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छंद की परिभाषा, भेद, अंग, chhand ki paribhasha, bhed, ang
छंद शब्द ‘छम्‘ और ‘द‘ दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें छम् का अर्थ होता है ‘समुचित आकार‘ और ‘द‘ का अर्थ होता है, देने वाला, इस प्रकार छंद का अर्थ हुआ समुचित आकार देने वाला अर्थात काव्य का वह रूप जो उसे समुचित आकार प्रदान करें उसे छंद कहते हैं।
छंद संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य पिंगल हैं इन्होंने छंद सूत्र लिखा। जिसे पिंगल सूत्र भी कहा गया। भारतीय आचार्य छंद का उद्गम ऋग्वेद से मानते हैं। छंद शास्त्र को पिंगल शास्त्र भी कहा जाता है।
छंद का वर्णन सर्वप्रथम वेदांग में मिलता है। वेद के अध्ययन के लिए वेदांग का ज्ञान आवश्यक है। वेदांग के 6 अंग हैं। इन 6 अंगों के अलग-अलग प्रवर्तक हैं। और इन छह वेदांगों का शरीर के अलग-अलग भागों से संबंध है जो निम्नवत् है-
वेदांग | प्रवर्तक | शरीर अंग |
शिक्षा | वामत्ज्य | नाक |
कल्प | गौतम | हाथ |
व्याकरण | पाणिनि | मुख |
निरुक्त | यास्क | कान |
ज्योतिष | लगध | आंख |
छंद | पिंगल | पैर |
छंद की परिभाषा
छंद के संबंध में पाणिनि ने कहा है ‘छंद: पादौ तु वेदस्य’ अर्थात बिना छंद के वेद चलने में असमर्थ है।
वैदिक वार्तिककार सायण ने लिखा है ‘अपमृत्युं वारयितुं आच्छादयति इति छंद:‘ अर्थात कवि और उसकी कृति को जो अपमृत्यु से बचाता है वह छंद है।
छंद के बारे में अमर सिंह ने कहा है कि ‘लयाधारो छंद:‘ अर्थात छंद का आधार लय माना जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छंद की परिभाषा देते हुए कहा है “छोटी-छोटी ध्वनियों के प्रवाह पूर्ण सामंजस्य का नाम छंद है।”
छंद के अंग
छंद के कुल पांच अंग हैं
1- यति
2- गति
3- लघु
4- गुरु
5- गण
1- यति- छंद के उच्चारण में जहां जिह्वा विराम लेती है उसे यदि कहते हैं। अल्पविराम की तरह यति को समझना चाहिए।
2- गति- छंदों का प्रवाह गति कहलाता है।
3- ह्रस्व (लघु) :- यह वर्ण और मात्रा के गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है। यथा अ, इ, उ, लघु का चिह्न ‘।’ है। दो लघु वर्ण मिलकर एक गुरु वर्ण के बराबर माने जाते है इनके नियम अधोलिखित है।
- संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं।
- चन्द्रबिन्दु वाले वर्ण लघु या एक मात्रा वाले माने जाते हैं। उदा०-हँसना, फँसना आदि।
- हस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं जैसे कि, कु आदि ।
- हलन्त – व्यंजन भी लघु मान लिये जाते हैं जैसे अहम्, स्वयम् आदि।
- यदि कोई अर्द्ध अक्षर हो, परन्तु वह किसी पूर्ण अक्षर के बाद हो तो उस अर्द्ध अक्षर के लिए एक मात्रा लगती है। जैसे- पश्यात् 11s1
- यदि कोई अक्षर अर्थ अक्षर से ही शुरू हो रहा हो तो उस अर्द्ध अक्षर के लिए कोई मात्रा नहीं लगती है- जैसे- त्याग- s1
- यदि किसी अक्षर के बाद दो अर्द्ध अक्षर लगातार हो तो दोनों अर्द्ध अक्षर के लिए केवल एक ही मात्रा लगती है। जैसे- – उज्ज्वल- 1111=4
- यदि दो गुरु वर्णों के बीच में कोई अर्द्ध अक्षर आया हो तो उस अर्द्ध अक्षर के लिए अलग से मात्रा नहीं लगती। जैसे आत्मा s s
- जहाँ पर कोई अर्द्ध अक्षर अपने आगे आने वाले पूर्ण अक्षर से पूरी तरह मिला हुआ हो तो उस अर्द्ध अक्षर के लिए अलग से मात्रा नहीं लगती है। जैसे-स्थल ।।
4- दीर्घ (गुरु) :- दीर्घ वर्ण में हस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ‘s’ चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम अधोलिखित है-
- संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है जैसे- दुष्ट शब्द में अक्षर दु।
- यदि संयुक्ताक्षर में नया शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता।
- अनुस्वार युक्त वर्ण दीर्घ होते हैं जैसे- कंत, आनंद में क और न ।
- विसर्ग चिह्न युक्त वर्ण दीर्घ मान लिए जाते हैं जैसे दुःख में दुः ?
- दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते हैं जैसे कौन, काम आदि। यदि उनका उच्चारण लघु को तरह किया गया है तो उन्हें लघु ही माना जायेगा, जैसे- ‘कहेउ’ में है। वास्तव में उच्चारण किसी वर्ण को दीर्घ बनाने का आधार है।
- संयुक्ताक्षर में हलन्त’ के पूर्व बलाघात से प्रभावित लघु वर्ण दीर्घ होता है, जैसे- विष्णु इसमें वि, दीर्घ वर्ण है।
- रेफ के पहले का वर्ण गुरु माना जाता है, किन्तु यदि र किसी शब्द नीचे जुड़ा है, तो वह लघु होता है। जैसे मर्म शब्द में, र्म की वर्ण मात्रा का चिह्न (s) जब की नक्षत्र शब्द में त्र वर्ण की मात्रा का चिह्न लघु (।) होता है।
5- गण (समूह) :- लघु-गुरु के नियत क्रम से तीन वर्णों के समूह को गण कहा जाता है। “यमाताराजभानसलगा” सूत्र के आधार पर गणों की संख्या आठ है। वर्णिक छंदों की पहचान इन्हीं गणों के आधार पर होती है। इस सूत्र के अन्तिम दो वर्ण’ ल’ और ‘ग’ छन्दशास्त्र में दशाक्षर कहलाते हैं।
टिप्पणी- झ.ह.र.भ.प. वर्ण छन्दशास्त्र में अशुभ या दग्धाक्षर कहे जाते हैं।
यमाताराजभानसलगा (lSSSlSlllS)
गण | मात्रा |
यगण | lSS |
मगण | SSS |
तगण | SSl |
रगण | SlS |
जगण | lSl |
भगण | Sll |
नगण | lll |
सगण | llS |
छन्द के भेद
छन्द अनेक प्रकार के होते है, किन्तु मात्रा और वर्ण के आधार पर छंद मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-
- मात्रिक छन्द
- वर्णिक छन्द
अ. मात्रिक छन्द :- मात्रा की गणना पर आधारित छन्द ‘मात्रिक छन्द कहलाते है। इनमें वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, परन्तु उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए। मात्रिक छंद के तीन भेद होते है-
- सममात्रिक छंद
- अर्द्धसममात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
सम मात्रिक छंद :- जिन छंदों के चारों चरणों में मात्राओं की संख्या तथा उनका नियोजन क्रम समान हो उन्हें सम मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे- चौपाई आदि
1- तोमर (12 मात्रा) | 2- चौपाई (16 मात्रा) |
3- अरिल्ल (16 मात्रा) | 4- लावनी या राधिका (22 मात्रा) |
5- रोला (24 मात्रा) | 6- दिगपाल (24 मात्रा) |
7- रूपमाला (24 मात्रा) | 8- गीतिका (26 मात्रा) |
9- हरिगीतिका (28 मात्रा) | 10- सखी (14 मात्रा) |
11- ताटंक (30 मात्रा) | 12- आल्हा (31 मात्रा) |
13- सार (28 मात्रा) |
अर्द्धसम मात्रिक छंद :- जिन मात्रिक छन्दों के सम-सम एवं विषम-विषम चरणों की मात्राएँ समान हो, उन्हें अर्द्धसमात्रिक छंद कहते है। जैसे- बरवै, दोहा, आदि।
1- बरवै (19 मात्रा) | 2- दोहा (24 मात्रा) |
3- सोरठा (24 मात्रा) | 4- उल्लाला (28 मात्रा) |
विषम मात्रिक छंद :- जिन छंदो के चारों चरण असमान हो अर्थात् प्रत्येक चरण की मात्राएँ भिन्न-भिन्न हों उसे विषम मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे छप्पय आदि।
- दोहा+रोला= कुण्डलियाँ
- रोला+उल्लाला= छप्पय
वर्णिक छंद
केवल वर्ण गणना के आधार पर रचे गये छन्द ‘वर्णिक छन्द कहलाते हैं। इसके कुछ भेद इस प्रकार है- सवैया और दण्डक। बाईस से छब्बीस तक वर्ण वाले ‘सवैया‘ और छब्बीस से अधिक वर्ण वाले छन्द ‘दण्डक‘ कहलाते है।
ग्यारह वर्णों वाले वर्ण छंद
- स्वागता
- भुजंगी
- शालिनी
- इंद्रवज्रा
- उपेंद्रवज्रा
बारह वर्णों वाले वर्ण छंद
- वंशस्थ
- भुजंगप्रयात
- द्रुतविलंबित
- त्रोटक
चौदह वर्णों वाले वर्ण छंद
- वसन्ततिलका
पंद्रह वर्णों वाले वर्ण छंद
- मालिनी
सत्रह वर्णों वाले वर्ण छंद
- मंदाक्रांता
- शिखरिणी
उन्नीस वर्णों वाले वर्ण छंद
- शार्दुलविक्रीडीत
सवैया या जातवृत्त छंद (22-26 वर्ण)
- मदिरा
- मत्तगयंद
- दुर्मिल या चन्द्रकला
- सुंदरी
दण्डक छंद (26 वर्ण से अधिक)
- मनहरण या जलहरण
- रूपघनाक्षरी
- देवघनाक्षरी
छंद पर आधारित प्रमुख रचनाएँ
रचनाकार | रचना |
भरतमुनि | नाट्यशास्त्र |
कालिदास | श्रुतबोध |
हलायुध | छंद शास्त्र |
क्षेमेन्द्र | सवृत्तितिलक |
गंगादास | छंदोमंजरी |
केदार भट्ट | वृत्त रत्नाकर |
दामोदर मिश्र | वाणी भूषण |
हेमचंद | छंदोनुशासन |
लक्ष्मीशंकर | प्राकृत पैंगलम |
मतिराम | छंदसार पिंगल |
चिंतामणि | छंद विचार |
सुखदेव | वृत्त विचार |
माखन | छंद विलास |
नारायण दास | छंद सार |
भिखारीदास | छंदोर्णव |
कलानिधि | वृत्त चंद्रिका |
पद्माकर | छंदसार मंजरी |
गदाधर भट्ट | छंदोमंजरी |
जगन्नाथ प्रसाद भानु | छंद प्रभाकर |