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भक्ति की उत्पत्ति सम्बन्धी मत
⇒ भक्ति शब्द का प्रथम उल्लेख श्वेताश्वर उपनिषद् में मिलता है | मोनियर विलियम ने भक्ति शब्द की उत्त्पत्ति ‘भज’ धातु से मानी है |
⇒ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने श्रद्धा और प्रेम के योग के नाम को भक्ति कहा है | धर्म का प्रवाह कर्म, ज्ञान और भक्ति इन तीनों धाराओं में चलता है |
⇒ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार भगवान के प्रति अनन्यगामी एकांत प्रेम का नाम ही भक्ति है |
भक्तिकाल के उदभव को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है | कुछ विद्वान ईसाई धर्म को, कुछ मुस्लिम संस्कृति को, कुछ विद्वान पराजित मनोवृत्ति को, कुछ ने भारतीय संस्कृति को इसका देन बताया है |
भक्तिकाल को ईसाई धर्म की देन मानने वाले विद्वान
⇒ इसमें वे विद्वान आते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म से भक्तिकाल की उत्तपत्ति मानी है | इनमें वेवर, कीथ, विल्सन और ग्रियर्सन आते हैं |
⇒ इतिहास में सेंटथामस पहला पादरी है | जो पहली ई.वी. सदी में मद्रास में आकर बस गए थे | ग्रियर्सन ने इसी को लक्षित किया |
⇒ ग्रियर्सन के अनुसार “बिजली की चमक के समान अचानक इस समस्त पुराने धार्मिक मतों के अंधकार के उपर एक नयी बात दिखाई दी | कोई हिन्दू नहीं जानता कि यह बात कहाँ से आयी | कोई भी इसके प्रादुर्भाव का निश्चय नहीं कर सकता |”
भक्तिकाल को मुस्लिम संस्कृति की देन मानने वाले विद्वान
इसमें वे विद्वान आते हैं जिन्होंने भक्ति आन्दोलन को इस्लामिक संस्कृति का अगला विकास बताया है | इसमें डॉ. ताराचंद, हुमायूं कबीर, आविद हुसैन आते हैं |
प्राचीन भारतीय संस्कृति से भक्ति आन्दोलन को जोड़ने वाले विद्वान
इनके अनुसार भक्ति की अविरल धारा बौद्धों की परम्परा से अर्थात् छठीं ईसा पूर्व से चली आ रही है | इस कोटि के विद्वानों में बालगंगाधर तिलक, हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्रीकृष्ण स्वामी आयंगर, राय चौधरी प्रमुख हैं |
भक्ति आन्दोलन को पराजित मनोवृत्ति का प्रतिक मानने वाले विद्वान
भक्ति आन्दोलन को पराजित मनोवृत्ति का प्रतिक मानने वाले विद्वानों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू गुलाब राय आते हैं |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार “अपने पौरुष से हतास जाति के लिए भगवान की भक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था |
गुलाब राय के अनुसार “मनोवैज्ञानिक तथ्य के अनुसार हार के प्रवृत्ति में दो बातें संभव हैन| या तो अपनी आध्यात्मिक श्रेष्ठता दिखाना या भोग विलास में पड़कर हार को भूल जाना | भक्तिकाल के लोगों में प्रथम प्रकार की प्रवृत्ति पायी जाती है|
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार “भक्ति का जो सोता दक्षिण भारत से उत्तर भारत की ओर धीरे-धीरे आ रहा था राजनीतिक परिवर्तन के कारण शून्य पड़ते हुए जनता के ह्रदय में फैलने का पुरा स्थान मिला |”
शुक्ल जी के पराजित मनोवृत्ति विषयक मत का हजारी प्रसाद द्विवेदी ने खंडन किया |
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “बौद्धतत्ववाद जो निश्चय ही बौद्ध आचार्यों के चिंतन का देन था मध्ययुग के हिंदी साहित्य के उस युग पर अपना निश्चित पद चिह्न छोड़ गया है | जिसे संत साहित्य का नाम दिया गया है | बौद्धधर्म क्रमश: लोकधर्म का रूप ग्रहण कर रहा था | और उसका निश्चित चिह्न हम लोकसाहित्य पर पाते हैं |”
हजारी प्रसाद द्विवेदी के भक्तिकाल संबंधी मत
“समूचे भारतीय इतिहास में अपने ढंग का अकेला साहित्य है | इसी का नाम भक्ति साहित्य है यह एक नयी दुनिया है |”
“मैं जोर देकर कहना चाहता हूँ कि यदि इस्लाम न भी आया होता तो साहित्य का बारह आना विकास वैसे ही होता जैसे आज है |”
“भक्ति आन्दोलन मूलत: भारतीय चिंतन धारा का वास्तविक विकास है |”
भक्तिकाल के प्रमुख सम्प्रदाय व उनके प्रवर्तक
⇒ दक्षिण भारत में ब्राह्मण और अब्राहमण का भेद व्याप्त था | रामानुजाचार्य के प्रयास से अन्त्योजो को भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिली फलत: अनेक सम्प्रदायों ने जन्म लिया |
⇒ आदिकाल में सिद्धनाथ का विकास हुआ इसी के समानांतर दक्षिण में अलवार और नयनार प्रमुख थे |
⇒ अलवार भगवान विष्णु को अपना अवतार मानते थे | इन्हें वैष्णव भक्त भी कहा जाता है | अलवारों की कुल संख्या 12 थी | इसमें अंडाल नामक स्त्री संत भी थी |
⇒ नयनार भगवान शिव के भक्त थे | नयनारों की कुल संख्या 63 थी |
⇒ केरल में शास्तापुजक सम्प्रदाय, बंगाल में धर्म ठाकुर, सहजिया, बाउल, सत्यपीर, उड़ीसा में पंचसखा महाराष्ट्र में बारकरी और महानुभाव सम्प्रदाय प्रसिद्ध थे |
भक्ति सम्प्रदाय | प्रवर्तक |
स्मार्त संप्रदाय | शंकराचार्य |
श्री संप्रदाय | रामानुजाचार्य |
सनक संप्रदाय | निंबारकाचार्य |
रुद्र संप्रदाय | विष्णु स्वामी |
चैतन्य संप्रदाय | चैतन्य स्वामी |
रामावत संप्रदाय | रामानन्द |
सिख संप्रदाय | गुरु नानक |
उदासी संप्रदाय | श्री चंद |
महानुभाव संप्रदाय | चक्रधर |
वारकरी संप्रदाय | संत पुंडलिक |
सत्यपीर संप्रदाय | अलाउद्दीन हुसैन |
निरंजनी संप्रदाय | हरिदास निरंजनी |
लाल पंथ संप्रदाय | लालदास |
सत्यनामी संप्रदाय | जगजीवन दास |
तापसी शाखा | किल्हदास |
रसिक संप्रदाय | अग्रदास |
सखी संप्रदाय | हरिदास |
स्वसुख़ी संप्रदाय | रामचरण दास |
तत्सुखि संप्रदाय | जीवाराम |
बावरी पंथ संप्रदाय | बावरी साहिबा |
राधास्वामी सत्संग संप्रदाय | दयालदास |
ब्रह्म संप्रदाय | मध्वाचार्य |
वल्लभ संप्रदाय | वल्लभाचार्य |
निम्बार्क संप्रदाय | निंबारकाचार्य |
राधा वल्लभ संप्रदाय | स्वामी हित हरिवंश |
हरिदासी संप्रदाय | स्वामी हरिदास |
साहब पंथ संप्रदाय | तुलसी साहब |