हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथन जो विभिन्न कवियों और लेखकों द्वारा एक-दुसरे के विषय में या साहित्य के विषय में कहे गए हैं | ये महत्त्वपूर्ण कथन हिंदी साहित्य संबंधी अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं | हिंदी साहित्य से संबंधी महत्त्वपूर्ण पंक्ति ( important statment of hindi sahity ), हिंदी साहित्य की प्रमुख पंक्तियाँ
साहित्यकारों के कथन
⇒ प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का प्रतिबिंब होता है। – रामचंद्र शुक्ल
⇒ प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव माना जा सकता है। – रामचंद्र शुक्ल
⇒ सिद्ध साहित्य का महत्त्व इस बात में बहुत अधिक है कि उससे हमारे साहित्य के आदिरूप की सामग्री प्रामाणिक ढंग से प्राप्त होती है। – डॉ. रामकुमार वर्मा
⇒ ये साम्प्रदायिक शिक्षा मात्र हैं, अतः शुद्ध साहित्य की कोटि में नहीं आती। – रामचंद्र शुक्ल
⇒ आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं, उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोविन्द’ को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी —रामचंद्र शुक्ल
⇒ शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारत में दूसरा नहीं हुआ; गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे । – हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ हिन्दी का वास्तविक प्रथम महाकवि चंदबरदायी को ही कहा जा सकता है। —मिश्रबंधु
⇒ मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिन्दी में पूछो जिसमें कि मैं कुछ अद्भुत बातें बता सकूँ। (च मन तूतिए हिंदुम ता नाज गोयम) – अमीर खुसरो
⇒ दोहा या दूहा अपभ्रंश का अपना छंद है। उसी प्रकार जिस प्रकार गाथा प्राकृत का अपना छंद है। – हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ उसमें जहाँ एक ओर ईश्वरवाद की निश्चित धारणा उपस्थित की गई है, वहीं दूसरी ओर विकृत करने वाली समस्त परम्परागत कड़ियों पर आघात किया गया है। – डॉ. रामकुमार वर्मा, नाथ संप्रदाय के सम्बन्ध में
⇒ भक्तिकाल स्वर्ण काल है। – ग्रियर्सन
⇒ भक्तिकाल 15वीं शती का पुनर्जागरण है। –ग्रियर्सन
⇒ धर्म की रसात्मक अनुभूति का नाम भक्ति है। —शुक्ल
⇒ पोषणं तदनुग्रहं पुष्टि ।—श्रीमद्भागवत
⇒ छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व की कविता वैयक्तिक कविता है —डॉ. नगेन्द्र
⇒ वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया । यह व्यक्तिवादी कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है। — डॉ. नगेन्द्र
⇒ द्विवेदी युग जागरण सुधारकाल है। — डॉ. नगेन्द्र
⇒ व्यक्तिवादी गीति काव्य की सभी प्रवृत्तियाँ मिलती हैं —आरसी प्र. सिंह में
⇒ एक गहन बौद्धिकता इन कवियों (प्रयोगवादी) पर शीशे की पर्त की तरह जमती जाती है। छायावाद के रंगीन कल्पना-वैभव और सूक्ष्म तरल भावना और चिंतन । के स्थान पर यहाँ ठोस बौद्धिक तत्त्व का बोझिलापन है ।… ये कविताएँ अनिवार्य रूप से नहीं सिद्धांत रूप से भी दुरुह हैं। – डॉ. नगेन्द्र
⇒ मुक्तिबोध का काव्य-संकलन ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ एक बड़े कलाकार की स्कैच बुक लगता है।— रामस्वरूप चतुर्वेदी
⇒ अँधेरे में परम अभिव्यक्ति अस्मिता की खोज है।— नामवर सिंह
⇒ अँधेरे में अन्तस्थल का विप्लव है । — निर्मला जैन
⇒ अँधेरे में (मुक्तिबोध) कविता एक लावा है। यह Guernica in verse हैं । इसके बहुत से अंश पिकासो के विश्वप्रसिद्ध चित्र जैसा प्रभाव डालते हैं।— प्रभाकर माचवे
⇒ अँधेरे में अरक्षित जीवन की कविता है अँधेरे में अपराध भावना का अनुसंधान है । – रामविलास शर्मा
⇒ ‘अँधेरे में’ कविता देश के आधुनिक जन इतिहास का, स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात् का एक दहकता इस्पाती दस्तावेज है। – शमशेर बहादुर सिंह
