भूषण का जीवन परिचय, bhushan ka jiwan parichay
भूषण रीतिबद्ध काव्यधारा एवं वीररस के प्रसिद्ध कवि थे। भूषण का जन्म 1613 ई. में हुआ था। चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र ने ‘कविभूषण‘ की उपाधि दी थी तब से भूषण नाम से प्रसिद्ध हुए | भूषण ‘चिंतामणि’ और ‘मतिराम’ के भाई थे। ये राष्ट्रीय चेतना के कवि हैं।
कई राजाओं से संबंध एवं राजाश्रय प्राप्त। मन के अनुकूल आश्रयदाता छत्रपति शिवाजी थे। शिवाजी के पौत्र शाहजी एवं छत्रसाल बुंदेला के राजदरबार से भी संबंध था।
पन्ना के महाराज छत्रसाल के यहाँ इनका बड़ा सम्मान था। एक बार महाराज छत्रसाल ने इनकी पालकी में अपना कंधा भी लगाया था जिस पर इन्होंने कहा था-
‘सिवा को बखानौं कि बखानौ छत्रसाल को ।’
भूषण विरचित शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रसाल दशक ये 3 ग्रंथ मिलते हैं। इनके अतिरिक्त इनके 3 और ग्रंथ कहे जाते हैं- भूषण उल्लास, दूषण उल्लास और भूषण हजारा। ( ये तीनों रचनाएँ अनुपलब्ध हैं)
‘शिवराजभूषण‘ अलंकार-ग्रंथ है। शिवराजभूषण में 105 अलंकारों का विवेचन हुआ है ।
‘शिवाबावनी´ महाराष्ट्र के शिवाजी की प्रशंसा में रचित रचना है तो ‘छत्रसाल–दशक’ छत्रसाल की प्रशंसा में रचित 10 पद्यों में रचित कृति है।
‘शिवाजी’ और ‘छत्रसाल’ भूषण के नायक हैं, जिन्हें आधार बनाकर भूषण ने वीररस से ओत-प्रोत वीरतापरक रचनाएँ कीं हैं।
शुक्ल जी का मत है कि – “शिवाजी और छत्रसाल की वीरता के वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता ।”
भूषण की भाषा–ब्रजभाषा और शैली ओजपूर्ण मुक्तक शैली थी। इनके काव्य में ओजगुण की प्रधानता है एवं छंद कवित्त, सवैया है।
रीतिकाल के कवि होने के कारण भूषण ने अपना प्रधान ग्रंथ ‘शिवराजभूषण’ अलंकार के ग्रंथ के रूप में बनाया पर रीतिग्रंथ की दृष्टि से अलंकार – निरूपण के विचार से यह उत्तम ग्रंथ नहीं कहा जा सकता । लक्षणों की भाषा इसमें स्पष्ट नहीं है और उदाहरण भी कई स्थलों पर ठीक नहीं है भूषण की भाषा में ओज की मात्रा तो पूरी है पर वह अधिकतर अव्यवस्थित है व्याकरण का उल्लंघन प्रायः है, वाक्य रचना भी गड़बड़ है। – रामचंद्र शुक्ल