श्लेष वक्रोक्ति की परिभाषा
जहाँ पर वक्ता द्वारा कही गयी बात को श्रोता श्लिष्ट अर्थ द्वारा अन्य रूप में ग्रहण करता है वहाँ श्लेष वक्रोक्ति होता है। श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद हैं 1- सभंग पद श्लेष वक्रोक्ति 2- अभंग पद श्लेष वक्रोक्ति
श्लेष वक्रोक्ति के उदाहरण
⇒एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहां अपर है।
उसने कहा अपर कैसा उड़ गया सपर है।।
स्पष्टीकरण- उपरोक्त छंद में जहाँगीर ने नूरजहाँ से पूछा कि एक कबूतर तुम्हारे पास है और अपर अर्थात् दूसरा कबूतर कहाँ है? नूरजहाँ ने दूसरे कबूतर को उड़ाते हुए कहाँ कि ‘अपर ‘अर्थात् बिना पंखों वाला कैसा कबूतर? वह तो इसी कबूतर की तरह सपर अर्थात् पंखो वाला था, सो उड़ गया। यहाँ अपर श्लिष्ट पद है। जिसको बिना तोड़े ही दो अर्थ प्राप्त होते – प्रथम अर्थ- वेपर अर्थात् बिना पंखो वाला कबूतर’, द्वितीया अर्थ- दूसरा अर्थात् पंखो वाला कबूतर। चूँकि वक्ता के कथन का श्रोता द्वारा अन्य अर्थ का अनुमान तथा पद को बिना तोड़े दो अर्थों की प्राप्ति होने के कारण यह ‘अभंग श्लेष वक्रोक्ति “अलंकार का उदाहरण है।
⇒भिक्षुक गो कित को गिरिजै
सो तो मांगन बलिद्वार गयो हैं।।
⇒मानत जोगहि सुमति बर, पुनि-पुनि होत न देह।
मानत जोगी जोग को, मोहि न जोग सनेह।।
काकु वक्रोक्ति की परिभाषा
इसमें कंठ स्वर बदलकर बोलने से अन्य अर्थ की प्रतीत होती है।
काकु वक्रोक्ति के उदाहरण
⇒मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू ।
तुमहि उचित तप, मों कहं भोगू।।
स्पष्टीकरण- उपरोक्त छन्द में सीता द्वारा राम को वन के योग्य कहे जाने में व्यंग्य है और सम्पूर्ण छन्द के शब्दों पर बलाघात रखने का भाव यह है कि क्या मैं (सीता) कोमल हूँ और आप (राम) वन के योग्य हैं, अर्थात् ऐसा नहीं है। अतः शब्दों पर विशेष बल देने के कारण यहाँ काकु वक्रोवित अलंकार है।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार किसे कहते हैं
जहाँ भावों को रूचिकर, अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिय शब्दों की बार-बार आवृत्ति हो उसे पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार कहते हैं।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का उदाहरण
⇒उजरे इन भौनन को सजनी सुख पुंजन छइहै छइहै छइहै छइहै
पुनरुक्तिवदाभास अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
जहाँ पर समानार्थी शब्दों के द्वारा प्रयोग से पुनरुक्ति का आभास हो वहाँ पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है।
पुनरुक्तिवदाभास के उदाहरण
⇒शिव, शंकर हर भव भय मेरे।
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में शिव, शंकर, हर और भव का एक ही अर्थ है।
वीप्सा अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
वीप्सा अलंकार किसे कहते हैं
आदर, घृणा, हर्ष, शोक आदि भावों के लिए शब्द की आवृत्ति हो तो वहाँ वीप्सा अलंकार होता है।
वीप्सा अलंकार के उदाहरण
⇒मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
⇒रे रे दुष्ट ठाढ़ किन होही
⇒निरभय चलेसि न जाने सिमोहिं
हा। हा। इन्हें रोकन को टोक न लगावै तुम।।
अर्थालंकार की परिभाषा भेद व उदाहरण
अर्थालंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य में सौन्दर्य आता है | अर्थालंकार में अर्थ की प्रधानता होती है जिस कारण इसे अर्थालंकार कहते हैं | अर्थालंकार के भेद को लेकर विद्वानों में परस्पर मतभेद है | प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्त्वपूर्ण अर्थालंकारों को पढेंगे जो निम्नवत हैं – उपमा अलंकार, रूपक अलंकर, उत्प्रेक्षा अलंकार, संदेह अलंकार, अतिशयोक्ति अलंकार, मानवीकरण अलंकार, प्रतिप अलंकार, व्यतिरेक अलंकार, समासोक्ति अलंकार, अन्योक्ति अलंकार, विभावना अलंकार, दृष्टांत अलंकार, उदहारण अलंकार, इत्यादी
उपमा अलंकार की परिभाषा, अंग, भेद व उदहारण