⇒ अँधेरे में आत्म संशोधन का अनुसंधान है। – इंद्रनाथ मदान
⇒ कवि हूँ पीछे पहले मानव हूँ। —नागार्जुन
⇒ विरुद्धों का सामंजस्य कर्मक्षेत्र का सौंदर्य है। – रामविलास शर्मा
⇒ सौंदर्य की वस्तुगत सत्ता होती है, इसलिए यह शुद्ध सौंदर्य नाम की कोई चीज नहीं होती है। – रामविलास शर्मा
⇒ रस्मौ रिवाज भाखा का दुनिया से उठ गया है। –मुंशी सदासुखलाल
⇒ यह वह कहानी है कि जिसमें हिंदी छुट और न किसी बोली का मेल है न पुट – इंशाअल्ला खाँ की भाषा नीति
⇒ हिंदी में रीति-ग्रंथों की परम्परा चिंतामणि त्रिपाठी से चली, अतः रीतिकाल का प्रारंभ उन्हीं से मानना चाहिए । – रामचंद्र शुक्ल
⇒ लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर रचना करने वाले रीतिकाल के सैकड़ों कवि वस्तुतः आचार्य की कोटि में नहीं आते। — रामचंद्र शुक्ल
⇒ रीतिकाव्य के रचयिता यौवन और वसंत के कवि हैं। –भगीरथ मिश्र
⇒ यहाँ नारी कोई व्यक्ति या समाज के संघटन की इकाई नहीं यथासम्भव मुक्त विलास का एक उपकरण मात्र है। – हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ श्रृंगारिकता के प्रति रीतिकालीन कवियों का दृष्टिकोण भोगपरक था। – विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
⇒ भक्ति उनके लिए ( रीतिकालीन कवियों) मनोवैज्ञानिक आवश्यकता थी – डॉ. नगेन्द्र
⇒ हिंदू हृदय और मुसलमान हृदय आमने-सामने करके अजनबीपन मिटाने वालों में इन्हीं का नाम लेना पड़ेगा । —रामचंद्र शुक्ल, जायसी के विषय में
⇒ भारतेन्दु हरिश्चंद्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता, मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिंदी साहित्य को भी नये मार्ग पर लाकर खड़ा किया —नंददुलारे वाजपेयी
⇒ हिंदी नई चाल में 1873 में नहीं ढली बल्कि यह काम बहुत पहले राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद कर चुके थे। 1857 ई. के आस-पास राजा शिवप्रसाद जैसी हिंदी लिख रहे थे। उसी को भारतेंदु ने अपनाया। – डॉ. रामविलास शर्मा
⇒ भारतेन्दु ने कोई नयी भाषा नहीं चलायी। उन्होंने प्रचलित खड़ी बोली को साहित्यिक रूप दिया – डॉ. रामविलास शर्मा
⇒ हिंदी की नवीन कविता का क्रांतिदूत रामेश्वर शुक्ल अंचल हैं।
– नंददुलारे वाजपेयी
⇒ जब तक मानव हृदय में रागात्मकता का अवशेष रहेगा तब तक बच्चन की कविता का आकर्षण चिरंतन एक चिरस्थायी रहेगा। —डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त
⇒ वैयक्तिवादी कविता मस्ती, उमंग, उल्लास की कविता है ।- हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ मधुशाला की मादकता अक्षय है। मधुशाला में हाला प्याला मधुबाला और मधुबाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।— सुमित्रानंदन पंत
⇒ व्यक्तिवादी कविता का प्रमुख स्वर निराशा का है, अवसाद का है, थकान का है, टूटन का है चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो । —रामदरश मिश्र
⇒ यदि सूर – सूर, तुलसी-ससी, उडुगन केशवदास तो बिहारी पीयूषवर्षी ‘मेघ’ हैं। – राधाचरण गोस्वामी
⇒ बिहारी का विरह मजाक की हद तक पहुँच गया है। —रामचंद्र शुक्ल
⇒ बिहारी हिंदी के चौथा रत्न हैं । — भगवानदीन
⇒ बिहारी रीतिकाल के सबसे अधिक लोकप्रिय कवि हैं । — हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ बिहारी के व्यक्तित्व में प्रतिभा, अध्ययन और अभ्यास तीनों का समन्वय मिलता है । —डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त
⇒ बिहारी में रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं कि जिनसे हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है । इनका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य का एक रत्न माना जाता है। —रामचंद्र शुक्ल
⇒ प्रकृति के नाना रूपों के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था। —रामचंद्र शुक्ल
