काव्य प्रयोजन का विवेचन, अर्थ या तात्पर्य काव्य का उद्देश्य या लक्ष्य होता है। अर्थात काव्य का एक निश्चित उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन प्रकट करता है । भारतीय काव्यशास्त्र के प्रणेताओं ने काव्य के प्रयोजनों को अपने-अपने ढंग से समझाया है।
साहित्य जीवन की अभिव्यक्ति है और जीवन से साहित्य का अभिन्न संबंध है । इसलिए जीवन की प्रेरणा ही साहित्य है । भारतीय मनीषियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल की प्राप्ति को ही जीवन का उद्देश्य बताया है । काव्य प्रयोजन भारतीय काव्यशास्त्र के साथ-साथ साहित्यशास्त्र का भी विषय है ।
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संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य प्रयोजन की परिभाषा व लक्षण
भरतमुनि के अनुसार काव्य प्रयोजन परिभाषा
थर्मयश्यमायुष्यम् हितबुद्धिविवर्धनम्
लोकोपदेशजननं नाटूयमेतद् भविष्यति
आचार्य भरत ने नाटक के संदर्भ में काव्य प्रयोजन की बात की है । उनकी दृष्टि में धर्म, यश, आयुवृद्धि, हित-साधन एवं लोकोपदेश ही नाट्य प्रयोजन है।
भामह के अनुसार काव्य प्रयोजन परिभाषा
धर्मार्थ काममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च
करोति कीर्तिं प्रीतिं च साधुकाव्य निषेवणम्
आचार्य भामह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, कलाओं में विचक्षणता पाना, कीर्ति और आनंद की उपलब्धि को काव्य का प्रयोजन माना है।
मम्मट के अनुसार काव्य प्रयोजन लक्षण
काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षते।
सद्यः परिनिवृत्तये कान्ता सम्मितयोपदेशयुजे।।
मम्मट ने अपने ग्रंथ काव्यप्रकाश में छह काव्य प्रयोजन माने है।
1- यश की प्राप्ति
2- धन की प्राप्ति
3- लौकिक व्यवहार का ज्ञान
4- अनिष्ट का निवारण
5- आनंद की प्राप्ति
6- उपदेश
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार काव्य प्रयोजन लक्षण
चतुर्वर्गफलप्राप्ति सुखादल्पधियामपि ।
काव्यादेवयतस्तेन तत्स्वरूपं निरूप्यते ।।
आचार्य विश्वनाथ ने धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति को ही काव्य का प्रयोजन माना है
हिन्दी कवियों के अनुसार काव्य प्रयोजन
हिंदी के कवियों ने काव्य प्रयोजन में संस्कृत के आचार्यों का अनुकरण किया है
कुलपति मिश्र ने यश, संपत्ति और आनंद को काव्य का प्रयोजन माना है ।
भिखारीदास ने यश, अर्थ और आनंद को काव्य का प्रयोजन माना है ।
तुलसीदास ने स्वान्तः सुखाय और लोकमंगल की चर्चा की है ।
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।
भाषा निबंधमति मंजुल मातनोति ।। (तुलसीदास)
कीरति भणिती भूति भलि सोई ।
सुरसरि सम सब कह हित होई ।। (तुलसीदास)
सूरदास ने लोकरंजन को काव्य का प्रयोजन माना है।
देव ने केवल यश को ही काव्य का प्रयोजन मानते हुए भावनाएं के कथन की पुष्टि की है।
ऊंच नीच अरू कर्म बस, चलो जात संसार।
रहत भाव्य भगवंत जस, नव्य काव्य सुखसार।।(देव)
मलिक मोहम्मद जायसी ने यश की कामना को अपने काव्य का प्रयोजन माना है।
आधुनिक हिन्दी विद्वानो के अनुसार काव्य प्रयोजन
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान को भी काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“लेखक का उद्देश्य सदा यही रहा है कि उसके लेखों से पाठकों का मनोरंजन भी हो और साथ ही उसके मनोरंजन की सीमा भी बढ़ती रहे।”(महावीर प्रसाद द्विवेदी)
मैथिलीशरण गुप्त मनोरंजन और उपदेश ज्ञान को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए उसमें उचित उपदेश का मर्म भी होना चाहिए।” (मैथिलीशरण गुप्त)
जयशंकर प्रसाद मनोरंजन और शिक्षा को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“संसार में काव्य से दो तरह के लाभ पहुंचते हैं – मनोरंजन और शिक्षा।” (जयशंकर प्रसाद)
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हृदय को मुक्तावस्था में लाना काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“काव्य का लक्ष्य है जगत के मार्मिक पक्ष को गोचर रूप में लाकर सामने रखना जिससे मनुष्य खुद को व्यक्तिगत संकुचित घेरे से बाहर निकाल सके।”
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मानवहित को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ।” (हजारी प्रसाद द्विवेदी)
डाॅ. नगेन्द्र आत्माभिव्यक्ति को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“आत्माभिव्यक्ति ही वह तत्व है जिसके कारण कोई व्यक्ति साहित्यकार और उसकी कृति साहित्य बन पाती है।” (डाॅ. नगेन्द्र)
नन्ददुलारे वाजपेयी आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
“वह रचना काव्य नहीं जिसमें वास्तविक अनुभूति का अभाव हो।” (नन्ददुलारे वाजपेयी)
काव्य प्रयोजन की विशेषता
1- काव्य का प्रमुख प्रयोजन आत्महित और मानवहित है।
2- काव्य का लक्ष्य आत्माभिव्यक्ति और आत्मानुभूति है।
3-काव्य का प्रयोजन स्वान्तः सुखाय होने के साथ ही लोक कल्याणकारी भी है।
4- काव्य का प्रयोजन मनोरंजन उपदेश ज्ञान के साथ-साथ शिक्षाप्रद है।
5- काव्य का प्रयोजन अमंगल का निवारण, अर्थ की प्राप्ति, आनंद की प्राप्ति, व्यवहार ज्ञान इत्यादि है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारतीय दृष्टि काव्य प्रयोजन के संबंध में आत्मज्ञान से लेकर लोककल्याण तक के लक्ष्य को निर्धारित करती है।
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