ईदगाह कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा 1933 में लिखी गई है। यह कहानी सर्वप्रथम चाँद पत्रिका में छपी थी।
ईदगाह कहानी के पात्र
मुख्य पात्र:
⇒ हामिद (आबिद का पुत्र)
⇒ अमीना (हामिद की दादी)
⇒ महमूद
⇒ मोहसीन
⇒ नूरे
⇒ सम्मी
गौण पात्र:
⇒ आबिद (हामिद के पिता)
⇒ चौधरी कयामत अली (गाँव का धनवान व्यक्ति)
⇒ कांस्टेबल (मोहसीन का मामू)
⇒ बच्चों द्वारा मेले से खरीदे गए खिलौने
⇒ हामिद चिमटा ख़रीदता है।
⇒ महमूद सिपाही ख़रीदता है।
⇒ मोहसीन भिश्ती ख़रीदता है।
⇒ नूरे वकील खरीदता है।
⇒ सम्मी धोबिन और खँजड़ी ख़रीदती है।
ईदगाह कहानी का सारांश
हामिद अपने दादी अमीना के साथ रहता है। हामिद के पिता आबिद की मृत्यु हैजे से बहुत पहले हो चुकी है और उसके माता की भी मृत्यु शरीर पीला पड़ने के कारण हो चुकी है।अमीना लोगों का कपड़ा सीलकर किसी तरह अपना जीवन-यापन करती है। ईद का त्योहार आ गया है। लोगों के घर खूब ज़ोरों से तैयारियाँ चल रही है लेकिन बूढ़ी अमीना अपने बेटे को याद करके सोचती है कि यदि आज आबिद होता तो मैं ऐसे ईद नहीं मनाती। हामिद अभी ४-५ साल का ही है। गाँव के बच्चे महामूद, मोहसीन, नूरे और सम्मी ईदगाह और मेले जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। हामिद भी मेले के लिए तैयार है। उसकी दादी अमीना सोचती है कि इस बच्चे को बिना किसी अभिभावक के कैसे अकेले जाने दूँ। उसको देने के लिए उसके पास ज्यादा पैसे भी नहीं है। वह कपड़े की सिलाई करके आठ पैसे कमाई थी उसमें से तीन पैसे हामीद को देकर बच्चों के साथ मेले के लिए भेज देती है।
बच्चे खूब आनंद लेते हुए मेले जा जा रहे हैं। वह रास्ते में पड़ने वाले पुलिस स्टेशन को देखकर आपस में तरह-तरह की बातें करते हैं। महमुद कहता है कि ये पुलिस वाले चोरों के साथ मिलकर रात को चोरी करवाते हैं। इसी प्रकार से बातें करते हुए वे वे लोग ईदगाह पहुँच जाते हैं। नमाज़ पढ़ने वाले लोगों को देखकर वे लोग लोगों की एकता भावना और मुस्लिम समाज से परिचित होते हैं।
अब बच्चे झूला झूलते हैं लेकिन हामिद नहीं झूलता है वह सोचता है कि हमें तीन पैसे ही मिले है अगर झूला झूलूँगा तो उसका एक तिहाई समाप्त हो जाएगा। अब बच्चे मिठाई की दुकान पर जाते हैं लोग तरह-तरह की मिठाई खाते हैं लेकिन हामिद दूर खड़ा होकर उन लोगों को देखता रहता है। मोहसीन उसकी तरफ़ मिठाई बढ़ाकर अपने मुँह में डाल लेता है सभी बच्चे हँसने लगते है। अब बच्चे खिलौने की की दुकान पर जाते हैं। महमूद सिपाही, मोहसीन भिश्ती, नूरे वकील और सम्मी धोबिन ख़रीदती है। लेकिन हामिद खिलौने की दुकान से भी कुछ नहीं ख़रीदता है।
हामिद को याद आता है की जब उसकी दादी रोटी बनाती हैं तो उनका हाथ जल जाता है। तब वह उनके लिए चिमटा ख़रीदने का निर्णय लेता है और उसे वह खरीद लेता है। चिमटे को वह रुस्तमे-हिंद की उपमा देता है। वह सोचना जब दादी चिमटा देखेंगी तो वह बहुत खुश होंगी। फिर इन मिट्टी के खिलौने ख़रीदने से क्या फायदा जो गिरकर टूट जाते हैं लेकिन चिमटा तो लंबे समय तक काम आएगा। उसके चिमटे पर उसके मित्र बहुत कमेंट करते हैं लेकिन हामिद सभी को अपने तर्क से हरा देता है।
हामिद जब चिमटा लेकर घर पहुँचता है तो उसकी दादी बहुत ही खुश होती हैं और उनकी आँखों में आंसू आ जाते हैं। वह बच्चे को खूब आशीष देती हैं।
ईदगाह कहानी का निष्कर्ष:
1- बाल मनोविज्ञान पर आधारित
2- मुस्लिम समाज का चित्रण
3- सामाजिक, आर्थिक ऊँच-नीच का वर्णन
4- पुलिस विभाग में व्याप्त भ्रष्टता का वर्णन
5- गरीबी और अभाव के कारण बचपन की मासूमियत के खत्म होने की कहानी ।
6- यह कहानी गरीबी में भी उच्च संस्कार को चित्रित करती है।
7- इस कहानी में बालमन और मातृ वात्सल्य सहजता का चित्रण किया गया है।
9- दुकानदार ने चिमटे की कीमत 6 पैसे बताई थी