भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा निर्गुण धारा के अंतर्गत आती है | शुक्लजी ने भक्तिकाल को संत, सूफी, निर्गुण और सगुण आदि में विभाजित किया है। इन्होंने प्रकरण तीन में ज्ञानाश्रयी साखा के आठ संतों को महत्त्व दिया है।
Table of Contents
योग साधना से प्रभावित संत
कबीरदास, सुंदरदास, हरिदास निरंजनी
योग साधना से अप्रभावित संत
रैदास, दादू दयाल, गुरु नानक, मालुकदास, बाबालाल, संत सिंगा, रज्जब, जंभनाथ, बावरी साहिबा
निर्गुण मार्ग के संतों में निम्नवत महत्त्वपूर्ण विशेषता है
निर्गुण ईश्वर में विश्वास, अवतारवाद एवं बहुदेववाद का विरोध, सदगुण का महत्त्व, जाति–पाँति एवं धार्मिक भेदभाव का विरोध, रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध, रहस्यवाद नाम स्मरण तथा प्रेमभावना
कबीरदास
कबीर का शाब्दिक अर्थ है महान / बड़ा / श्रेष्ठ
चौदह सै पचपन साल गए, चंद्रवार एक ठाट गए।
जेठ सुदी बरसात को, पूरनमासी प्रकट भए
⇒ कबीर का जन्म 1455 (1398 ई.) को माना जाता है। काशी के लहर तारा तालाब के किनारे नीरू नीमा नामक जुलाहा दम्पति को कबीर प्राप्त हुए थे।
⇒ कबीर की मृत्यु 1518 ई. को मगहर में हुई थी। कबीर की पत्नी का नाम लोई था। पीतांबर दत्त बाड़थ्वाल ने कबीर की पत्नी का नामधनिया बताया है। कबीर को एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली थी।
⇒ कबीर के गुरु रामानंद थे। इसका दृष्टांत ‘मोइसिन फानी दाविस्तान’ में तथा चेतनदास के ‘प्रसंग परिजात’ में मिलता है।
⇒ यद्यपि कुछ विद्वान शेख तकी नामक सूफी को कबीर का गुरु मानते हैं।
⇒ कबीर को अपने गुरु रामानन्द से काशी में पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर राम नाम का ज्ञान प्राप्त हुआ। कबीर का स्वर कठोर था ।
⇒ शासन सत्ता को कबीर ने महत्त्व नहीं दिया। कबीर के समय दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोदी था। जिसने कबीर पर अत्याचार किए ।जिसका वर्णन अनंतदास की ‘कबीर परिचयी’ में है।
⇒ कबीर के शिष्यों में बघेल राजा वीर सिंह, बिजली खाँ, धर्मदास, सूरतगोपाल, जागूदास, भगवान दास प्रमुख हैं।
⇒ धर्मदास ने कबीर की वाणियों का संग्रह बीजक नाम से तीन खंडों (साखी, सबद, रमैनी) में किया है। सबद और रमैनी की भाषा ब्रज व पूर्वी बोली है जबकि साखी में पूर्वीपन का प्रयोग अधिक मिलता है।
⇒ श्यामसुन्दर दास ने नागरी प्रचारिणी काशी से ‘कबीर ग्रंथावली’ का संपादन किया और कबीर की भाषा को पंचमेल खिचड़ी बताया है।
⇒ आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी कहते हैं।
⇒ हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘कबीर’ नाम से पुस्तक लिखी। जिसमें उन्होंने कबीर के वाणी को ठेठ प्रयोग के कारण उन्हें ‘वाणी का डिक्टेटरकहा है।
⇒ कबीर मूलतः समाजसुधार थे। उन्होंने ज्ञान से दंभ और अहंकार को नष्ट किया है।
⇒ कबीर समाजसुधारक नहीं थे कबीर की प्रवृत्ति खंडात्मक थी जिस कारण इन्हें विद्रोही भी कहा जाने लगा।
⇒ कबीर पंडित और मुल्ला के संबंध में कठोर भाषा का प्रयोग करते हैं जबकि जनसामान्य के लिए साधव और भाई साहब का प्रयोग करतेहैं।