जहां दो भिन्न वस्तुओं में रूप, गुण, आकृति आदि को लेकर समता प्रदर्शित की जाए वहां उपमा अलंकार होता है।
‘साम्यं वाच्यमवैधम् र्य वाक्यैक्य उपमाद्वयोः’ (विश्वनाथ)
उपमा के अंग या तत्व
उपमा के कुल चार अंग हैं 1- उपमेय 2- उपमान 3- साधारण धर्म 4- वाचक शब्द
1- उपमेय किसे कहते हैं
उपमेय उस प्रस्तुत या उपस्थित वस्तु अथवा व्यक्ति को कहते हैं जो वर्णनीय हो अर्थात् जिस व्यक्ति या वस्तु की तुलना की जाती है उसे उपमेय कहते है। उपमेय हमेशा उपमान से छोटा होता है।
उपमेय की पहचान
‘राधा का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है’
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में राधा की तुलना चन्द्रमा से की गयी है जिस कारण राधा उपमेय है।
2- उपमान किसे कहते हैं
जिस अनुपस्थित वस्तु या व्यक्ति से उपमेय की तुलना या समानता की जाए उसे उपमान कहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना जिससे की जाती है उसे उपमान कहते हैं।
उपमान की पहचान
‘राधा का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है’
स्पष्टीकरण – राधा के मुख की तुलना या समानता चंद्रमा से की गई है जिस कारण चंद्रमा उपमान है।
3- साधारण धर्म किसे कहते हैं
जिस गुण, लक्षण या विशेषता के आधार पर उपमेय और उपमान में समानता दिखलाई जाती है उसे साधारण धर्म कहते हैं।
साधारण धर्म की पहचान
‘राधा का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है’
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में सुन्दर शब्द साधारण धर्म का सूचक है।
4- वाचक शब्द किसे कहते हैं
उपमेय और उपमान की तुलना या समानता को प्रगट करने वाला शब्द वाचक शब्द कहलाता है।
वाचक शब्द की पहचान
‘राधा का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।’
स्पष्टीकरण – उक्त पंक्ति में समान शब्द में वाचक शब्द होगा।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण वाचक शब्द – सदृश, सम, समान, तुल्य, सा, सी, सरिस इत्यादि।
उपमा अलंकार के भेद
उपमा अलंकार के तीन भेद हैं 1- पूर्णोपमा 2- लुप्तोपमा 3- मालोपमा
1- पूर्णोपमा अलंकार किसे कहते है
जिन पंक्तियों में उपमा के चारों तत्व उपमान, उपमेय, वाचक शब्द व साधारण धर्म मौजूद रहते हैं उसे पूर्णोपमा अलंकार कहते हैं।
पूर्णोपमा अलंकार के उदाहरण
⇒विमल बदन विधु सरिस सुहाई।
निरखत चख चकोर सकुचाई।।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त छंद में उपमेय- बदन, उपमान- विधु, साधारण धर्म- विफलता और वाचक शब्द- सरिस । उपमा के चारो अंग उपस्थित होने के कारण पूर्णोपमा अलंकार सिद्ध हुआ।
2- लुप्तोपमा अलंकार किसे कहते हैं
जिन पंक्तियों में उपमा के चारों अंगो या तत्वो में से कोई एक अंग लुप्त हो वहां लुुप्तोपमा अलंकार होता है।
लुप्तोपमा अलंकार के उदाहरण
⇒नीरज सरिस नयन रघुवर के
स्पष्टीकरण- उक्त पंक्ति में उपमेय – रघुवर, उपमान – नीरज, वाचक शब्द – सरिस का उल्लेख हुआ है लेकिन साधारण धर्म का लोप है।
3- मालोपमा अलंकार किसे कहते हैं
जिस पंक्ति में एक उपमेय की तुलना करने के लिए अनेक उपमान रख दिए जाते है वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।
मालोपमा अलंकार के उदाहरण
⇒हिरनी से, मीन से, सुखंजन समान चारू।
अमल कमल से, विलोचन तिहारे हैं।।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त पंक्ति में उपमेय – विलोचन (नेत्र) के लिय चार उपमान रख दिय गय है जिस कारण मालोपमा अलंकार होगा।
उपमा अलंकार के उदाहरण
⇒हाय फूल सी कोमल बच्ची हुई राख की ढेरी।
⇒कल्पलता सी अतिसय कोमल।
रुपक अलंकार की परिभाषा, भेद व उदाहरण
रूपक अलंकार किसे कहते
जहां पर उपमेय में उपमान का आरोप कर दिया जाए वहां रूपक अलंकार होता है।
अथवा
जहां उपमेय और उपमान में अद्वैत भाव हो अर्थात उपमेय और उपमान को एक कर दिया जाए वहां रूपक अलंकार होता है ।
अथवा
