हिंदी साहित्य के आदिकाल का अपभ्रंश साहित्य और जैन साहित्य
हिंदी साहित्य का आदिकाल में अपभ्रंश साहित्य के महत्त्वपूर्ण कवियों का परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करेंगे | अपभ्रंश साहित्य में ही जैन साहित्य की विशेषताओं को सम्मिलित किया गया है | आदिकाल की महत्त्वपूर्ण पंक्ति जो प्राय: परीक्षाओं में पूछी जाती है |
स्वयंभू का परिचय व उनकी रचनाएँ–
➡️पउमचारिउ, रुठ्ठणेमिचरीउ, स्वयंभू छंद स्वयंभू की रचनाएँ हैं |
➡️ पउमचरिउ में कुल पाँच कांड है । (1- विद्याधर काण्ड 2- अयोध्या काण्ड 3- सुंदर काण्ड 4- बुद्ध काण्ड 5- उत्तर काण्ड)
➡️ पउमचारिउ रामकथा पर आधारित है । इसके श्लोक अपभ्रंश में हैं ।
➡️ पउमचारिउ को स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने पूर्ण किया है।
➡️ रुठ्ठणेमिचरीउ का अन्य नाम हरिवंश पुराण या अरिष्टनेमिचरिउ है । इसकी कथा महाभारत पर आधारित है ।
➡️ स्वयंभू ने अपनी भाषा को देशी भाषा कहा है।
➡️ स्वयंभू का समय 783 ई॰ (आठवीं सदी) माना जाता है।
➡️ स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि या व्यास कहा जाता है ।
➡️ डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपभ्रंश भाषा के प्रथम कवि स्वयंभू को हिंदी का प्रथम कवि माना है।
पुष्पदंत का परिचय व उनकी रचनाएँ
➡️1- तिरसठी महापुरिस गुणालंकार 2- णयकुमारचरिउ 3- जसहर चरिउ 4- शिवमहिन्नस्तोत्र
➡️ पुष्पदंत की रचना तिरसठी महापुरिस गुणालंकार को महापुराण के नाम से भी जाना जाता है।
➡️ महापुराण में 63 महापुरुषों का जीवन चरित वर्णित है ।
➡️ पुष्पदंत की रचना जसहर चरिउ का अन्य नाम यशोधरा चरित है।
➡️ जसहर चरिउ में हिंसा के दुष्परिणामों का चित्रण किया गया है।
➡️ पुष्पदंत को हिंदी का भवभूति कहा जाता है।
➡️ शिवसिंह सेंगर ने पुष्य कवि को भाखा की जड़ कहा है।
➡️ पुष्पदंत ने स्वयं को अभिमानमेरु, काव्यरत्नाकर, कविकुलतिलक आदि उपाधियों से विभूषित किया है।
➡️ पुष्पदंत का समय 972 ई॰ (दसवी शती) माना जाता है।
➡️ भोलाशंकर व्यास ने पुष्पदंत की तुलना संस्कृत कवि माघ से की है।
➡️ पुष्पदंत मान्यखेट के प्रतापी राजा कर्ण के महामात्य भीम के सभा–कवि थे।
हेमचंद्र का परिचय व उनकी रचनाएँ
➡️ रचनाएँ– कुमारपाल चरित, प्राकृत व्याकरण, छंदोनुशासन, देशीनाम माला, द्वयाश्रय काव्य
➡️ हेमचंद्र को प्राकृत कस पाणिनी माना जाता है। आपने व्याकरण के उदाहरणों के लिए पाणिनी ने भट्टी के समान एक द्वयाश्रय काव्यकी रचना की है।
➡️ हेमचंद्र के व्याकरण का नाम सिद्ध हेमचंद्र शब्दानुशासन है। इसे सिद्ध हेम के नाम से भी जाना जाता है।
➡️ हेमचंद्र गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह और उनके भतीजे कुमारपाल के राजदरबार में रहते थे।
आदिकाल के अन्य कवि व उनकी रचनाएँ