⇒ केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता न थी जो एक कवि में होनी चाहिए। —रामचंद्र शुक्ल
साहित्य से संबंधित उक्ति
⇒ केशव के संवादों में पात्रों के अनुकूल क्रोध, उत्साह आदि की व्यंजना भी सुंदर है तथा वाक्पटुता और राजनीति के दांव-पेंच का आभास भी प्रभावपूर्ण है। — रामचंद्र शुक्ल
⇒ भक्तिकाल की वेगवती धारा को रीति पथ पर मोड़ने के लिए प्रभावशाली व्यक्तित्व की आवश्यकता थी, प्रतिभा से पुष्ट यह व्यक्तित्व केशव का था। —डॉ. नगेन्द्र
⇒ भाषा के लक्षक और व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है। इसकी पूरी जानकारी इन्हीं (घनानंद) को थी -रामचंद्र शुक्ल
⇒ हिंदी के इतने सारे कवियों के बीच घनानंद ही अपने आँसुओं से रो रहे हैं, किराए के आँसुओं से नहीं। दिनकर
⇒ कबीर आदि निर्गुण संत कवियों में ज्ञानमार्ग की जो बातें हैं वे हिन्दू शास्त्रों की हैं, जिनका संचय उन्होंने रामानंद के उपदेशों से किया है। – रामचंद्र शुक्ल
⇒ सूर के भ्रमरगीत में जितनी सहृदयता एवं भावुकता है उतनी ही चतुरता एवं वागिविदग्धता भी । – रामचंद्र शुक्ल
⇒ नवीन प्रसंगों की उद्भावना सूर काव्य की ऐसी विशेषता है, जो तुलसी में उतनी नहीं ।- रामचंद्र शुक्ल
⇒ लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का अपार धैर्य लेकर आया हो। उनका (तुलसी) सारा काव्य समन्वय की विराट् चेष्टा है। – हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ हिंदी के मध्यकाल का भक्ति आंदोलन भारतीय चिंतन धारा का स्वाभाविक विकास है। —हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ उर्दू यामिनी भाषा है। – लल्लूलाल (प्रेमसागर की रचना करते वक्त यामिनी भाषा छोड़ने की बात लल्लूलाल ने की थी )
⇒ हिंदी आर्यभाषा है। —दयानंद के अनुयायी
⇒ हिंदी एक भद्दी बोली है। —गार्सा-द-तासी (उर्दू के समर्थक)
⇒ हमारे मत से हिंदी और उर्दू दो बोली न्यारी-न्यारी है। —राजा लक्ष्मण सिंह (रघुवंश के गद्यानुवाद की भूमिका
⇒ कविताई न मैंने पाई, न चुराई। इसे मैंने जीवन जोतकर किसान की तरह बोया और काटा है। यह मेरी अपनी और प्राण की तरह प्यारी है। —केदारनाथ अग्रवाल
⇒ नागार्जुन अकेले व्यक्ति हैं जो कांग्रेस सरकार की दुर्बलताओं को निर्भीकता से चित्रित करते हैं।… गाँधी की हत्या के बाद सम्प्रदायवाद, फासिस्टवाद और गृहमंत्री की असावधानी की गंध उन्हें मिली और उन्होंने ये बातें डंके की चोट पर कही हरिश्चंद्र युग के कुछ साहित्यकारों को छोड़कर पिछले 50 वर्षों में नागार्जुन जैसा तीखी और सीधी चोट करने वाला व्यंग्यकार हमारे साहित्य में नहीं हुआ । —विश्वम्भर मानव
⇒ केदार आँखों से पान किये हुए सौंदर्य के कवि और कलाकार हैं। —शमशेर
⇒ सचमुच ही यह कवि (आरसी. प्रसाद सिंह) मस्त है। सौंदर्य को देख लेने पर यह बिना कहे रह नहीं सकता । भाषा पर यह सवारी करता है। —हजारी प्रसाद द्विवेदी
⇒ मैं हिंदी और उर्दू का दोआब हूँ। —शमशेर
⇒ टेकनीक में एजरा पाउन्ड मेरा सबसे बड़ा आदर्श है —शमशेर
⇒ शमशेर कवियों के कवि हैं। —अज्ञेय
⇒ शमशेर का गद्य हिंदी का जातीय गद्य है । —रामचंद्र तिवारी
⇒ शमशेर प्रणय जीवन का प्रसंगबद्ध रसवादी कवि हैं —मुक्तिबोध
⇒ शमशेर की शमशेरियत ।—विष्ष्णु खरे
⇒ शमशेर की मूल मनोप्रवृत्ति एक इंप्रेशनिस्टिक चित्रकार की है। —मुक्तिबोध
⇒ शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों से तैयार किया है । —मुक्तिबोध
⇒ गोविंद नारायण मिश्र के अनुप्रास गुँथे शब्द-गुच्छों का अटाला है। —रामचंद्र शुक्ल
⇒ यह नाटक न पौराणिक है, न ऐतिहासिक, न यथार्थवादी । यह तो एक मॉडर्न ‘एलिगोरी’ आधुनिक अन्योक्ति का मंचीय रूप है। —जगदीशचंद्र माथुर, पहला राजा (यह नाटक ‘नेहरू’ को समर्पित है)
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