प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप किया जाए या प्रस्तुत में अप्रस्तुत का विधान किया जाए वहां रूपक अलंकार होता है।
रुपक के भेद
रुपक अलंकार तीन प्रकार के होते हैं 1- सांग रुपक 2- निरंग रुपक 3- परंपरित रुपक
1- सांग रुपक की परिभाषा
जहां पर अंगों सहित रूपको की योजना हो वहां सांग रुपक होता है इसमें दो या दो से अधिक रूपकों की योजना होती है।
सांग रुपक के उदाहरण
⇒रनित भृंग घंटावली, झरति दान मधुनीर।
मंद-मंद आवतु चल्यौ, कुंजरु कुंज समीर।।
स्पष्टीकरण – गूंजते हुए भ्रमरो की घंटावली वाला एवं मकरंद रुपी झरते हुए मद वाला कुंज-समीर-रुपी कुंजर मंद-मंद गति से चला आ रहा है।
⇒रूप सलिल अति चपल चख, नाभि भंवर गंभीर।
है बनिता सरिता विषम, जहाँ मज्जत मति धीर ।।
स्पष्टीकरण- उपरोक्त छंद में नायिका के रूप सौन्दर्य, नेत्रों एवं नाभि की सुन्दरता का वर्णन है। जिसमें उपमेय है नायिका, उसका रूप, नेत्र, नाभि, जिन पर क्रमश: उपमान – नदी, उसका जल एवं भंवर का अभेद आरोप है किन्तु नायिका नेत्रों (चपल चख) पर मछली का आरोप अकथित है। अत: यह एक देशविवर्ती साँग रूपक अलंकार का उदाहरण है।
2- निरंग रुपक किसे कहते हैं
जहां पर बिना अंगों के रुपकों की योजना की जाय वहां निरंग रूपक अलंकार होता है।
निरंग रूपक के उदाहरण
⇒शशि मुख पर घूंघट डाले।
स्पष्टीकरण – शशि रुपी मुख
3- परंपरित रुपक किसे कहते हैं
जहाँ पर कारण और कार्य के रुप में रुपक की योजना हो वहाँ परंपरित रुपक होता है। परंपरित रुपक दो प्रकार के होते हैं। 1- कारण परंपरित रुपक 2- कार्य परंपरित रुपक
परंपरित रुपक के उदाहरण
⇒प्रेम अथिती है खड़ा द्वार पर हृदय कपाट खोल दो तुम
⇒चेतन लहर उठेगी, जीवन समुद्र फिर न होगा।
रुपक अलंकार के उदहारण
⇒चरण-कमल बंदौ हरिराई
⇒आए महंत वसंत
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, भेद व उदाहरण
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं / परिभाषा
जहां पर प्रस्तुत में प्रस्तुत की कल्पना या संभावना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
अथवा
जहाँ उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना की जाय वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान
जिस पंक्ति में वाचक शब्द के रुप में मनहुॅ, मन, मानो, जानो, जन, जनहुं इत्यादि संभावनावाची शब्द प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रकार / भेद
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन प्रकार होते है 1- वस्तुत्प्रेक्षा 2- हेतूत्प्रेक्षा 3- फलोत्प्रेक्षा
1- वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर एक वस्तु में दुसरी वस्तु की कल्पना या संभावना की जाय वहाँ वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
⇒इन्द्री शिथिल भई केशव बिनु, जनु देह बिनु शिश।
2- हेतूत्प्रेक्षा की परिभाषा
जहाँ पर कारण के न होने पर भी कारण की कल्पना की जाय ( अहेतु में हेतु की कल्पना) वहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
हेतूत्प्रेक्षा के उदाहरण
⇒राम सुप्रेम पुलक उर लावा, परम रंक जन पारस पावा।
3- फलोत्प्रेक्षा की परिभाषा
जहाँ पर फल न मिलने पर भी फल की कल्पना या संभावना की जाय वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
फलोत्प्रेक्षा के उदाहरण
⇒पुनि-पुनि मोहि दिखाव कुठारू, चहत उड़ावनि फूंकि पहारू।
संदेह अलंकार के लक्षण व उदहारण
संदेह अलंकार किसे कहते हैं
समान गुण धर्म के आधार पर एक वस्तु में दुसरी वस्तु का संदेह करना ही संदेश अलंकार कहलाता है।
संदेह अलंकार को कैसे पहचाने
वाचक पद के रूप में किधौं क्या, की, अथवा, कदाचित्, कैतौ, धौं, शायद इत्यादि शब्द आते हैं।
संदेह अलंकार के उदाहरण
⇒आयी है वीरता तपोवन से क्या पुण्य कमाने को।
या सन्यास साधना में है दैहिक शक्ति जगाने को।।
⇒तुम हो अखिल विश्व में, या यह अखिल विश्व तुम में, अथवा अखिल विश्व तुम एक?