➡️ धनपाल की प्रमुख रचना भविसयत्तकहा है। इसका दूसरा नाम सूर्यपंचमी है।
➡️ मुनिराम सिंह जैन साहित्य में सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी कवि कहे जाते हैं।
➡️ पाहुड़दोहा की रचना मुनिराम सिंह ने की है। इसे दोहों का उपहार कहा जाता है।
➡️ परमात्म प्रकाश और योगसार की रचना जोइन्दु ने की है ।
➡️ अब्दुल रहमान द्वारा लिखित संदेश रासक एक खंड काव्य है। इसमें विक्रमपुर की एक वियोगिनी के विरह की कथा वर्णित है।
➡️ जिनदत्तसुरी की रचना उपदेश रसायन रास, चरचरी, कालस्वरूपकुलक है।
➡️ जैन रास काव्य परंपरा का प्रथम ग्रंथ उपदेश रसायन रास को माना जाता है।
➡️ जिनधर्मसूरी की रचना स्थूलिभद्ररास है। इसमें राजकीय षडयंत्रों और कर्मचारियों की विषद ईर्ष्या का चित्रण है । इस रचना में कोसा नाम की वेश्या का वर्णन हुआ है।
➡️ भरतेश्वर बाहुबलि रास के रचनाकार शालिभद्र सूरि हैं। यह अपभ्रंश और पुरानी हिंदी की कड़ी है। यह संवाद योजना में अत्यधिक नाटकीय है।
➡️ मेरुतुंग की रचना प्रबंधचिंतामणि में दुहा-विद्या में विवाद करने वाले दो चारणों की कथा आई है। इसलिए अपभ्रंश काव्य को दुहा-विद्या भी कहा जाता है।
➡️ अपभ्रंश से पूर्व दोहा का प्रयोग नहीं होता था।
➡️ देवसेन का समय दसवीं सदी है इनकी रचना श्रावकाचार है। इसे हिंदी की पहली रचना माना जाता है।
➡️ प्राकृत पैंगलम की टिका वंशीधर नामक किसी विद्वान ने लिखा है।
➡️आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने इतिहास में आदिकालीन रचनाओं को दो भागों में विभाजित किया है 1- अपभ्रंश 2- देशभाषा (बोलचाल)
➡️ जैन साहित्य का प्रधान रस शान्त रस है|
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निम्नांकित बारह रचनाओं को ही साहित्य में स्थान दिया है।
अपभ्रंश की रचनाएँ
1- विजपाल रासो – नल्ल सिंह
2- हम्मीर रासो – शारंगधर
3- कीर्तिलता – विद्यापति
4- कीर्तिपताका – विद्यापति
देशभाषा काव्य की रचनाएँ
1- ख़ुमान रासो – दलपत विजय
2- बिसलदेव रासो – नरपति नाल्ह
3- पृथ्वीराज रासो – चंदवरदाई
4- जयचंद्र प्रकाश – भट्टकेदार
5- जयमयंक जस चंद्रिका – मधुकर कवि
6- परमाल रासो – जगनिक
7- खुसरो की पहेलिया खुसरो
8- विद्यापति की पदावली
आदिकाल की अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
1- सोमप्रभसुरि – कुमारपाल प्रतिबोध
2- धर्मसूरी – स्वामिरासा
3- मेरुतुंग – प्रबंधचिंतामणि
4- विजयभट्ट – गौतम रासा
5- ईश्वरसुरी – ललितांग
6- विनयचंद सूरी – नेमिनाथ चौपाई
7- हरिभद्र सूरि – नेमिनाथ चिरउ
8- यशकीर्ति – पांडवपुराण
9- विजयसेनसूरी – रेवंतगिरी रास
10- पलहण – आबूरास
11- सुमतिगण – नेमिनाथरास
12- शालिभद्र सूरि – भरतेश्वर बाहुबलि रास, बुद्धिरास, पंच पांडव चरित रास
13- आसगु – चंदनबाला रास, जीवदया रास
14- उदयवंत – गौतम स्वामी रास