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विद्यापति का जीवन परिचय
विद्यापति का जन्म सन 1360 ई. में और मृत्यु 1448 ई. में हुआ था। विद्यापति का जन्म बिसपी नामक गाँव के दरभंगा जिले के अंतर्गत विहार राज्य में हुआ था। विद्यापति के पिता गणपतिठाकुर जो दरभंगा नरेश गणेश्वर के यहाँ रहते थे। उनकी स्मृति में विद्यापति ने ‘गंगा भक्ति तरंगिणी’ लिखा है। विद्यापति तिरहुत के राजाशिव सिंह के आश्रय में रहते थे।
विद्यापति को मिलने वाली उपाधि
विद्यापति को निम्नलिखित उपाधि से सम्मानित किया गया है।अभिनव जयदेव, कविशेखर, सरसकवि, खेलनकवि, कविकंठहार, कवि रंजन, दशावधान
विद्यापति की रचनाएँ
विद्यापति की कुल 16 रचनाएँ हैं। जिसमें 13 संस्कृत में 2 अवहट्ट में 1 मैथिली में है।
विद्यापति की संस्कृत में रचनाएँ
1- शैव सर्वस्वसार
2- शैव सर्वस्वसार प्रमाणभूत पुराण संग्रह
3- भू परिक्रमा
4- पुरुष परीक्षा
5- लिखानावाली
6- गंगावाक्यावली
7- दानवाक्यावली
8- विभागसार
9- गयापत्तलग
10- वर्णकृत्य
11- दुर्गाभक्ति तरंगिणी
12- विरह वारिस कृत
13- मणिमंजरि नाटिका
विद्यापति की अवहट्ट भाषा में रचनाएँ
14- कीर्तिलता
15- कीर्तिपताका
विद्यापति की मैथिली भाषा में रचनाएँ
16- पदावली
विद्यापति को किसने क्या कहा
➡️ विद्यापति को हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने पंचानन कहा है।
➡️ बच्चन सिंह ने विद्यापति को जातीय कवि और अपरूप का कवि कहा है।
➡️ महाराज शिवसिंह ने विद्यापति को अभिनव जयदेव कहा है।
➡️ मिथिला के मनीषियों ने विद्यापति को मैथिल कोकिल कहा है।
➡️ हर प्रसाद शास्त्री ने विद्यापति को पंचदेवोपासक कहा है।
➡️ दिल्लीपति ने विद्यापति को दशावधान कहा है।
विद्यापति प्रश्नोत्तरी
विद्यापति के जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण बातें या कथन जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।विद्यापति के जीवन से संबंधित प्रश्न उत्तर, विद्यापति से तथ्यपरक प्रश्नोत्तरी
➡️ विद्यापति के गुरु का नाम पंडित हरि मिश्र था।
➡️ कीर्तिलता को विद्यापति ने कथा काव्य न कहकर कहानी कहा है। इनकी भाषा अवहट्ट मानी जाती है।
➡️ विद्यापति को अलग-अलग विद्वानों ने भक्त, श्रिंगारी या रहस्यवादी माना है।सर्वमत से विद्यापति मूलतः शैव थे।
विद्यापति को श्रिंगारी कवि मानने वाले विद्वान- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हर प्रसाद शास्त्री, रामकुमार वर्मा, रामवृक्षबेनीपुरी, सुभद्र झा
विद्यापति को भक्त कवि मानने वाले विद्वान- बाबू ब्रजनंदन सहाय, श्यामसुन्दर दास, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
विद्यापति को रहस्यवादी कवि मानने वाले विद्वान- ग्रियर्सन, जनार्दन मिश्र, नागेंद्रनाथ गुप्त ।
➡️ शिव सिंह की स्मृति में विद्यापति ने ‘कीर्तिलता’ की रचना की जबकि राजा कीर्ति सिंह के आश्रय में कीर्तिपताका की रचना की है।
➡️ विद्यापति मूलतः शैव थे।
➡️ कीर्तिलता में भृंग–भृंगी संवाद है। इसमें जौनपुर जिले का वर्णन किया गया है।
➡️ बच्चन सिंह ने विद्यापति को जातीय कवि कहा है।
➡️ महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री ने विद्यापति को पंचदेवोपासक स्वीकार किया है।
➡️ जॉर्ज ग्रियर्सन ने विद्यापति को रहस्यवादी कवि कहा है।
➡️ हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने विद्यापति को श्रिंगार रस का शिद्धवाक् कवि कहा है।
➡️ बाबू श्यामसुंदर दास और ब्रजनंदन सहाय ने विद्यापति को वैष्णवकवि कहा है।
➡️ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि “आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं । इन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने गीतगोविन्द के पदों को आध्यात्मिक संकेत माना वैसे विद्यापति के इन पदों को भी ।
➡️ विद्यापति के संबंध में बच्चन सिंह कहते हैं की “विद्यापति को भक्त कवि कहना उतना ही मुश्किल है जितना खजुराहो के मंदिरों कोआध्यात्मिक कहना।”
➡️ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने विद्यापति के पदावली को श्रिंगारिक पदों की मादकता को नागिन की लहर बताया है।
➡️ विद्यापति को श्रिंगारिक कवि मानने वालों विद्वानों में हरि प्रसाद शास्त्री, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामकुमार वर्मा, रामबृक्ष बेनीपुरी, शुभद्र झा
➡️ विद्यापति को संक्रमण काल का कवि कहा गया है। ये भक्ति काल में पैदा हुए परंतु प्रशस्तिपरक एवं श्रिंगारिक रचनाओं के कारणइन्हें आदिकाल का कवि माना गया है। विद्यापति ने कृष्ण के जिस माधुर्य रुप को प्रस्तुत किया उसी आधार पर शुक्ल जी इन्हें जयदेवकी परंपरा के कवि मैथिल कोकिल बताया । विद्यापति में अनुभूति की निच्छलता अभिव्यक्ति जिस प्रकार मिलती है वैसा अन्यत्र दुर्लभहै।
➡️ विद्यापति की राधा का स्वरूप परकीया है।