कबीर के संबंध में विद्वानों के मत
कबीर के संबंध में बच्चन सिंह ने लिखा है कि ‘हिंदी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता कबीर ही हैं।’
कबीर के संबंध में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि “हिंदी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोईउत्पन्न नही हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वंद्वी जानता है जिसका नाम तुलसीदास है।“
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि “वे मुसलमान होकर भी असल में मुसलमान नहीं थे। वे हिंदू होकर भी हिंदू नहीं थे। वे साधु होकरसाधु नहीं थे। वे वैष्णव होकर भी वैष्णव नहीं थे। वे योगी होकर भी योगी नहीं थे। वे भगवान के घर से सबसे न्यारे बनाकर भेजे गए थे।”
कबीर के संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कथन
“इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सँभाला जो नाथ पंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्तिरस से शून्य शुष्क पड़ता जा रहा था।”
“उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावादतथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया।“
“भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं–कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी इससे सन्देह नहीं है।”
दादूदयाल
दादूदयाल 1544 ई. में साबरमती नदी में बहते हए पाए गए थे। जो लादिराम (ब्राह्मण) नामक एक दंपति को मिले थे। दादू के बचपन का नाम महाबली था। दादू जाति के धनिया थे। इनके शिष्य रज्जब थे।
रज्जब के अनुसार
‘धुनिर्गरभे व्युत्पन्नों दादू योगेन्द्र महामुनि’
⇒ सुधाकर द्विवेदी ने दादू को मोची माना है।
⇒ हज़ारी प्रसाद द्विवेदी दादू को धनिया मानते हैं।
⇒ दादू के सत्संग स्थल को ‘अलख दरीबा’ कहा जाता है। अकबर ने दादू को फ़तेहपुर सिकरी बुलाया और 40 दिन तक सत्संग किया
⇒ दादू के दो पुत्र थे गरीबदास और मिस्कीनदास
⇒ दादूदयाल के प्रमाणिक रचनाओं को परशुराम चतुर्वेदी ने ‘दादूदयाल‘ नाम से संपादित किया है।
⇒ दादू के 52 शिष्यों का वर्णन राघवदास के भक्तमाल में मिलता है। जिनमें रज्जब, प्रागदास, सुंदरदास, संतदास, जनगोपाल, जगजीवनप्रमुख हैं।
⇒ दादू 14 वर्ष तक आमेर में रहे। फिर वहाँ से मारवाड़ विकानेर आदि स्थलों पर गए यही राजपूताना में आकर बस गए। जहाँ 1603 ई. मेंदादू का देहांत हो गया।
⇒ दादू के दो शिष्य संतदास और प्रागदास ने हरडेवाणी शीर्षक से दादू की वानियों को संकलित किया है।
⇒ दादू दयाल को राजपूताना का संत कहा जाता है।
ज्ञानाश्रयी शाखा के अन्य प्रमुख कवि
⇒ हिंदी में भक्त साहित्य की परंपरा का प्रवर्तन नामदेव ने किया।
⇒ संत रैदास (रविदास) मीराबाई और उदय के गुरु माने जाते हैं।
⇒ रैदास के 40 पद ‘गुरु ग्रन्थ साहब‘ में संकलित हैं।
⇒ गुरुनानक देव सिख सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक एवं आदि गुरु थे। गुरुनानक देव की पत्नी का नाम सुलक्षणी था तथा उनके दो पुत्र थे – (1) श्रीधर और (2) लक्ष्मीचन्द ।
