वल्लभ संप्रदाय , vallabh sampraday
वल्लभ संप्रदाय में भक्तिकाल से संबंधित वल्लभाचार्य को व भक्ति के विषय में उनके विचार को पढेंगे| यह पोस्ट प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अति उपयोगी है | vallabh sampraday
⇒ वल्लभाचार्य सुल्तान सिकंदर लोदी तथा बाबर के समकालीन थे।
⇒ वल्लभाचार्य का जन्म 1478 ई. चंपारन में और मृत्यु 1530 ई. में हुई थी।
⇒ वल्लभाचार्य की पन्नी जा नाम मधुमंगल था। इनके दो पुत्र थे जिनका नाम गोपीनाथ और विट्ठलनाथ था।
⇒ वल्लभ सम्प्रदाय में कृष्ण पूर्णानन्द स्वरूप पूर्ण पुरुषोत्तम परब्रह्म हैं।
⇒ पुष्टिमार्गी भक्ति में ‘पुष्टि’ भगवद् अनुग्रह या कृपा को कहा जाता है। भागवत महापुराण में लिखा है- “पुष्टि किं मे ? पोषणम्। पोषणं किम् । तदनुग्रहः भगवत्कृपा।”
⇒ पुष्टि मार्गी भक्ति में तीन प्रकार के मार्ग, जीव तथा भक्त होते हैं जो निम्न हैं-
1- मर्यादा मार्ग (वैदिक मार्ग)
2- प्रवाह मार्ग (लौकिक सुख भोग)
3- पुष्टि मार्ग (भक्ति मार्ग)
⇒ वल्लभाचार्य ने निम्नांकित ग्रन्थों की रचना की है-
(1) पूर्व मीमांसा भाष्य
(2) उत्तर मीमांसा या ब्रह्मसूत्र भाष्य, जो अणुभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। इनके शुद्धाद्वैतवाद का प्रतिपादक यही प्रधान दार्शनिक ग्रन्थ है
(3) श्रीमद्भागवत की सूक्ष्म टीका तथा सुबोधिनी टीका,
(4) तत्त्वदीप निबन्ध
⇒ ‘अणुभाष्य’ वल्लभाचार्य का अधूरा ग्रन्थ था जिसे उनके पुत्र विट्ठलनाथ ने पूरा किया
⇒ वल्लभ सम्प्रदाय में अष्टयाम की सेवा का उल्लेख है-
(1) मंगलाचरण, (2) श्रृंगार, (3) ग्वाल, (4) राजयोग, (5) उत्थापन, (6) भोग, (7) संध्या-आरती और (8) शयन
⇒ सन् 1519 ई० में वल्लभाचार्य के शिष्य पूरनमल खत्री ने गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी का मन्दिर बनवाया जिसका प्रबन्ध दायित्व कृष्णदास पर था।
⇒ गोस्वामी विट्ठलनाथ सन् 1565 ई० चार वल्लभाचार्य और चार अपने शिष्यों को मिलाकर ‘अष्टछाप’ की स्थापना की।
⇒ वल्लभाचार्य के कुल 84 तथा विट्ठलनाथ के कुल 252 शिष्य थे।