भिखारीदास का जीवन परिचय, bhikharidas ka jiwan parichay
भिखारीदास प्रतापगढ़ (अवध) के पास टयोगा गांव के रहनेवाले श्रीवास्तव कायस्थ थे। इन्होंने अपना वंश परिचय पूरा दिया है। इनके पिता कृपालदास, पितामह वीरभानु, प्रपितामह राय रामदास और वृद्ध प्रपितामह राय नरोत्तम दास थे । दास जी के पुत्र अवधेशलाल और पौत्र गौरीशंकर थे जिनके अपुत्र मर जाने से वंशपरंपरा खंडित हो गई ।
भिखारीदास की रचनाएँ
- रस सारांश ( 1742 ई.)
- शतरंज शतिका
- छंदोर्णव पिंगल (1742 ई.)
- काव्यनिर्णय (1746 ई.)
- शृंगार निर्णय (1750 ई.)
- शब्दनाम प्रकाश (शब्दकोश 1738 ई.)
- विष्णु पुराण भाषा
⇒ ‘रस सारांश’ (1742 ई.) रस संबंधित इनकी रचना है, जिसमें नायक-नायिका का विस्तार से विवेचन मिलता है। इसके संक्षिप्त संस्करण का नाम तेरिज रससारांश है।
⇒ काव्य निर्णय (1746) – प्रतापगढ़ के सोमवंशी राजा पृथ्वीराज के भाई हिंदूपति सिंह के आश्रयकाल में रचित यह रचना है ।
⇒ श्रृंगार-निर्णय (1750 ई.) यह रस-विवेचन से संबंधित रचना है। इस रचना का निर्माण आश्रयदाता हिन्दूपति सिंह के समय हुआ था ।
⇒ रस-ग्रंथ के विषय में शुक्ल जी की मान्यता है कि- ” रसग्रंथ वास्तव में नायिका-भेद के ही ग्रंथ हैं,
⇒ छंदोर्णव पिंगल (1742 ई.) भिखारीदास की छंद पर रचित प्रसिद्ध रचना है। यह भी हिन्दूपति सिंह के समय लिखा गया था ।
⇒ रस सारांश, श्रृंगार निर्णय, छंदोर्णव पिंगल भिखारीदास के 3 काव्यशास्त्रीय ग्रंथ हैं।
⇒ ‘शब्दनाम प्रकाश‘ भिखारीदास का शब्दकोश है तो ‘शतरंजशतिका‘ शतरंज पर रचित रचना है ।
⇒ भिखारीदास आचार्य और कवि दोनों हैं। शुक्ल जी ने इन्हें आचार्य से अधिक कवि माना है भिखारीदास रीतिकाल के अंतिम आचार्य माने जाते हैं।
⇒ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – “ये हिंदी के अच्छे आचार्यों में गिने जाते हैं।”
⇒ देव की रचना ‘जातिविलास’ की भाँति इन्होंने निम्नवर्गीय स्त्रियों (यथा – नाइन, धोबिन, कुम्हारिन इत्यादि) का वर्णन नायिका के रूप में न कर दूती के रूप में किया है ( रसाभास के डर से) ।
⇒ भिखारीदास का प्रसिद्ध कथन है-
“आगे के सुकवि रीझि हैं तो कविताई न तु राधिका कन्हाई सुमिरन को बहानो है|”
“श्रीमानन के भौन में भोग्य भामिनी और|
तिनहूँ को सुकियाह में गनै सुकवि सिरमौर||”