⇒ गुरुनानक देव की प्रमुख रचनाएँ– ‘जपुजी‘, ‘आसदीबार‘, ‘रहिरास‘ और ‘सोहिला‘– गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित हैं। ‘जपुजी‘ नानक दर्शनका सार तत्त्व है।
⇒ ‘नसीहतनामा‘ नानकदेव की महत्वपूर्ण रचना है।
⇒ ‘जपुजी‘ नानक दर्शन का सार तत्व है|
⇒ बाबालाल के विचारों का संग्रह ‘नादिरुन्निकाट‘ पुस्तक में है|
⇒ संत कवियों में बावरी साहिबा महिला संत साधिका थी|
⇒ अक्षर अनन्य प्रसिद्ध छत्रसाल के गुरु थे|
⇒ संत रज्जब का पूरा नाम रज्जब अली खां था|
⇒ निरंजनी संप्रदाय उड़ीसा में प्रचलित है|
⇒ दादू दयाल के संप्रदाय को ब्रह्म संप्रदाय या परब्रह्म संप्रदाय नाम से भी जाना जाता है|
⇒ गुरु नानक के पिता का नाम कालूराम व माता का नाम तृप्ता था|
प्रमुख संत कवियों का संक्षिप्त जीवन परिचय
संत कवि | जन्मस्थान | गुरु |
रैदास | काशी | रामानंद |
कबीर | काशी | रामानंद |
जम्भनाथ | नागौर | बाबा गोरखनाथ |
हरिदास निरंजनी | डीडवाण | प्रागदास |
गुरुनानक | ननकाना | |
सिंगा | खजूर (म.प्र.) | मनरंगीर |
लालदास | अलवर | गदन चिश्ती |
दादू दयाल | अहमदाबाद | वृद्ध भगवान |
मलूकदास | इलाहाबाद | पुरुषोत्तम |
बाबा लाल | पंजाब | |
सुन्दर दास | जयपुर | दादूदयाल |
धर्मदास | बांधवगढ़ | कबीरदास |
धन्ना | धुवान | रामानंद |
पीपा | गगरौनगढ़ | रामानंद |
सेन | बांधवगढ़ | रामानंद |
बावरी साहिबा | मायानंद | |
रज्जब | राजस्थान | दादूदयाल |
निपट निरंजन | दौलताबाद | |
अक्षर अनन्य | दतिया | |
नामदेव | विसोवा खेचर |
प्रमुख संत कवियों से संबंधित प्रसिद्ध स्थल
संत कवि | प्रसिद्ध स्थल |
जम्भनाथ | संभराथल (समाधि स्थल) |
दादूदयाल | अलखदरीबा (सत्संग स्थल) |
बाबालाल | बाबालाल का शैल (बड़ौदा) |
कबीरदास | मगहर (मृत्यु स्थल) |
सुंदरदास | सांगानेर (मृत्यु स्थल) |
दादूदयाल | भराने (मृत्यु स्थल) |
मीराबाई | द्वारका (मृत्यु स्थल) |
संत कवियों की जाति
धर्मदास | बनिया |
धन्ना | जाट |
सेन | नाई |
शेख फरीद | मुसलमान |
रज्जब | मुसलमान |
सदना | कसाई |
निपट निरंजन | गौड़ ब्राह्मण |
अक्षर अनन्य | कायस्थ |
नामदेव | दरजी |
कबीर | जुलाहा |
संत कवियों की प्रमुख रचनाएँ
संत कवि | रचनाएँ |
दादूदयाल | हरडे बानी, अंग बधु, काया बोली (राजस्थानी खड़ी बोली मिश्रित ब्रज) |
बाबालाल | असरारे मार्फ़त, नादिरुन्निकाट, |
सुन्दरदास | ज्ञान समुद्र, सुंदर विलास (परिष्कृत ब्रजभाषा) |
रज्जब | सब्बंगी |
मलूकदास | रत्नखान, ज्ञानबोध, ज्ञान परोछि, भक्तवच्छावली, भक्ति विवेक, बारह खड़ी, रामावतार लीला, ब्रजलीला, ध्रुवचरित, सुखसागर |
अक्षर अनन्य | राजयोग, विज्ञान योग, ध्यान योग, सिद्धांत बोध, विवेकदीपिका, ब्रह्मज्ञान, अनन्य प्रकाश |
गुरु अर्जुनदेव | सुखमनी, बावन अखरी, बारहमासा |
निपट निरंजन | शान्त सरसी, निरंजन–संग्रह |
हरिदास निरंजनी | अष्टपदी जोग ग्रंथ, ब्रह्म स्तुति, हंस प्रबोध ग्रंथ, निरपख मूल ग्रंथ, पूजा जोग ग्रंथ, समाधि जोग ग्रंथ, संग्राम जोग ग्रंथ |
संत सिंगा | सिंगाजी का दृढ़ उपदेश, सिंगाजी का आत्मबोध, सिंगाजी का दोष–बोध, सिंगाजी का नरद, सिंगाजी का शरद, सिंगाजी की वाणी, सिंगाजी का सातवार, सिंगाजी के भजन |