भ्रांतिमान अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
भ्रान्तिमान अलंकार की परिभाषा
जहां सादृश्य या समानता के कारण उपमेय को भ्रम वश उपमान समझ लिया जाए वहां भ्रांतिमान अलंकार होता है
भ्रान्तिमान अलंकार के उदाहरण
⇒पाइ महावर दैन कौ, नाइनि बैठी आइ।
फिरि फिरि जानी महावरि, एड़ी मीड़ति जाइ।।
स्पष्टीकरण :- पाँव में महावर देने को नाइन आ कर बैठी, पर नायिका की एड़ी का रंग ऐसा लाल है कि उसको उसमें तथा महावर की गोली में कुछ भेद नहीं प्रतीत होता, अतः भ्रम के कारण वह एड़ी को बार-बार महावर की गोली समझकर दबारही है।
उपरोक्त छन्द में नाइन को नायिका की एड़ी की स्वाभाविक लालिमा में महावर की काल्पनिक प्रतीति के कारण भ्रम है। अत: विवेच्य उदाहरण में भ्रान्तिमान अलंकार है।
⇒नाक का मोती अधर की कांति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रांति से।
देख उसको ही हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है ।।
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा
असहयोग का शाब्दिक अर्थ होता है कथन को बढ़ा चढ़ाकर कहना अर्थात जहां पर उसमें को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाए वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण
⇒इतना रोया था उस दिन, ताल तलैया सब भर डाले।
⇒खिले हजारों चांद तुम्हारे नैनों के आकाश में।
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा
जहां आप अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया जाय वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। जिसके विषय में कहना होता है उसके विषय में स्पष्ट न कहकर दूसरे के द्वारा कहलवाया जाता है उसे अन्योक्ति अलंकार कहते हैं।
अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण
⇒तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहैं हमे पूछिहैं कौन।। (imp)
⇒क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो ।
उसको क्या जो दंतहीन, वीषरहित, विनीत सरल हो।। (imp)
विरोधाभास अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं
जहाँ पर विरोध के न होने पर भी विरोध का आभास हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
⇒या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई ।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होइ ।। (imp)
⇒मरने को जग जीता है। (imp)
असंगति अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
असंगति अलंकार किसे कहते हैं
असंगति अलंकार का शाब्दिक अर्थ संगति का न बैठना। अर्थात जहां पर कारण अन्यत्र हो और कार्य अन्यत्र हो कहा जाए तो कारण कार्य में तादाद में न बैठे वहां असंगति अलंकार होता है ।
असंगति अलंकार के उदाहरण
⇒दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।
परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति ।। (imp)
⇒जरै नैन पलकै गिरेँ, चित तरयै दिन रैन ।
उठे सूल उर नेह पुर, नव नभ मय नृप मैन ।। (imp)
विभावना अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
विभावना अलंकार किसे कहते हैं
जहाँ पर बिना कारण के कार्य हो वहाँ विभावना अलंकार होता है।
विभावना अलंकार के उदाहरण
⇒बिनु पग चलै सुनै बिनु काना, कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
स्पष्टीकरण :- उपरोक्त छन्द में बिना पैर के चलना, कान के बिना सुनना और बिना हाथ के कार्य करना इत्यादि क्रियाएं बिना कारण के ही सम्पादित हो रही है। अतः विवेच्य उदाहरण में विभावना अलंकार है।
विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर कारण के रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण
⇒पानी बिच मीन पियासी। मोहि सुनि-सुनि आवै हाँसी।
स्पष्टीकरण – उक्त पंक्ति में कारण पानी के होते हुए भी मछली प्यास नहीं बुझती है अर्थात् कार्य नहीं होता है । इस स्थिती में विशेषोक्ति अलंकार होता है।
प्रतीप अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
प्रतीप अलंकार की परिभाषा
प्रतीप का शाब्दिक अर्थ होता है उल्टा जहाँ पर उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताकर उपमान का तिरस्कार किया जाय वहाँ प्रतीप अलंकार होता है।
प्रतीप अलंकार के उदाहरण
⇒बहुरि विचार कीन्ह मनमाही।
सीय बदन सम हिमकर नाहीं।
स्पष्टीकरण – उपरोक्त छन्द में उपमेय सीता के शरीर की शोभा को उपमान चन्द्रमा गया है। अतः विवेच्य उदाहरण में प्रतीप अलंकार है।
सिय मुख समताव किम चंद वापुरो रंक।
उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर समस्याम
समासोक्ति अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
समासोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहां पर प्रस्तुत के माध्यम से अप्रस्तुत की व्यंजना की जाए उसे समासोक्ति अलंकार कहते हैं
समासोक्ति अलंकार के उदाहरण
⇒मिलहु सखी, हम तहँवा जाही। जहाँ जाइ पुनि आउब नाहीं।
सात समुद्र पार वह देसा। कित रे मिलब कित आव संदेसा ।।
स्पष्टीकरण – उपरोक्त छन्द में पद्मावती के ससुराल गमन का वर्णन है, जो कि प्रस्तुत अर्थ है जिससे मानव के परलोक गमन का अप्रस्तुत अर्थ भी सूचित हो रहा है। तथा दोनों अर्थ समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। अतः विवेच्य उदाहरण में समासोक्ति अलंकार है।
व्यतिरेक अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
व्यतिरेक अलंकार की परिभाषा
व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ है विशिष्ट रूप से अतिरेक करना । जहां पर किन्हीं गुणों के आधार पर उपमेय को उपमान से बड़ा बताया जाए और उपमान का तिरस्कार किया जाय वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण
⇒संत हृदय नवनीत समाना कहा कविन्ह पर कहै न जाना।
निज परताप द्रवै नवनीता, पर दुख द्रवहि सुसंत पुनीता।।
स्पष्टीकरण :- संतो के कोमल हृदय की उपमा कवियों ने मक्खन से दी है, किन्तु मक्खन तो अपने ताप से द्रव रूप में परिणत हो जाता है, किन्तु संत पुरुष दूसरे के कष्ट को देखकर ही द्रवित हो जाते है अर्थात् उनसे सहानुभूति रखते हैं। उपरोक्त छन्द में उपमेय नवनीत (मक्खन) का अपकर्ष तथा उपमेय संत हृदय का उत्कर्ष कथित है तथा कारण भी दिया हुआ है। अतः विवेच्य उदाहरण में व्यतिरेक अलंकार है।
अर्थान्तरन्यास की परिभाषा व उदाहरण
अर्थान्तरन्यास की परिभाषा
जहां पर एक प्रस्तुत अर्थ का अन्य अप्रस्तुत अर्थ से समर्थन कराया जाय वहाँ अर्थान्तरन्यास होगा।
अथवा
जहाँ सामान्य बात का विशेष से और विशेष बात का सामान्य से समर्थन कराया जाय वहाँ अर्थान्तरन्यास होगा।
अर्थान्तरन्यास के उदाहरण
⇒जो रहिम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।।
स्पष्टीकरण- उपरोक्त छंद में कहा गया है कि – कुसंग अच्छी प्रवृत्ति वालो का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। इस सामान्य कथन का विशेष कथन से समर्थन है कि चंदन के वृक्ष में सर्प लिपटे रहते है, पर उसमें विष व्याप्त नहीं होता है। अतः विवेच्य उदाहरण में सामान्य कथन का विशेष कथन से समर्थन होने के कारण अर्थान्तरन्यास अलंकार है।
दृष्टांत अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
दृष्टांत अलंकार की परिभाषा
जब दो वाक्यों में बिंब प्रतिबिंब भाग हो अर्थात जब एक बात कह कर उसी के समान दूसरी बात पहली के उदाहरण के रूप में कहीं जाए तब दृष्टांत अलंकार होता है
दृष्टांत अलंकार के उदाहरण
⇒बिगरी बात बने नहीं लाख करौ किन कोय।
रहिमन पाटे दूध को मथै न माखन होय।।
उदाहरण अलंकार की परिभाषा व उदाहरण
उदाहरण अलंकार की परिभाषा
जहां पर एक वाक्य कह कर उसके उदाहरण के रूप में दूसरा वाक्य कहा जाए तथा दोनों वाक्यों का साधारण धर्म भिन्न होने पर भी उसमें वाचक शब्द के द्वारा समानता दिखाई जाए तो वहां उदाहरण अलंकार होता है।
उदाहरण अलंकार के उदाहरण
⇒वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटन वारे को लगै ज्यों मेंहदी के रंग।।